खेल पुरस्कार 2020: क्यों डरे सहमे हैं दावेदार
राजेंद्र सजवान
राष्ट्रीय खेल दिवस के उपलक्ष में देश के राष्ट्रपति द्वारा श्रेष्ठ खिलाड़ियों और कोचों को दिए जाने वाले खेल पुरस्कार समारोह का आयोजन 29 अगस्त को हो पाएगा या नहीं फिलहाल कहना मुश्किल है। लेकिन इतना तय है की खेल मंत्रालय की देख रेख में गठित 12 सदस्यीय पैनल अगले दो दिनों में श्रेष्ठ का चयन करने जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के सेवा निवृत जस्टिस मुकुंदकम शर्मा की अगुवाई में गठित पैनल में पूर्व क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग, पूर्व हॉकी कप्तान सरदार सिंह, पैरालंपिक की रजत पदक विजेता दीपा मलिक सहित कुल 12 नाम शामिल है। चूँकि महामारी के चलते नियमों में कुछ बदलाव किए गए जिन्हें लेकर आवेदन करने वालों में से ज़्यादातर ने पहले ही उम्मीद छोड़ दी है। कुछ एक तो यहाँ तक कह रहे हैं कि जिन्हें पुरस्कार दिए जाने हैं उनका फ़ैसला तो पहले ही हो चुका है।
17 और 18 अगस्त को बारह सदस्यीय कमेटी खेल रत्न, द्रोणाचार्य पुरस्कार, अर्जुन पुरस्कार और ध्यान चन्द पुरस्कार के हकदारों का फ़ैसला करेगी। हालाँकि सभी पुरस्कारों के लिए रिकार्ड तोड़ आवेदन मिले हैं लेकिन खेल रत्न के लिए तीन चार नामों पर खास चर्चा हो सकती है। इसी प्रकार अर्जुन पुरस्कारों के लिए एशियाड और कामनवेल्थ खेलों में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को आसानी से चिन्हित किया जा सकता है। बड़ी समस्या द्रोणाचार्य और ध्यान चंद पुरस्कारों को लेकर हो सकती है। अक्सर देखा गया है कि बड़े विवाद का कारण भी यही पुरस्कार रहे हैं। अनेक मौकों पर देखा गया है कि एक ओलंपिक पदक विजेता खिलाड़ी की आड़ में चार पाँच कोच द्रोणाचार्य बन जाते हैं।
दरअसल, खेल पुरस्कारों को लेकर हर साल कोई ना कोई खिलाड़ी और कोच नाराज़ ज़रूर हो जाता है। खेल मंत्रालय और साई पर आरोप लगाए जाते हैं। कुछ एक अवसरों पर मामला कोर्ट तक भी पहुँचा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि खेल मंत्रालय द्वारा बनाए गए नियम पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं या उन्हें समझने में चयन समिति और आवेदक भी भूल कर जाते हैं। ओलंपिक, एशियाड, विश्व चैंपियनशिप और कामनवेल्थ खेलों के लिए दिए जाने वाले निर्धारित अंकों को लेकर पुरस्कार का निर्णय करने में भी चूक हो जाती है और विवाद हो सकते हैं।
यूँ तो हर साल राष्ट्रीय खेल पुरस्कार दिए जाते हैं लेकिन इस आर कोरोना के चलते पुरस्कार कमेटी का गठन देर से हो पाया। आम तौर पर खिलड़ियों और कोचों के लिए अलग अलग कमेटी गठित की जाती हैं लेकिन पिछले साल की तरह इस बार भी एक ही कमेटी का गठन किया गया है, जिसे लेकर आवेदक कोचों और खिलाड़ियों के माथे पर पहले ही बाल पड़ गये हैं। एक और चिंता इस बात को लेकर है कि महामारी के चलते पुरस्कार की दावेदारी के लिए खिलाड़ियों और गुरुओं को खुद ही आन लाइन आवेदन करना पड़ा है। हालाँकि ऐसा आवेदकों की सुविधा के लए किया गया ,क्योंकि लॉक डाउन के चलते उनके नाम की सिफारिश करने वालों को खोजना आसान नहीं होता। ऐसे में अवार्ड कमेटी को अतिरिक्त बोझ से बचाने के लिए शुरुआती स्क्रीनिंग कर ली गई है और अब पैनल के सामने सिर्फ़ चुने गए नाम ही भेजे जाएँगे। ज़ाहिर है आवेदन करने वाले बहुत से खिलाड़ी-कोच डरे सहमे हैं। उन्हें डर है की कहीं उनका नाम पहले ही लिस्ट से गायब ना कर दिया गया हो।
लेकिन खेल मंत्रालय महामारी के चलते पुरस्कारों को लेकर कोई विवाद खड़ा नहीं करना चाहता। मंत्रालय सूत्रों के अनुसार सभी अधिकारियों और पैनल को गंम्भीरता से निर्णय लेने के लिए कहा गया है ताकि कोई भी योग्य और सही हकदार छूट ना जाए। लेकिन नाराज़ और असंतुष्टों की संख्या कम होने वाली नहीं है। इसलिए क्योंकि कुछ खिलाड़ी और कोच अपनी योग्यता और उपलब्धियों का आकलन अपने स्तर पर करते हैं और दावा खारिज होने पर पुरस्कार समिति , खेल मंत्रालय और साई को जमकर कोसते हैं। यह परंपरा सी बन गई है, जिसका निर्वाह इस बार भी किया जाएगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि खेल पुरस्कार समितियाँ हमेशा निष्पक्ष और ईमानदार रही हैं। फिरभी विश्व व्यापी महामारी के चलते यह उम्मीद की जा रही है कि जिस साल को पूरी दुनिया भुला देना चाहती है, उसे भारतीय खेल हस्तियाँ हमेशा याद रखेंगी। यह तब ही होगा जब खेल पुरस्कारों के लिए सर्वथा योग्य और श्रेष्ठ का चयन किया जाएगा।