समाज और सरकार के लिए महत्वपूर्ण हैं संघ प्रमुख के सुझाव
कृष्णमोहन झा
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत की गणना देश की उन दिग्गज विभूतियों में प्रमुखता से की जाती है जिनके उदबोधन देश के जनमानस पर दीर्घकाल के लिए अपना प्रभाव छोडते हैं। उनके विचार लोगों को सोचने के लिए विवश करते हैं और उन पर गहन चर्चा भी होती है। मोहन भागवत के सारगर्भित उदबोधन न केवल सरकार के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होते हैं अपितु समाज के लिए भी उनमें सकारात्मक संदेश छिपा होता है। वे पूरी स्प्ष्टता, निपष्क्षताऔर निर्भीकता के साथ बेबाक बयानी करते हैं। कभी कभी उनके बयानों से विवाद भी जन्म लेते हैं परंतु मोहन भागवत को सदैव अपने बयानों पर अडिग रहते देखा गया है क्योंकि वे जो कुछ भी बोलते हैं, उसके पीछे उनका गहरे चिंतन को समझना कठिन नहीं होता। उनकी जुबान कभी नहीं फिसलती।
उनके उदबोधनों की सबसे बडी विशेषता यह है कि वे केवल समस्या की गंभीरता पर चर्चा नहीं करते अपितु उसके संतोषजनक और संतोष जनक समाधान की राह भी दिखाते हैं। इसीलिए मोहन भागवत के विचार आज संघ और समाज के लिए जितने महत्वपूर्ण हैं उतने ही महत्वपूर्ण सरकार के लिए भी हैं। गत अगस्त माह में अयोध्या में श्रीराममंदिर भूमिपूजन समारोह के मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी उपस्थिति इसी सत्य को प्रमाणित कर रही थी।भव्य और गरिरमामय भूमि पूजन समारोह के मंच से अपने उदबोधन में श्रीरामचरित मानस की चौपाइयों को उदधृत करते हुए जब देशवासियों का यह आह्वान किया कि अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण होने तक वे अपने मन की अयोध्या को सजा लें तब उनके उस आह्वान में लोगों के लिए यह संदेश निहित था कि वे अपने विचारों को सात्विक बनाकर समाज में सांप्रदायिक सद्भाव,सौहार्द्र आपसी भाईचारे व प्रेम के वातावरण के निर्माण में सहभागी बनें।
इसमें कोई संदेह नहीं कि अयोध्या में मोहन भागवत का सारगर्भित और मार्मिक उदबोधन में देशवासियों को न केवल मंत्रमुग्ध बल्कि अभिभूत कर देने की भरपूर सामर्थ्य परिलक्षित की गई और उसकी गहरी छाप आज तक लोगों के मन मस्तिष्क पर अंकित है। मोहन भागवत ने इस साल अयोध्या के अलावा दो और यादगार और प्रेरणास्पद उदबोधन दिए हैं। पहला उदबोधन उन्होंने लगभग 6 माह पूर्व वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से यद्यपि संघ के स्वयंसेवकों के लिए दिया था परंतु वह हर देशवासी के लिए महत्वपूर्ण था उस समय सारे देश में सख्त लाकडाउन लागू था। अपने उस उदबोधन में उन्होंने लोगों से लागडाउन की पाबंदियों का पालन करने और लाक डाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित समाज के कमजोर और गरीब तबके के लोगों की खुलेदिल से मदद करने की अपील की थी। संघप्रमुख ने उस उदबोधन में स्वयंसेवकों से अच्छाई के रास्ते पर चलने और अपनी अ्छाई का लाभ समाज के दूसरे लोगों तक पहुंचाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहने की अपील की थी। जब कोरोना का प्रकोप तेजी से फैलने की आशंकाएं लोगों को भयभीत कर रही थीं तब संघ प्रमुख ने लोगों का मनोबल ऊंचा रखने के लिए जो संदेश दिया उसने लोगों को भय से उबरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संघ प्रमुख की इस बात का लोगों के मन मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव परिलक्षित हुआ कि भय से संकट और बढता है। मोहन भागवत ने मई में सख्त लाक डाउन के दौरान संघ के स्वयंसेवकों के लिए दिए गए उदबोधन के बाद गत माह विजयादशमी के शुभ अवसर पर नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में आयोजित परंपरागत शस्त्र पूजन समारोह के मंच से स्वयंसेवकों के लिए जो उदबोधन दिया उसमें देश के उस गरीब और कमजोर तबके के लोगों के प्रति उनकी गहरी संवेदना और सहानुभूति स्पष्ट झलक रही थी जो लाकडाउन के बाद से अब तक मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। संघ प्रमुख ने उन अभिभावकों के आर्थिक संकट को दूर करने के लिए विशेष प्रयास करने की जरूरत पर बल दिया जिनका रोजगार लाक डाउन के दौरान छिन जाने के कारण वे अपने बच्चों की शिक्षा में आने वाला खर्च उठाने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं ।
संघ प्रमुख ने इसी संदर्भ में प्रवासी मजदूरों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमें ऐसे लोगों की मदद के लिएं आगे आना होगा। संघ प्रमुख ने इस बात को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की कि ऐसी विकट परिस्थितियों में समाज में और घरों में मानसिक तनाव के कारण अवसाद में आकर गलत कदम उठाने की कुप्रवृति जन्म लेने की आशंका को निर्मूल सिद्ध करने के लिए समुपदेशन की व्यापक आवश्यकता है। मोहन भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवक तो मार्च में कोरोना संकट की शुरुआत होते ही सेवा कार्यों में जुट गए थे परंतु सेवा के इस नए चरण में उन्हें और सक्रिय प्रयास करने होंगे । यह एक तरह से राष्ट्र के पुनर्निर्माण का कार्य है इसमें सबको सहयोग देना होगा।
संघ प्रमुख ने मई में संघ के स्वयं सेवकों को दिए गए उदबोधन में स्वदेशी की अवधारणा पर जोर दिया था। इस स्वदेशी की अवधारणा को संघ प्रमुख कितना महत्वपूर्ण मानते हैं इसका अनुमान विजयादशमी के अवसर पर नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में दिए गए उनके उदबोधन से लगाया जा सकता है। मई में उन्होंने कहा था कि कोरोना संकट हमारे लिए स्वालंबन का संदेश लेकर आया है।हमें ‘स्व’ पर आधारित तंत्र पर निर्भर होना सीखना होगा। रोजगार मूलक,कमऊर्जा खाने वाला और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाला विचार हमारे पास ही है ।उसी को अमल में लाते हुए हमें ऩई तांत्रिकी, विकासनीति और उद्योग नीति पर आधारित युगानुकूल रचना तैयार करनी होगी। शासन को इसमें सहयोग देना होगा। हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि गुणवत्ता के मामलें में स्वदेशी उत्पाद विदेशों से उत्पादों की तुलना में कमतर साबित न हों।
कृषि के संदर्भमें स्वदेशी की अवथारणा से संघ प्रमुख का तात्पर्य है कि किसान को अपने बीज स्वयं बनाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। हमें अपने देश के किसान को इतना समर्थ बनाना होगा कि वह अपने लिए खाद,प्रतिरोधक दवाइयां व कीटनाशक स्वयं तैयार कर सके। संघ प्रमुख का मानना है कि किसान के पास अपने उत्पादन के भंडारण की सुविधा व कला होनी चाहिए । जब किसान को लाभ कमाने के कार्पोरेट जगत के चंगुल में न फंसते हुए, अथवा मध्यस्थों या बाजार की जकडन के जाल से अप्रभावित अपना उत्पादन अपनी मर्जी से कहीं भी बेचने की स्वतंत्रता होगी तभी उसे हम स्वदेशी कृषि नीति कहने के हकदार हो सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जिस आत्मनिर्भर भारत अभियानकी घोषणा की गई है वह स्वदेशी अवधारणा पर ही आधारित है। इस संबंध में भागवत के विचार प्रधानमंत्री के विचारों से मिलते जुलते हैं । भागवत भी यही मानते हैं कि हमें अपने उपयोग की वस्तुएं अपने ही देश के अंदर बनाने की क्षमता अर्जित करनी होगी।जिन वस्तुओं का निर्माण हम अपने देश में नहीं कर सकते हैं उनका विदेश से आयात करने के बजाय हमें यथासंभव उनके बिना भी अपना काम चलाने की आदत डालनी चाहिए ।देश में कोरोना संकट की शुरुआत के बाद भागवत ने जो उदबोधन दिए हैं उनमें उन्होंने सरकार और समाज के लिए ऐसे महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं जो समसामयिक चुनौतियों से निपटने में बेहद कारगर साबित हो सकते हैं इसीलिए उनके सुझावों की अनदेखी नहीं की जा सकती।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)