प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता ही पर्यावरण संरक्षण की बुनियाद: भारत भूषण
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: भारतीय शिक्षण मण्डल के दिल्ली प्रान्त द्वारा समालखा, पानीपत, हरियाणा में आयोजित त्रिदिवसीय अभ्यास वर्ग के दौरान बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिल्ली प्रान्त कार्यवाह भारत भूषण अरोड़ा ने कहा कि प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता ही पर्यावरण संरक्षण की बुनियाद है। हमें उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का उचित एवं त्यागपूर्वक उपयोग करना होगा, जिससे भविष्य में आने वाले पर्यावरण संकट से बचा जा सके।
पानी बचाकर, पेड़ लगाकर, एवं प्लास्टिक का उपयोग न करके आम भारतीय नागरिक भी पर्यावरण संरक्षण के कार्य में सहभागी बन सकता है। भारतीय दर्शन में सभी जीवों के लिए प्राकृतिक संसाधनों में हिस्सेदारी की बात देखने को मिलती है। सदियों से भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता में समभाव की दृष्टि रही है, हमारे वेद-पुराण इसकी पुष्टि करते हैं।
अरोड़ा ने वर्तमान समाज के सन्दर्भ में बात करते हुए कहा कि सबसे पहले हमें अपने परिवार की संस्था को मजबूत करना होगा, इसके लिए आवश्यक है कि परिवार के सदस्यों के मध्य संवाद हो, और इसमें बाधा डालने वाली तकनीक तथा तकनीकी उपकरणों का उपयोग सीमित किया जाय। नागरिकों में कर्तव्य बोध का भाव ही एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकता है, साथ ही हमें समानता के भाव को आत्मसात करना होगा जिससे कोई भी ताकत हमें जाति अथवा वर्ग में बाँटकर अलग न कर सके।
आज के भारत में एकात्म भाव का जागरण अहम है, यह भाव न सिर्फ हमें जोड़ने के लिए है अपितु एक साथ मिलकर एक लक्ष्य के साथ एक दिशा में आगे बढ़ने का है। उन्होंने आगे कहा कि स्वदेशी केवल विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार नहीं है।
स्व के भाव का जागरण आवश्यक है। हमें स्वाधीनता तो मिली है, हमें अगले कुछ वर्ष में स्वाधीनता से स्वतंत्रता एवं स्वतंत्रता से स्वाभिमान की यात्रा की ओर अग्रसर होना है।
इस अवसर पर भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री बी. आर. शंकरानंद ने कहा कि अकर्तापन नेतृत्व का पहला लक्षण है।
एक कुशल नेतृत्वकर्ता आत्ममुग्धता से मुक्त होकर आगे बढ़ता है। वह अपने कर्तव्य का दृढ़ता पूर्वक पालन करता है, साथ ही अपने जीवन के प्रत्येक क्षण का सार्थक उपयोग करता है। तपस्वी व्यक्ति स्वयं जलकर भी समाज में प्रकाश फैलाने का कार्य करता है । मूल्य आधारित लक्ष्य ही सास्वत सफलता का आधार है। लक्ष्य कभी छोटा नहीं होना चाहिए, लक्ष्य लोककल्याण से सम्बन्धित तथा वृहत होना चाहिए। एक कुशल नेतृत्वकर्ता आन्तरिक दृढ़ता एवं वाह्य कुशलता में दक्ष होना चाहिए। नेतृत्व करते समय सहयोगियों को साथ लेकर आगे बढ़ने से लक्ष्य निर्धारित करने में आसानी होती है। सफलता एवं असफलता को समान दृष्टि से देखने वाला ही एक आदर्श नेतृत्वकर्ता होता है।
भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय प्रचार-प्रमुख संजय पाठक ने कहा कि विमर्श, समाज की दृष्टि निर्माण करने में सहायक होता है। हमारे विचारों की दिशा इस बात पर निर्भर करती है कि हमारे आस-पास के विमर्श का स्वरुप क्या है। आज कई प्रकार की नकारात्मक शक्तियां समाज में द्वेष फैलाने के अनेकानेक कुत्सित प्रयास कर रही हैं, इनसे बचने के लिए हमें प्रयास करने होंगे। कुछ परिस्थितिजन्य विकार हमारे समाज में आ गई थी जिसे संशोधित करने का प्रयास किया जा रहा है। आदर्श एवं सशक्त समाज निर्माण के लिए अत्यधिक श्रम एवं सार्थक प्रयास की आवश्यकता है। मात्र द्रष्टा न बनकर, हमें राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान सुनिश्चित करना होगा।
अभ्यास वर्ग में दिल्ली प्रान्त अध्यक्ष प्रो अजय सिंह, प्रांत मंत्री प्रो० आदित्य प्रकाश त्रिपाठी, संगठन मंत्री गणपति तेति, सह-संगठन मंत्री राजीव नयन ओझा, धर्मेन्द्र तिवारी, बबिता सिंह, नरेश तंवर सहित ५० से अधिक शिक्षकों ने हिस्सा लिया ।