गंगा की तर्ज पर संवरेगी देश की छह विशाल नदियां, बेसिन प्रबंधन की जिम्मेदारी 12 तकनीकी शिक्षण संस्थाओं को सौंपी
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: आज देश को जलसमृद्ध बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कार्य आरंभ हुआ है। आगे के रास्ते में चुनौतियां होगी लेकिन जिस गति से देश में नदी बेसिन प्रबंधन पर काम हो रहा है। यदि इस काम की गति और प्रगति ऐसे ही बनी रही तो विकसित और जलसमृद्ध भारत का सपना जल्दी ही साकार होगा।
इतना ही नहीं विश्व के अन्य देश नदी बेसिन प्रबंधन का ज्ञान प्राप्त करने के लिए भारत की ओर देखेंगे। यह बात केंद्र सरकार में जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने छह नदियों के बेसिन प्रबंधन में शैक्षणिक और शोध संबंधी सहयोग के लिए 12 तकनीकी संस्थाओं के साथ अनुबंध पत्र हस्ताक्षर और हस्तांतरण समारोह में कही। यह अनुबंध नेशनल रिवर कन्जर्वेशन प्लान के तहत जलशक्ति मंत्रालय और शैक्षणिक संस्थाओं के मध्य हुए हैं।
इस परियोजना के तहत महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा और पेरियार नदी के बेसिन प्रबंधन में कंडीशन एसेसमेंट एंड मैनेजमेंट प्लान के लिए आवश्यक शोध, मॉनिटरिंग और तकनीकी जानकारियों को एकत्रित करने की जिम्मेदारी 12 संस्थाओं (विभिन्न आईआईटी, एनआईटी और नीरी) को सौंपी गई हैं। अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर एनआरसीडी की ओर से जी. अशोक कुमार और संबंधित संस्थाओं के डायरेक्टर ने किये।
नई दिल्ली के डॉ अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में आयोजित समारोह में इस परियोजना में सम्मिलित सभी संस्थाओं के प्रमुख और नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा और जलशक्ति मंत्रालय के पदाधिकारी उपस्थित थे।
समारोह के मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित करते हुए जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने आईआईटी कानपुर के नेतृत्व में संचालित सी-गंगा (सेंटर फॉर गंगा बेसिन मैनेजमेंट एंड स्टडीज) के कार्य की प्रशंसा करते हुए उपनिषद् के सूत्रवाक्य “एकोहम बहुष्याम्” का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि उपनिषद के सूत्र एकोहम बहुष्याम् अर्थात् एक का अनेक में विस्तार करते हुए सी-गंगा ने छह नदियों के बेसिन प्रबंधन में शैक्षणिक संस्थाओं को जोड़ते हुए अपने जैसे नए केंद्र बनाने का प्रयास किया है। जिस तरह सी-गंगा ने गंगा नदी के बेसिन प्रबंधन के तकनीकी पक्ष को मजबूत बनाने में योगदान दिया। उम्मीद है, यह सभी शैक्षणिक संस्थाएं भी पूरब, पश्चिम, मध्य और दक्षिण की नदियों के प्रबंधन के तकनीकी पक्ष को मजबूती प्रदान करेंगी।
अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि गंगा नदी को निर्मल बनाने के लिए पूर्व में भी कई प्रयास हुए किंतु जब माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में इसे मिशन का रूप दिया गया और प्रशासनिक तौर तरीकों के साथ अकादमिक ज्ञान को जोड़ा गया तब हमें बेहतर नतीजे देखने को मिले। बेहतर योजना और समुचित क्रियान्वयन की वजह से आज यूनेस्कों ने नमामी गंगे मिशन को विश्व के दस सर्वश्रेष्ठ संरक्षण एवं पुनर्जीवन अभियानों में शामिल किया है। गंगा की निर्मलता और अविरलता को कायम करने के उद्देश्य से नदी संरक्षण को जनआंदोलन का रूप देने के लिए माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे जीविकोपार्जन से जोड़ कर अर्थगंगा का सिद्धांत दिया और उन्हीं के पहल पर नदी संरक्षण और पुनर्जीवन योजना में ज्ञान आधारित बनाया गया। इस तरह नदी विज्ञान के क्षेत्र में देश में शोध और वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण का बढ़ावा मिला और ज्ञानगंगा रूपी एक ओर स्तंभ इस अभियान से जुड़ गया।
गंगा बेसिन मैनेजमेंट के दौरान हमें बहुत से अनुभव हुए हैं, जिसका उपयोग इन छह नदियों के बेसिन प्रबंधन की योजना बनाने में होना चाहिए साथ ही उन्होंने नदी संबंधी मामलों में अंतर्राज्यीय सहयोग और सामंजस्य बढ़ाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। समारोह को जलशक्ति मंत्रालय की सचिव सुश्री देवश्री मुखर्जी और नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के डायेक्टर जनरल श्री जी. अशोक कुमार ने भी संबोधित किया। सी-गंगा के संस्थापक अध्यक्ष डॉ विनोद तारे ने छह नदियों के कंडीशन असेसमेंट एंड मैनेजमेंट प्लान के बारे में सारगर्भित जानकारी दी।
इन संस्थाओं को मिली जिम्मेदारी
नर्मदा बेसिन प्रबंधन – आईआईटी इंदौर और आईआईटी गांधीनगर
गोदावरी बेसिन प्रबंधन – आईआईटी हैदराबाद और नीरी नागपुर
महानदी बेसिन प्रबंधन – आईआईटी रायपुर और आईआईटी राऊरकैला
कृष्णा बेसिन प्रबंधन – एनआईटी वारंगल और एनआईटी सूरतकल
कावेरी बेसिन प्रबंधन – आईआईएससी बेंगलौर और एनआईटी त्रिचि
पेरियार बेसिन प्रबंधन – आईआईटी पलक्कड