किसानों की मांग और सरकार के जिद का क्या होगा निर्णय ?
निशिकांत ठाकुर
बात आज से 101 वर्ष पहले की है। वर्ष 1919, तारीख 13 अप्रैल। बैसाखी वाले दिन निरपराध लोग जलियांवाला बाग में बैठकर अपने बैसाखी त्योहार का जश्न मना रहे थे। उसी समय बिना कोई चेतावनी अथवा किसी कारण के अपना खौफ पैदा करने के लिए निहत्थे , निरपराध लोगों पर ब्रिटानी हुकूमत के जनरल डायर ने 1600 राउंड गोलियां चलाकर सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। जलियांवाला गोलीकांड में मारे गए सरदार उधम सिंह के माता पिता भी थे। इस सम्पूर्ण घटनाक्रम को उस छोटे बालक ने अपनी आंखो से देखा था। युवा होकर वह बालक लंदन जाकर जनरल दायर को गोली का निशाना बनाया था।
फिर कई बार ऐसा हुआ, जब पंजाब के युवा बहकावे मे आकर खालिस्तान की मांग करते हुए आतंकवादी बन गए। सरकार को उन्हें पटरी पर लाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी। उस काल में पंजाब का जो विकास दर पिछड़ गया था, फिर से वहां के मेहनतकश किसानों ने अपनी लगन से ठीक किया और अब विकास की गाड़ी अपनी रफ्तार पकड़ ही रही थी कि केंद्र सरकार ने एक नया कृषि कानून लाकर फिर से उन्हें सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया। आंदोलन कर रहे किसानों की मांग सिर्फ यह है कि नए कृषि कानून जो उनके लिए अहितकारी है, उसे खत्म किया जाए नहीं, तो वह तब तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते रहेंगे, जब तक उनकी मांग मानकर उस तथाकथित नए कृषि कानून को केंद्रीय सरकार वापस नहीं ले लेती। धरना-प्रदर्शन अभी जारी है, जिसमे सरकार से कई दौर की बातचीत उनकी हो चुकी है। अगली बैठक अब 9 दिसम्बर को है, देखना अब यह है कि उस बैठक में कोई ठोस परिणाम निकलता है या नहीं।
इस किसान आंदोलन आंदोलन में हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर सरकार की भूमिका किसानों के प्रति ठीक नहीं रही। पंजाब से अपनी मांग मनवाने दिल्ली आ रहे किसानों के लिए हरियाणा सरकार सरकार ने निहायत शर्मनाक निर्णय लिया और उन निहत्थे किसानों को पहले हरियाणा में घुसने से रोककर उनके प्रति अमानवीय कृत्य किया। ठंडे पानी की बौछार , अश्रुगैस के गोले धुएधार छोड़कर फिर नेशनल हाईवे को काटकर उन्हें दिल्ली आने से रोककर अपनी खिल्ली उड़ाई । हरियाणा और दिल्ली के हर प्रवेश द्वार को काटकर उन्हें रोकना चाहा , लेकिन उन्हें अपनी बात कहने से कोई कैसे रोक सकता है, जो स्वयं अपने लिए राशन पानी लेकर शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करते हुए केंद्रीय सरकार से गुहार लगाने आ रहे थे। आखिर वह दिल्ली की सीमा में प्रवेश कर ही गए । अब तो हरियाणा के किसान भी इसमें शामिल हो गए हैं अब फिर खट्टर सरकार क्या करेंगे ? राजनीति से अनभिज्ञ और बिना चुनाव लड़े जो सत्ता की ऊंची कुर्सी पर बैठ जाते हैं अंत में उनका कोई पुरसाहाल नहीं होता । किसानों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार करके उनकी सरकार ने यह सिद्ध कर दिया है।
अब रही केंद्रीय कृषि मंत्री की बात उन्हें इतनी फुर्सत नहीं कि इस कपकपाती ठंड में खुले आसमान के नीचे जीने मारने के लिए किसानों को छोड़ दिया। पहले 3 दिसम्बर को तारीख दी गई, उस तारीख को कोइं फैसला नहीं हुआ फिर 5 और अब 9 दिसम्बर की तारीख निर्धारित थी। देखना यह है कि क्या उस दिन भी सही निर्णय लिया जा सकेगा या नहीं। किसान तो इस बात के लिए अपना निर्णय सरकार को बता चुके हैं कि उन्हें यह नया काला कृषि कानून नहीं चाहिए। 12 दिनों से चल रहे नए कृषि कानून के खिलाफ धरना प्रदर्शन जारी है। 8 दिसंबर को पूरा भारत बंद होगा। यह संभवतः पहली बार है कि किसानों ने देशव्यापी बंद का आह्वान किया है और देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस सहित दर्जनों अन्य दल उनके पीछे समर्थन करने को तैयार है। इधर केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कहते हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम एस पी) जारी रहेगा । सरकार इसे लिखित में भी देने को तैयार है।
दूसरी ओर, किसान कुछ संख्या में बाहरी दिल्ली के बुराड़ी में संत निरंकारी मैदान में और हजारों की संख्या में सिंघु बाॅडर पर डटे हुए हैं। साथ ही किसानों ने 8 दिसम्बर को भारत बंद भी बुलाया है इस बंद को मजबूती देने के लिए विपक्ष ने भी अपना समर्थन दे दिया है । कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राकांपा प्रमुख शरद पवार , माकपा महासचिव सीताराम येचुरी सहित कई विपक्षी नेताओं ने संयुक्त बयान दे कर 8 दिसम्बर के बंद का समर्थन किया है । जबकि 9 दिसम्बर को छठे दौर की बातचीत उनकी सरकार से होनी है। भारतीय संविधान के अनुसार, भारत के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात शांतिपूर्ण तरीके से सरकार से कहने को अधिकार है और यही इस आंदोलन में किसान कर भी रहे थे , लेकिन कुछ मीडिया ने यह भ्रम फैला दिया की इस आंदोलन में खालिस्तानी और आतंकवादी संगठन अपना हाथ साफ कर रहे हैं। पता नहीं किस षडयंत्र के तहत ऐसा भ्रम फैलाया गया, जिसका दुष्परिणाम यह हुआ अब यह आंदोलन उग्र रूप धारण करता चला जा रहा है।
अब ऐसा भी नहीं लगता कि सरकार इस मुद्दे को शांत नहीं करना चाहतीं है । वह भी चाहती है कि किसानों को संतुष्ट करके वापस उन्हें अपने घर भेजा जाए, पर जो जहर कुछ मीडिया द्वारा बो दिया गया है, उसे सही रास्ते पर लाने में हो सकता है कुछ समय लगे , लेकिन आंदोलन तो शांत होगा ही। दोनों पक्षों को एक दो कदम आगे पीछे तो होना ही पड़ेगा। किसानों का यह कहना तो बिल्कुल सही है कि कानून बनाते समय उनके किसी नेता को विश्वास में नहीं लिया गया और आनन-फानन में नया कृषि कानून बनाकर थोपा गया, जो उचित नहीं है और यह किसानों के लिए काला कानून है। किसानों का इससे अहित होगा।
देखना यह होगा कि 8 दिसम्बर को क्या किसान के समर्थन में भारत बंद किस स्तर का होता है और 9 दिसम्बर को उसकी प्रतिक्रिया स्वरूप सरकार और किसानों को, जो बातचीत अपने चरम पर पहुंच गई है उसका निराकरण होता है या नहीं। चूंकि मैं पंजाब में रहकर वहां के किसानों के अथक परिश्रम और जीवटता को देखा है । वह अपनी लगन में मस्त रहते है उन्होंने जो मन में ठान लिया वह अकाट्य होता है। उनकी मेहनत , लगन और कर्मठता पर यदि कोई शक करता है, तो निश्चित मानिए वह किसी भ्रम का शिकार है । इसी जिद के कारण उधम सिंह ने लंदन में जाकर जनरल डायार को गोली मारकर दुनियां को बता दिया था कि पंजाब के लोग कितने जीवट, अपने धुन के पक्के और ईमानदार होते हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार के उच्च पदों पर बैठे लोग इस बात को जानते नहीं , लेकिन उनकी एक जिद की हम अपने बड़े हुए कदम को पीछे कैसे खींच लें ? ध्यान रहे चाहे वह देश के किसान हो या राजनेता देश की एकता और अखंडता को कायम रखने के लिए हठ करना या जिद करना जन हित में उचित नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक है)