भूमिपूजन की शुभ घड़ी में दुर्भाग्यपूर्ण राजनीति
कृष्णमोहन झा
दशकों पुराने अयोध्या विवाद पर गत वर्ष नवंबर में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए ऐतिहासिक फैसले को जब इस विवाद से जुड़े सभी पक्षों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया धा तब सारे देश ने राहत की सांस ली थी और उसके साथ ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का मार्ग भी प्रशस्त हो गया था तब से सारे देशवासी अयोध्या में भगवान श्री राम के भव्य मंदिर के निर्माण का शुभारंभ होने की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे थे औरअब वह शुभ घड़ी नजदीक आ चुकी है । आगामी ५ अगस्त को एक सन्क्षिप्त किंतु गरिमामय समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों मंदिर के निर्माण हेतु भूमि पूजन का कार्यक्रम तय हो चुका है । कोरोना संकट को देखते हुए इस समारोह में आमंत्रितों की संख्या को दो सौ तक ही सीमित रखने का फैसला किया गया है ।
इन अति विशिष्ट आमंत्रितों मे रम मंदिर आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, उमाभारती, साध्वी ऋतंभरा , केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, आर एस एस के सरसंघचालक मोहन भागवत प्रमुख हैं। इस गरिमामय समारोह की तैयारियां पूर्णता की ओर हैं । भगवान राम के भव्य मंदिर का निर्माण कार्य लगभग दो वर्षों में पूर्ण हो जाने का अनुमान है ।यह भी निसंदेह आश्चर्यजनक है कि अब जब किअयोध्या में भव्य राम मंदिर कानिर्माणकार्य प्रारंभ होने में कोई संशय की गुंजाइश शेष नहीं रह गई है तब भी देश के कुछ विपक्षी दलों के नेता किसी न किसी तरह मंदिर के निर्माण कार्य की शुरुआत में भी व्यवधान पैदा करने में कोई संकोच नहीं कर रहे हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि उनके लिए सबसे चिंता की बात यह है कि दशकों पुराना अयोध्या विवाद मोदी सरकार के कार्यकाल में न केवल शांति पूर्ण तरीके से सुलझ चुका है बल्कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य भी वर्तमान मोदी सरकार के कार्यकाल में ही पूर्ण होने में किसी को किसी तरह का कोई संदेह नहीं है ।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खाते में जुड़ने वाली यह ऐतिहासिक उपलब्धि अगर कुछ विपक्षी दलों के लिए चिंता की एक बड़ी वजह बन गई है तो यह स्वाभाविक भी है।कभी जिस विवाद के बारे में यह आम धारणा बन चुकी हो कि उसका शांति पूर्ण समाधान नामुमकिन है उस विवाद के शांति पूर्ण समाधान की राह अगर मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दूसरे में साल में ही निकल आई है तो उसके लिए वे निसंदेह साधुवाद के अधिकारी हैं ।गौरतलब है कि हाल में ही राष्ट्र वादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन हेतु प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित करने के ट्रस्ट के फैसले पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि इस समय कोरोना संकट की विकरालता को ध्यान में रखकर अयोध्या में मंदिर निर्माण हेतु भूमि पूजन के कार्यक्रम को स्थगित कर देना चाहिए।शरद पवार तो यह तंज करने से भी नहीं चूके कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो जाने से क्या कोरोना वायरस देश से भाग जाएगा ।उधर कांग्रेस पार्टी ने गुजरात में स्थित सोमनाथ मंदिर के निर्माण के कार्यक्रम में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित नेहरू के भाग न लेने के प्रसंग की याद दिलाते हुए प्रधानमंत्री मोदी को यह सलाह दे डाली है कि एक धर्म निरपेक्ष देश के प्रधानमंत्री होने के नाते उन्हें भी राम मंदिर के भूमि पूजन कार्यक्रम में सम्मिलित नहीं होना चाहिए । आश्चर्य की बात तो यह है कि ये दोनों पार्टियां महाराष्ट्र की जिस गठबंधन सरकार में शामिल हैं उसकी मुखिया शिव सेना को न तो भूमिपूजन कार्यक्रम की तिथि ५अगस्त होने पर आपत्ति है और न ही उसे उक्त कार्यक्रम में प्रधानमंत्री को आमंत्रित किए जाने से कोई दिक्कत है।
उसकी असली पीड़ा तो इस बात को लेकर है कि उसे उक्त कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित नहीं किया गया। शिवसेना सांसद एवं पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’के संपादक संजय राऊत का कहना है कि जिस पार्टी ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की बाधाएं हटाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया उसे मंदिर निर्माण से जुड़े कार्यक्रम में शामिल होने के लिए किसी निमंत्रण की आवश्यकता नहीं है।
वास्तव में मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन की तिथि ५ अगस्त तय किए जाने और प्रधानमंत्री मोदी को उसके लिए आमंत्रित किए जाने पर जो भी दल अपनी आपत्ति जता रहे हैं उनको केवल एक ही चिंता सता रही है कि कई सदियों से विवादित मुद्दे पर आम सहमति प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में कैसे बन गई। इससे मोदी की अद्भत सूझ-बूझ की निश्चित रूप से अहम भूमिका है। पिछले साल अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने जब अपना फैसला सुनाया था तबसे अब तक देश में जिस तरह सद्भाव और सौहार्द्र का माहौल बना हुआ है वह मोदी के नेतृत्व में भरोसे का परिचायक है और इससे यह संदेश भी मिलता है कि प्रधानमंत्री मोदी में कठिन से कठिन मुद्दों पर आम सहमति बनाने की अद्भुत क्षमता है।
शरद पवार अगर कोरोना संकट के कारण अयोध्या में भूमि पूजन की तारीख ५अगस्त से आगे बढाए जाने के पक्ष में हैं तो उनसे यह पूछा जा सकता है कि उनकी पार्टी महाराष्ट्र में जिस गठबंधन सरकार का हिस्सा है वह सरकार अपने राज्य में कोरोना संक्रमण को विकराल होने से रोकने में क्यो असफल रही है ।
उन्हें अगर राममंदिर के भूमि पूजन हेतु प्रधानमंत्री मोदी के अत्यंत संक्षिप्त प्रवास पर अयोध्या जाने से कोरोना के विरुद्ध लड़ाई धीमी पड़ने की आशंका दिखाई पड़ रही है तो उन्हें सबसे पहले राज्य की गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री और शिवसेना के सुप्रीमो उद्धव ठाकरे को यह परामर्श देना चाहिए कि महाराष्ट्र में कोरोना संकट जब तक पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाता तब तक वे राज्य के बाहर कदम रखने का विचार मन
में न लाएं। शरद पवार को यह बात अच्छी तरह ज्ञात है कि उद्धव ठाकरे अयोध्या में आयोजित भूमि पूजन समारोह में सम्मिलित होने के लिए इतने व्याकुल हैं कि कोई औपचारिक आमंत्रण मिले बिना भी वे५अगस्त को अयोध्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कोई संकोच नहीं करेंगे वैसे उद्धव ठाकरे की यह मंशा पूरी होने में संदेह की गुंजाइश नहीं है क्योंकि अयोध्या के भूमि पूजन कार्यक्रम में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी आमंत्रित किया जा रहा है। अब देखना यह है कि राकांपा के सुप्रीमो शरद पवार क्या उन्हें ५अगस्त को अयोध्या जाने से रोकने में सफल हो पायेंगे। यहां उद्धव ठाकरे से भी यह सवाल करना ग़लत नहीं होगा कि वे अगर शिवसेना को हिंदुत्व की सबसे कट्टर समर्थक पार्टी बताने पर गर्व करते हैं तो राज्य में दो हिंदू साधुओं की निर्मम हत्या को केवल एक गलतफहमी का परिणाम बताकर उसकी गंभीरता को कम कैसे किया जा सकता है।कांग्रेस पार्टी को भी इस हकीकत को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए कि अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर के निर्माण में जब मुस्लिम समुदाय के द्वारा भी सहयोग करने में दिलचस्पी दिखाई जा रही है तब उससे खुद को दूर रखने की प्रधानमंत्री मोदी को दी गई सलाह का कोई औचित्य नहीं ठहराया जा सकता।
अब जबकि सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले सेअयोध्या विवाद की सुखद परिणिति हो चुकी है तब अगर कोई भी दल कोई नया विवाद खड़ा करके मंदिर निर्माण में व्यवधान पैदा करना चाहता है तो अपने प्रयास में सफलता की उम्मीद नहीं करना चाहिए। करोड़ों देश वासी अयोध्या में भगवान राम के भव्य निर्माण के शुभ आरंभ की आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे हैं इसलिए मंदिर निर्माण में व्यवधान पैदा करने की किसी भी राजनीतिक दल की कोशिश को जनता का थोडा सा भीसमर्थन मिलने की दूर दूर तक कोई संभावना नहीं है। विरोधी दलों को तो अब यह चिंता करनी चाहिए कि अगर अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर का निर्माण कार्य निश्चित समय सीमा के भीतर पूर्ण हो गया तो आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा की और भी प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी को वे कैसे रोक पाएंगे।
देश की जनता से भाजपा ने तीन वादों में से दो वादे तो उसनेे पूर्ण कर दिए हैं। गत वर्ष ५ अगस्त को मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद ३७० को निष्प्रभावी किया । इस वर्ष ५अगस्त को अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर के निर्माण हेतु भूमि पूजन कार्यक्रम संपन्न होने जा रहा है ।यह निश्चित रूप से दिलचस्पी का विषय है कि करता अगले साल ५ अगस्त को समान नागरिक संहिता लागू करने का संयोग बनने जा रहा है।