राम होते तो उन्हें भी देना पडता जवाब: कुमकुम झा


नई दिल्ली। साहित्य को समाज का दर्पण यूं ही नहीं कहा गया है। साहित्य अकादमी समय के अनुरूप व्यवहार भी कर रही है। कोरोना काल में डिजिटल माध्यम से वह अपनी गतिविधि जारी रखे हुए है। वेबलाइन साहित्य श्रृंखला के अंतर्गत आयोजित मैथिली कविता पाठ आयोजन में लेखिका और शिक्षिका कुमकुम झा, कवि और लेखक नारायण झा और संजीव शमां ने अभी के दौर में अपनी बातें रखीं।

इस आयोजन में कवियित्री कुमकुम झा ने अपने वक्तव्य की शुरुआत मिथिला के संदर्भ में भगवान श्रीराम की प्रासंगिकता की बात की। इस कडी में उन्होंने अपनी कविता का पाठ भी किया। यह कविता राम से सवाल जवाब के रूप में था, जिसमें मिथिला के लोग आज की परिस्थिति में उनसे क्या सवाल करते, यह दर्शाया गया है। हिन्दी और मैथिली में समान रूप से लिखने वाली कुमकुम झा ने अपनी रचनाओं और कई संदर्भों के माध्यम से वर्तमान परिवेश पर बात की।

कार्यक्रम के दौरान कवित और लेखक नारायण झा ने कहा कि सबसे पहले इस आयोजन के लिए साहित्य अकादमी को बधाईं दी। काल शीर्षक कविता के माध्यम से उन्होंने मानवीय संवदेना और मिथिला की लोकपरंपरा की बात की। वहीं, संजीव शमां ने आह्वान शीर्षक कविता के माध्यम से मिथिला की समस्या और उसके समाधान की बात की।

कार्यक्रम का बेहतर संचालन साहित्य अकादमी के एन सुरेश बाबू ने किया। उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी लगातार साहित्यिक गतिविधियां कराती रही हैं। वर्तमान समय के अनुरूप अकादमी वेबलाइन साहित्य श्रृंखला का आयोजन कर रही है। इसके अंतर्गत मैथिली साहित्य मंच का आयोजन किया गया। इसमें तीनों वक्ताओं ने बेहतर रचना का पाठ किया। अपनी बातों को रखा। 

 

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