सुप्रीम कोर्ट ने सद्गुरु के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ पुलिस कार्रवाई पर रोक लगाई
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें तमिलनाडु के कोयंबटूर में आध्यात्मिक गुरु सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा फाउंडेशन के खिलाफ पुलिस कार्रवाई की अनुमति दी गई थी और मामले को अपने पास स्थानांतरित कर लिया।
सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला ईशा फाउंडेशन द्वारा मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के बाद आया, जिसमें तमिलनाडु सरकार को फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों का विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया था।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, “पुलिस उच्च न्यायालय के आदेश के निर्देशों के अनुसरण में कोई और कार्रवाई नहीं करेगी। उक्त आरोपों के संदर्भ में, अधिकार क्षेत्र वाली कोयंबटूर ग्रामीण पुलिस जांच करेगी और इस न्यायालय के समक्ष स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेगी।”
सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने पीठ से स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने और उसे प्रस्तुत करने को कहा। अगली सुनवाई 18 अक्टूबर को होगी।
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश कोयंबटूर में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एस कामराज द्वारा दायर याचिका पर आया है, जिन्होंने आरोप लगाया था कि उनकी दो बेटियों का ब्रेनवॉश किया गया था और उन्हें ईशा फाउंडेशन आश्रम के योग केंद्र में बंधक बनाकर रखा गया था।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्होंने कामराज की बेटियों से बात की, जो सुनवाई में वर्चुअल रूप से उपस्थित हुईं और कहा कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं।
कामराज ने याचिका में आरोप लगाया था कि ईशा फाउंडेशन लोगों का ब्रेनवॉश कर रहा है, उन्हें साधु बना रहा है और उन्हें अपने परिवारों से संपर्क बनाए रखने से रोक रहा है।
हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश के बाद पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने कोयंबटूर में ईशा फाउंडेशन में जांच की।
कामराज की याचिका पर सुनवाई करते हुए, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनकी 42 और 39 वर्षीय दो बेटियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध केंद्र में रखा जा रहा है, मद्रास उच्च न्यायालय ने फाउंडेशन की प्रथाओं पर सवाल उठाए थे। हाईकोर्ट ने सवाल किया कि सद्गुरु ने महिलाओं को भिक्षुणी के रूप में रहने के लिए क्यों प्रोत्साहित किया, जबकि उनकी खुद की बेटी विवाहित और घर बसा चुकी है।
याचिका में फाउंडेशन के खिलाफ लंबित कई आपराधिक मामलों का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें ईशा योग केंद्र से जुड़े एक डॉक्टर के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत हाल ही में दर्ज मामला भी शामिल है।
ईशा फाउंडेशन ने आरोपों को निराधार बताते हुए एक बयान जारी किया। बयान में कहा गया, “ईशा फाउंडेशन की स्थापना सद्गुरु ने लोगों को योग और आध्यात्मिकता प्रदान करने के लिए की थी। हमारा मानना है कि वयस्क व्यक्तियों के पास अपना रास्ता चुनने की स्वतंत्रता और बुद्धि है।”
फाउंडेशन ने व्यक्तियों पर विवाह या भिक्षुणी बनने के लिए दबाव डालने से इनकार किया और कहा कि ये व्यक्तिगत विकल्प हैं।
इसमें कहा गया, “जो कोई भी फाउंडेशन के खिलाफ गलत सूचना फैलाने में लिप्त होगा, उसके खिलाफ देश के कानून के अनुसार सख्ती से निपटा जाएगा।”