स्कूल गेम्स फ़ेडेरेशन को सुधारें या मुक्त करे खेल मंत्रालय
राजेंद्र सजवान
स्कूल गेम्स फ़ेडेरेशन आफ इंडिया (एसजीएफआई) को खेल मंत्रालय ने उन 54 राष्ट्रीय खेल फ़ेडेरेशनों में शामिल नहीं किया है, जिन्हें 30 सितंबर तक मान्यता प्रदान की गई है। लेकिन यह कोई बड़ी खबर नहीं है, क्योंकि कोविड 19 के चलते देश में खेलों को पटरी पर आने में कई महीने लग सकते हैं। ख़ासकर, स्कूली खेलों को शायद तब ही हरी झंडी मिल पाएगी जबकि खिलाड़ी, स्कूल, अभिभावक और आयोजक हर प्रकार से सुरक्षा को लेकर संतुष्ट हों।
सवाल यह पैदा होता है कि खेल मंत्रालय नें सितंबर तक ही मान्यता क्यों दी है, जबकि आमतौर पर दिसंबर तक मान्यता का प्रावधान रहा है और इस बारे में भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष नरेंद्र बत्रा ने भी सवाल उठाया है।
यह ना भूलें कि खेल मंत्रालय ने कुछ माह पहले ही स्कूली फ़ेडेरेशन को निलंबित किया था और यहाँ तक कहा गया कि फ़ेडेरेशनके विरुद्ध खिलाड़ियों, कोचों और अभिभावकों की कई शिकायतें मिली हैं और मामला इतना गंभीर है कि सीबीआई जाँच हो सकती है। लेकिन मान्यता नहीं देने के मामले में यह कहना कि फिलहाल एसजीएफई को बाहर रखा जाएगा, संतोषजनक तर्क नहीं है। यह ना भूलें कि भारतीय स्कूली खेल वर्षों से एसजीएफआई की अनियमितता, भ्रष्टाचार, व्यविचार और लूट खसोट को झेल रहे हैं।
जैसे ही इसे निलंबित करने की खबर छपी, हज़ारों खिलाड़ियों ने चैन की साँस ली थी लेकिन अब यह सुगबुगाहट जोरों पर है कि खेल मंत्रालय में कुछ ना कुछ पक रहा है और कोई है जोकि एसजीएफआई के अस्तित्व को बनाए रखना चाहता है। स्कूली फ़ेडेरेशन से जुड़े कुछ अधिकारी तो यहाँ तक दावा कर रहे हैं कि उनके बिना देश में खेलों का कारोबार चल ही नहीं सकता। एक अधिकारी ने तो यहाँ तक दावा किया कि कुछ दिन की बात है, खेल मंत्रालय उन्हें बहाल करेगा। ऐसा माना जा रहा है कि स्कूली खेलों को बर्बाद करने वाला वायरस सालों साल खिलाड़ियों के बीच ही रहने वाला है।
हालाँकि सरकार ने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि देश में स्कूली खेलों का संचालन और आयोजन कौन करेगा! इस होड़ में कुछ समान्तर संगठन गिद्द दृष्टि गड़ाए हैं और पिछले कई सालों से अपनी अपनी दुकानें खोले बैठे हैं।
ज़ाहिर है जब तक खेल मंत्रालय ठोस कदम नहीं उठाता स्कूली खेल नहीं सुधरने वाले, जिन्हें कि हमरे नेता, सांसद और खेल मंत्री खेलों की बुनियाद बताते रहे हैं।
खेल मंत्रालय द्वारा खेलो इंडिया को देश में खेलों की नई शुरुआत के रूप में पेश किया जाना इस बात का संकेत माना जा रहा था कि अब शायद एसजीएफआई के दिन पूरे हो गए हैं। लेकिन पता नहीं क्यों एसजीएफआई की तरह मंत्रालय भी आम भारतीय खिलाड़ी और खेल प्रेमियों की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया है। यह जानते हुए भी कि एसजीएफआई को लेकर देश भर के स्कूलों और उनके खिलाड़ियों का अनुभव अच्छा नहीं रहा है, मंत्रालय पता नहीं क्यों ठोस कदम नहीं उठा पता।
बेहतर होगा मंत्रालय खेलो इंडिया के तहत 12 से 19 साल तक के स्कूली खिलाड़ियों के आयोजनों को प्रमुखता दे और खेलो का नासूर बन चुके एसजीएफआई से मुक्त करे।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार है, चिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को www.sajwansports.com पर पढ़ सकते हैं।)