बेहतरीन कंटेंट, उम्दा अभिनय और लीक से हटकर बनायी गयी है फिल्म ‘हैंडओवर’
ईश्वर नाथ झा
अगर कोई फिल्म डायरेक्टर अपने पहले ही फिल्म में चार चार इंटरनेशनल फिल्म अवार्ड जीत ले तो जाहिर सी बात है फिल्म में बहुत दम है। एक ऐसी ही दमदार और समसामयिक विषय पर बनी फिल्म है ‘हैंडओवर’। फिल्म का नाम भले ही अंग्रेजी में हो लेकिन है ये विशुद्ध भारतीय गाँव की कहानी।
एक ऐसी कहानी जिस से दर्शक अपने आप को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। एक ऐसी कहानी जिसे देखकर आप सोचने को मजबूर हो जायेंगे कि जब लोग चाँद और मंगल पर पहुँचने की बात कर रहे हैं तब भी दुनिया के अधिकांश हिस्सों में कई लोग दो वक्त की रोटी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।
फिल्म हैंडओवर में भी दो वक्त की रोटी का जुगाड़ के लिए कोई किस हद तक जा सकता है और उसकी असली कहानी को कैसे आज का समाज और मीडिया अपने हिसाब से लोगों के सामने परोसते हैं, दिखाया गया है।
हैंडओवर एक सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है। तक़रीबन 12 साल पहले बिहार के नालंदा जिले में एक घटना हुई थी जिसमें एक माँ ने अपनी दूधपीते बच्ची को बेच दिया था। इस घटना को मीडिया ने प्रमुखता से दिखाया, छापा। बहुत हो-हल्ला हुआ तो सरकारी मीटिंग हुई, कमिटी बनायीं गयी और एक ऑफिसर को पूरे मामले की जांच करने को कहा गया। सरकार की तरफ से फरमान जारी हुआ कि किसी कीमत पर बच्चे को ढूंढो और माता पिता को हैंडओवर करो।
पूरी फिल्म कई सारे सवालों को जन्म देती है। क्या फिल्म ने सभी सवालों का जवाब मिलता है। क्या सचमुच एक माँ ने अपनी बच्ची को बेच दिया था? क्या मीडिया ने पूरे मामले को ट्विस्ट कर दिखाया, और सबसे बड़ी बात, क्या उस माता पिता की सारी समस्या ख़त्म हो गयी? इन सभी सवालों को निर्देशन कर रहे सौरभ कुमार ने बड़े अच्छे से जवाब दिया है।
जहाँ तक बात है अभिनय की, तो एक सरकारी ऑफिसर रतन दास की भूमिका में विकास कुमार ने बेहतरीन अभिनय किया है। विकास कुमार एक मंझे हुए कलाकार हैं और इसकी झलक उन्होंने हैंडओवर में कई बार दिखाया है। कहीं कहीं पर ऑफिसर रतन दास का पत्नी, जिसे ओरुषिका डे ने निभाया है, से संवाद और दृश्य फिल्म को खींचने जैसा लगता है। हालांकि ओरुषिका डे ने उसमें भी अपने रोल से न्याय किया है।
नूतन सिन्हा और नरेन्द्र कुमार ने गरीब माँ बाप (राधा और हरी पासवान) के रोल को बहुत बेहतरीन ढंग से निभाया है। नूतन सिन्हा ने एक दुखी माँ के किरदार में अपनी छाप छोड़ी है। वहीँ हरी पासवान को भी जितना स्क्रीन स्पेस दिया गया उसमें उन्होंने अच्छा अभिनय किया है।
सौरभ ने इस फिल्म की कहानी और संवाद भी लिखे हैं। सौरभ नालंदा जिला से हैं जहाँ मगही बोली जाती है। यही कारण है कि फिल्म के कुछ संवाद जो मगही में हैं वो रियल लगते हैं और फिल्म को और यथार्थ के करीब ले जाते हैं। फिल्म के अन्य पक्ष जैसे सिनेमेटोग्राफी, लोकेशन, लाइट, कैमरा और म्यूजिक इस फिल्म को बेहतरीन बनता है।
कम बजट की ये फिल्म तक़रीबन एक दशक पहले कई सारे फिल्म फेस्टिवल्स में दिखाई गयी थी, जहाँ इसे सराहना भी मिली और कई पुरस्कार भी मिले । अब इसे एम.एक्स. प्लेयर पर रिलीज़ की गयी है। बेहतरीन कंटेंट, उम्दा अभिनय और लीक से हटकर बनायी गयी हैंडओवर को एम.एक्स प्लेयर पर एक बार जरुर देखा जा सकता है।