मैं दवाइयां नहीं मांग रहा हूं, इंसानों की जिंदगी मांग रहा हूं: मेडिसिन बाबा
शिवानी राजवारिया
जब लक्ष्मण जी मूर्छित हुए तब हनुमानजी ने संजीवनी लाकर उनके प्राणों की रक्षा की। जब हमारा कोई अपना जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा होता है तो हम भी उसी संजीवनी बूटीरूपी दवाइयों का इंतजार करते हैं। उस वक्त डॉक्टर हमारे लिए भगवान और उनकी दवाइयां, संजीवनी बूटी होते हैं. लेकिन आज की तारीख में दवाइयां इतनी ज्यादा महगी हो चुकी है कि उसको खरीदने में गरीब लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में एक आम इंसान किसी फ़रिश्ते के रूप में गरीबों की जिंदगी में एक उम्मीद की किरण बन आए तो उसे मेडिसिन बाबा कहेंगे।
कौन है मेडिसिन बाबा? कहां से आए मेडिसिन बाबा? क्या करते हैं मेडिसिन बाबा?
एक तरफ जहां पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कहर से परेशान है। सभी देश इससे निजात पाने की जद्दोजहद में लगे हैं। ऐसे में यह सोचना जरूरी हो जाता है कि जब कोई महामारी देश में फैलती है तब उससे प्रभावित मरीजों का इलाज अच्छी तरीके से हो लेकिन अधिकतर लोग पूरी तरीके से इलाज व दवाइयां ना मिल पाने के कारण बीमारी की चपेट में आ जाते हैं। ऐसे में आपको बताते हैं एक ऐसे शख्स की कहानी जो हम सभी को सोचने पर मजबूर करती हैं।
मेडिसिन बाबा की पूरी कहानी
ओंकार नाथ शर्मा जिन्हें लोग मेडिसिन बाबा के नाम से जानते हैं। 83 साल की उम्र में जो काम वह कर रहे हैं वह जितना प्रेरणादाई है, सराहनीय है उससे कहीं ज्यादा उन गरीबों की जिंदगी की उम्मीद की रोशनी है जिसकी कल्पना शायद आप और हम नहीं कर सकते। बाबा ने अपने सरनेम से नाता तोड़ा और अब अपने नाम से भी उन्हें कोई मोह नहीं है जो उनके व्यक्तित्व की सरलता को दर्शाता है। अपने आप को मेडिसिन बाबा की पहचान से परिचित कराने वाले ओंकार नाथ शर्मा का कहना है कि पहले आदमी को इंसान बनना चाहिए। अपना परिचय मेडिसिन बाबा के तौर पर ही देते हैं। फ़ोन आता है तो भी ‘हेलो मेडिसिन बाबा’ ही कहते हैं।
बाबा ने अपनी ज़िन्दगी में ज़्यादा कमाई नहीं की। बस्ती में किराए के घर में अपनी पत्नी और मानसिक रूप से विकलांग बेटे के साथ रहते हैं। कोई कहेगा कि अपनी जिंदगी में ये सब देख कर शायद दूसरों की मदद कर के ख़ुशी ढूंढते हैं या ये कि एक वक़्त लैब टेकनीशियन रहे थे, इसलिए लोगों की परेशानी, उनकी हताशा याद कर के उन्हें अपना काम करते रहने की ताकत मिलती होगी। लेकिन उनके बारे में जानने के बाद ये सब उनसे जुड़े ‘ट्रिविया’ से ज़्यादा नहीं लगते। जिसके पीछे उनकी सीधी-सादी और सुलझी हुई सोच है कि ‘मेरे मांगने से किसी की ज़िन्दगी बच रही हो तो इसमें क्या हर्ज़ है।
कुछ यूं शुरू हुआ मेडिसिन बाबा का सफर:
2008 में लक्ष्मीनगर में मेट्रो की साइट पर जो हादसा हुआ था, उसने कुछ मज़दूरों की जान ले ली। कितने ही लोगों की इस हादसे से जिंदगी बदल गई। हादसे के तमाशबीनों में एक इंसान ऐसा भी था, जो घायल मज़दूरों के पीछे-पीछे अस्पताल तक गया। वहां उसने देखा कि मज़दूरों को मामूली मरहम-पट्टी करने के बाद ये कह कर वापस भेजा जा रहा है कि दवाएं नहीं हैं। खरीद के लाओ तो इलाज कर देंगे। मजदूर मायूस होकर वापस चले गए। लेकिन वो इंसान नहीं गया। और कुछ समय बाद जब लौटा उसकी पहचान बदल चुकी थी वह मेडिसिन बाबा बन चुका था जो उन गरीबों की मदद करता था जिन गरीबों को उसने दवाई ना मिलने की वजह से तड़पते देखा था।
बाबा रोज़ सुबह एक भगवा कुर्ता पहनकर मंगलापुरी के अपने घर से निकलकर शहर के अलग अलग इलाकों में जाते हैं और आवाज़ लगा-लगा कर लोगों से वो दवाएं उन्हें दे देने को कहते हैं, जो उनके लिए बेकार हैं। बाबा के कुर्ते पर आगे हिंदी में और पीछे अंग्रेजी में ‘चलता-फिरता मेडिसिन बैंक’ लिखा होता है। साथ में उनके नंबर भी कि कोई दवाएं देना या फिर लेना चाहे तो उन तक पहुंच सके। मेट्रो में कम चलते हैं, क्योंकि महंगी है।डीटीसी बस में चलते हैं अपना सीनियर सिटीजन पास साथ लेकर। जहां बस नहीं पहुंचती वहां पैदल जाते हैं। बचपन में 12 की उम्र में एक्सीडेंट में एक पैर टेढ़ा हो गया था।लेकिन बाबा चलते हैं।रोज़ 5 से 6 किलो मीटर।
उम्र के जिस पड़ाव में अधिकतर लोग दूसरों के मोहताज हो जाते हैं उस पड़ाव में ओमकार नाथ शर्मा (83) लोगों को मुफ्त जीवनदायिनी दवा बांट रहे हैं। पैरों से 40 फीसद दिव्यांग हैं, फिर भी रोजाना बसों में कई किलोमीटर का सफर करते हैं और पांच किलोमीटर पैदल चलकर दवा मांगते हैं, ताकि दवा की कमी में कोई दम न तोड़े।
पहले उन्हें सवाल-जवाब के साथ कमेंट भी सहने पड़ते थे। शुरू में लोगों को उन पर भरोसा नहीं हुआ. तरह-तरह के सवाल पूछे जाते थे। कुछ ऊल-जलूल तो कुछ हौसला तोड़ने वाले। डॉक्टर उनकी दवाओं से बचते थे। ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट वालों ने कार्यवाही की धमकी दी कि बिना लाइसेंस दवाएं बांटते हो, अंदर कर दिए जाओगे।लेकिन बाबा लगे रहे और धीरे-धीरे सब लोग उनके काम को समझने लगे और सहयोग करने लगे। और अब उनके नाम से एक पूरा ट्रस्ट खड़ा हो गया है। लोग उनके काम से जुड़े और कई एनजीओ भी उनके साथ काम करने लगे हैं।बाबा के काम पर इतना भरोसा किया जाने लगा है कि कई डॉक्टर अब बाबा से दवाएं लेकर लोगों को देते हैं।अब देश-विदेश से लोग उनके पास दवा के पार्सल भेजते हैं। आज उन्हें मेडिसिन बाबा के नाम से जाना जाने लगा है। वह बताते हैं कि 2008 में लक्ष्मी नगर में मेट्रो हादसे के बाद कई लोगों को दवा की कमी में तड़पते देखा। उस घटना ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। उसके बाद से दवाइयां इकट्ठी करने का सिलसिला आज तक बदस्तूर जारी है।
शुरू में जो दवा मिलती उसे राम मनोहर लोहिया व अन्य अस्पतालों में गरीबों को बांट आते थे। एक साल ही हुआ कि एक दिन एक व्यक्ति ने टोक दिया कि आप न फार्मासिस्ट हो और न ही डॉक्टर, फिर ऐसे दवा कैसे बांट सकते हो। उसके बाद दवाइयां चैरिटेबल ट्रस्ट और अस्पतालों में देनी शुरू कर दी।
लोगों ने आर्थिक मदद भी की तो दवाएं भी बढ़ीं। किराये का एक बड़ा घर लेकर एक हिस्से में आशियाना और दूसरे हिस्से में दवाखाना बनाकर एक फार्मासिस्ट रख लिया। जरूरतमंदों को इस दवाखाने से दवाएं तो मिलती ही हैं, साथ ही अगर कोई चिकित्सक या अस्पताल गरीबों के लिए दवा या जीवन रक्षक उपकरण मांगते हैं तो उन्हें उपलब्ध कराया जाता है। पहले दवाओं का टोटा होता था, अब लाखों रुपये की दवाएं उलब्ध हैं। बहुत से लोग खुद दवा पहुंचाने आते हैं।
पढ़े लिखे नहीं होने के वाजूद अपने काम को पूरे पेशेवर ढंग से करते हैं। हर रोज़ दिन के आखिर में इकट्ठा दवाइयों को बाकायदा कैटलॉग करते हैं जिसमें दवाओं के बैच नम्बर से लेकर उनकी एक्सपायरी डेट तक सारी ज़रूरी जानकारी होती है। किसी को दवा देने से पहले वो डॉक्टर का पर्चा भी देखते हैं।
मेडिसिन बाबा की टीम में लगभग 40 टीम मेंबर हैं जो इस काम को उनके साथ मिलकर करते हैं. उनके चार सेंटर से जहां से यह काम किया जाता है।अब तक लगभग 66 से ज्यादा जगहों पर अपनी सुविधाएं पहुंचा चुके हैं। मेडिसिन बाबा का एक टोल फ्री नंबर है, जिस पर आप कॉल करके दवाइयां उपलब्ध करा सकते हैं । बजाज ने अपनी बाइक विक्रांत के लिए एक सरोगेट एड सीरीज़ बनाई है ‘इनविंसिबल इंडियंस’ नाम से। उसमें बाबा की कहानी उन्हीं की जुबानी है।