बहुत सीमित है इस चिराग की रोशनी का दायरा
कृष्णमोहन झा
केंद्र में सत्तारूढ राजग के एक घटक लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने बिहार विधान सभा के आगामी चुनाव जदयू के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के नेतृत्व में नहीं लड़ने का फैसला कर लिया है इसलिए उन्होंने राज्य में राजग से नाता तोड़ने की घोषणा कर दी है यद्यपि लोजपा भाजपा नीत केंद्र सरकार का हिस्सा बनी रहेगी। चिराग पासवान के इस फैसले में आश्चर्य की कोई बात नहीं है क्योंकि वे राज्य विधान सभा चुनावों की घोषणा के काफी पहले से ही नीतिश कुमार की कार्यशैली की खुले आम आलोचना कर रहे थे। मुख्यमंत्री के रूप में नीतिश कुमार के फैसलों पर भी उन्होंने खूब निशाने साधे। चिराग पासवान ने पहले तो अपने दल के लिए इतनी बडी संख्या में सीटों की मांग की जिससे चुनाव के बाद वे किंग मेकर की भूमिका में आ सकें। उनकी यह मांग जब पूरी नहीं हुई तो बिहार में सत्तारूढ गठबंधन से नाता तोड़ने की घोषणा कर दी।
विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि चिराग पासवान ने उन सीटों पर अपनी अपनी पार्टी के उम्मीदवार खड़े नहीं करने का फैसला किया है जहां भाजपा अपने उम्मीदवार खड़े करेगी। गौरतलब है कि राज्य विधान सभा चुनावों में सीटों के बंटवारे पर हुए समझौते में भाजपा के हिस्से में 121 तथा जदयू के हिस्से में 122सीटें आई हैं। जदयू अपने हिस्से की सीटों में ही जीतन राम मांझी की हम पार्टी के लिए 7 सीटें छोड़ेगी।
चिराग पासवान ने यह विश्वास व्यक्त किया है कि राज्य विधान सभा के चुनावों में भाजपा और लोकजन शक्ति पार्टी मिलकर इतनी सीटें हासिल कर लेंगी कि नई सरकार बनाने के लिए जदयू के सहयोग की आवश्यकता ही न पड़े।
चिराग पासवान की बातें इन अटकलों को जन्म दे रही हैं कि भाजपा और लोकजन शक्ति पार्टी के बीच गुप्त समझौता हो गया है परंतु भाजपा ने इन अटकलों को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि लोकजन शक्ति पार्टी को अपने चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम या फोटो का उपयोग नहीं करने दिया जाएगा लेकिन भाजपा ने अभी यह स्पष्ट नहीं किया है कि चुनावों के बाद वह किसी भी स्थिति में लोक जनशक्ति पार्टी के साथ मिलकर सरकार नहीं बनाएगी। भाजपा ने चिराग पासवान को यह अल्टीमेटम भी दिया है कि राजग के जिस घटक को भी नीतीश कुमार के नेतृत्व मे चुनाव लड़ना गवारा नहीं है वह राजग का हिस्सा बनकर नहीं रह सकता।
सीटों के बटवारे में राजग द्वारा लोकजन शक्ति पार्टी के लिए एक भी सीट न छोड़े जाने से अब यह तय माना जा रहा है कि लोक जन शक्ति पार्टी के साथ समझौते की सारी संभावनाओं पर पूर्ण विराम लग चुका है। जाहिर सी बात है कि बिहार में चुनावों के बाद सत्ता के नए समीकरण बन सकते हैं और उसकी पृष्ठभूमि अभी से तैयार होने लगी है। चिराग पासवान ने हाल में ही राजद के मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री लालूप्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव को अपना छोटा भाई बताकर जिस तरह उन्हें अपनी शुभकामनाएं दी हैं उसके भी मायने निकाले जा रहे हैं। जदयू उनके इस बयान से चौकन्ना हो गई है क्योंकि चिराग पासवान को नीतिश कुमार की आलोचना से तो कोई परहेज नहीं है परंतु तेजस्वी यादव की आलोचना करते समय वे शब्द चयन में बहुत सावधानी बरतते हैं ।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने चिराग पासवान द्वारा उनकी सरकार के बारे में की जा रही आलोचनात्मक टिप्पणियों पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि कोई उनकी सरकार के बारे में क्या बोलता है यह जानने में उनकी कोई रुचि नहीं है और न ही इन टिप्पणियों से उन्हें कोई फर्क पडता है। उन्होंने याद दिलाया कि बिहार विधान सभा में लोक जन शक्ति पार्टी की 2 सीटें होने के बावजूद रामविलास पासवान अगर राज्यसभा के लिए निर्वाचित हो गए तो उसमें भाजपा और जदयू की ही मुख्य भूमिका थी। सीटों के बंटवारे की घोषणा करने के लिए नीतिश कुमार के साथ आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने दो टूक कहा कि भाजपा ने तय कर लिया है कि राज्य विधान सभा चुनाव वह नीतिश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ेगी। राज्य में राजग से अलग होने और नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव न लड़ने के चिराग पासवान के फैसले पर सुशील मोदी ने कहा कि राम विलास पासवान अगर इस समय स्वस्थ होते तो उनसे बातचीत कर कोई समाधान निकाला जा सकता था परंतु उनकी अस्वस्थता के कारण यह संभव नहीं हो सका ।
कुल मिलाकर बिहार में चिराग पासवान साथ तो खडे दिखना चाहते हैं परंतु नीतीश कुमार का नेतृत्व उन्हें मंजूर नहीं है लेकिन वे यह जरूर चाहते हैं कि उनकी पार्टी केंद्र में मोदी सरकार का हिस्सा बनी रहे। चिराग पासवान कहते हैं कि गठबंधन की राजनीति में यह सब होता रहता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि चिराग पासवान ने इस समय बड़े ऊंचे सपने देख रहे हैं, उन्हें यह भरोसा है कि विधान सभा चुनावों में लोक जनशक्ति पार्टी इतनी सीटें जीतने में कामयाब हो जाएगी कि सत्ता की चाबी उनके जेब में ही रहेगी इसीलिए वे नीतीश सरकार के कथित भ्रष्टाचार की जांच कराये जाने की बात तक कहने लगे हैं। चिराग पासवान के बयानों से एक बात तो साफ हो गई है कि वे इस चुनावी वैतरणी में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के सहारे अपनी पार्टी की नैया पार लगाना चाहते हैं। वे भाजपा का दामन भी नहीं छोड़ना चाहते हैं। दरअसल उनके बयान भाजपा के लिए असहज स्थिति पैदा कर रहे हैं और अब यह भी कहा जाने लगा है कि वे भाजपा के इशारे पर यह खेल खेल रहे हैं इसीलिए राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी को यह कहना पड़ा कि चिराग पासवान चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी के नाम अथवा फोटो का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे।
उधर चिराग पासवान कहते हैं कि प्रधानमंत्री तो पूरे देश के हैं किसी एक दल के नहीं। चिराग पासवान की यह घोषणा कि लोक जनशक्ति पार्टी भाजपा के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं खड़े नहीं करेगी, भाजपा को बार बार यह सफाई पेश करने के लिए विवश कर रही है कि बिहार में उसका लोक जन शक्ति पार्टी के कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध नहीं है। भाजपा अब इस असमंजस से भी नहीं उबर पा रही है कि केंद्र सरकार में उसकी हिस्सेदारी के बारे में क्या फैसला किया जाए। गौरतलब है कि लोक जन शक्ति पार्टी के संस्थापक राम विलास पासवान मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल से लेकर अब तक मंत्री पद पर आसीन हैं ।
‘हम ‘के अध्यक्ष जीतन राम मांझी का कहना है कि जब लोक जन शक्ति पार्टी बिहार विधान सभा चुनावों में राजग का हिस्सा नहीं रहना चाहती तो केंद्र सरकार में मंत्रीपद पर बने रहने भी उसे कोई नैतिक अधिकार नहीं है। इस तरह की बातें निसंदेह भाजपा के लिए असहज स्थिति पैदा कर रही हैं और देर सबेर उसे इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करना पड़ेगा। वैसे बिहार की राजनीति में कुछ भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आज की तारीख में इसके सबसे बडे उदाहरण हैं जिन्होंने 2015 के चुनावों में मुख्यमंत्री पद के लिए अपने घोर विरोधी लालू प्रसाद यादव से भी हाथ मिलाने में कोई संकोच नहीं किया और दो साल के अंदर ही लालू यादव का हाथ झटक कर उस भाजपा के साथ सत्ता में आ गए जिसके साथ कभी अपने 18 साल पुराने संबंधों को उन्होंने एक झटके में तोड़ डाला था। भाजपा की मजबूरी यह है कि बिहार में नीतीश कुमार के कद का कोई नेता नहीं है इसलिए नीतीश कुमार की बड़े भाई की हैसियत में कोई अंतर नहीं आया। यद्यपि इन चुनावों में नीतीश कुमार अब सुशासन बाबू की छवि के आधार पर वोट मांगने की स्थिति में नहीं हैं लेकिन उन्हें उम्मीद है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सहारे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा बनाए रखने में सफल हो जाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)