शराबबंदी, सरकारी आंकडा और बिहार की सियासत
कहते हैं नीतीश कुमार, मद्य-निषेध के लिए बिहार रोल माॅडल. लोगों की सेवा करना ही मेरा धर्म है। पूरे देश में शराबबंदी लागू होना चाहिए। शराबबंदी का राजस्व पर कोई प्रभाव नहीं।
बिहार चुनावी साल में प्रवेश कर चुका है। कई राज्यों में भाजपा को जिस प्रकार से जनता ने नकार दिया है, उसके बाद से पार्टी हर कदम पर गंभीर विचार-विमर्श कर रही है। राजनीति की प्रयोगशाला रही बिहार में भाजपा के खैवनहार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। वे बीते कई महीनों से चुनावी तैयारी कर रहे हैं। उसी के तहत जब देश की राजधानी दिल्ली में वे आए, तो शराबबंदी को पूरी तरह से सफल बताया। तमाम सरकारी आंकडों के सहारे उन्होंने इससे राज्य के राजस्व पर भी किसी नकारात्मक प्रभाव को नकार दिया। लेकिन, जिनका वास्ता बिहार से है, वे जमीनी हकीकत से वाकिफ हैं। उन्हें पता है कि वहां आज भी शराब आसानी से उपलब्ध है। अहले सुबह से लेकर देर रात तक। हां, इसके लिए सुविधा शुल्क जरूर बढ गई है। सरकार के खाते में भले ही राजस्व के रूप में कुछ नहीं पहुंचता है, लेकिन सरकारी कर्मचारियों और पुलिस की तो वारे-न्यारे हैं।
असल में, स्वयं बिहार के मुख्यमंत्रर नीतीश ने कहा है कि बिहार मद्य-निषेध अभियान के लिए पूरे देश में रोल माॅडल है। शराबबंदी का राजस्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। वे आज नई दिल्ली में ‘शराब-मुक्त भारत‘ पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में बतौर मुख्य अतिथि देश के विभिन्न भागों से आए लोगों को संबोधित कर रहे थे। इस सम्मेलन का आयोजन मिलित ओडिसा निशा निवारण अभियान (मोना) द्वारा ईस्ट आफ कैलाश के इस्काॅन सभागार में किया गया था। मुख्यमंत्री ने कहा कि पूरे देश में शराबबंदी लागू होना चाहिए। यह सामाजिक, धार्मिक एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी आवश्यक है।
सरकारी आंकडों के सहारे मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में बिहार ने दो अंकों का आर्थिक विकास दर हासिल किया है और राज्य में प्रति व्यक्ति आय में गुणात्मक वृद्धि हुई है। राज्य के ग्रामीण इलाकों में रह रहे लोगों की आय में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन यह पाया गया कि ग्रामीण इलाकों में रह रहे गरीब लोग अपनी आय का बड़ा हिस्सा शराब पर खर्च कर देते थे। इसका सबसे बुरा प्रभाव निर्धन लोगों के स्वास्थ्य एवं उनके आर्थिक स्थिति, खान-पान, घरेलू शांति एवं महिलाओं के सम्मान पर पड़ रहा था। यहां तक कि युवा वर्ग भी शराब के आदी होते जा रहे थे। बढ़ते घरेलू कलह एवं बिगड़ती सामाजिक स्थिति को देखते हुए ग्रामीण इलाकों की महिलाओं ने अपने स्तर पर शराब के विरूद्ध आवाज उठाई और इस पर रोक लगाने की मांग की। स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं द्वारा शराबबंदी की मांग भी उठाई गयी।
बिहार सरकार के आंकडे कहते हैं कि महिलाओं द्वारा प्रारंभ किए गए इस आंदोलन के व्यापक स्वरूप को देखते हुए राज्य सरकार ने शराब के दुष्परिणामों से लोगों को अवगत कराने के उद्देश्य से वर्ष 2011 से राज्य में प्रत्येक वर्ष 26 नंवबर को मद्य निषेध दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। इस दिन पटना सहित राज्य के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में शराब के दुष्परिणामों से लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए पेंटिंग प्रतियोगिता, नुक्कड़-नाटक, सांस्कृतिक आदि विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गये। मद्य निषेध के प्रयासों के लिए जीविका के स्वयं सहायता समूहों एवं सबसे अच्छे संदेश वाली पेंटिंग को पुरस्कृत तथा ग्राम विकास अभियान के अंतर्गत शराब मुक्त कराये गये गाँव को 1 लाख रुपये प्रोत्साहन स्वरूप दिये गये। धीरे-धीरे शराब के दुष्परिणामों को लेकर ग्रामीण इलाकों में भी जागरूकता बढ़ी। हम लोग चाहते थे कि शराब के सेवन को लोग कम करें तथा शराब मुक्त समाज बनाने की दिशा में प्रयास करें। इसके लिए निरंतर सामाजिक अभियान चलाया गया।
दरअसल, 9 जुलााई, 2015 में महिला विकास निगम एवं डी.एफ.आई.डी. के सौजन्य से ‘ग्राम वार्ता’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान स्वयं सहायता समूह की कुछ महिलाओं द्वारा बिहार में शराबबंदी की मांग उठाई गई। उनकी मांग सुनकर तत्क्षण मेरे द्वारा घोषणा की गई कि अगर चुनाव के बाद सरकार में आए तो राज्य में शराबबंदी लागू करेंगे। नई सरकार के गठन के उपरांत दिनांक 26 नवम्बर, 2015 को मद्य निषेध दिवस के अवसर पर पहले सरकारी कार्यक्रम में उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग को निर्देशित किया कि नई उत्पाद नीति तैयार कर 1 अप्रैल, 2016 से शराबबंदी लागू करने की व्यवस्था की जाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि इसी परिप्रेक्ष्य में राज्य सरकार द्वारा नई उत्पाद नीति, 2015 बनायी और 21 दिसम्बर 2015 से लागू की गई। इस नीति के तहत राज्य में पूर्ण मद्य निषेध लागू करने तथा इसे चरणबद्ध तरीके से क्रियान्वित करने का निर्णय लिया गया। प्रथम चरण में देशी शराब को सम्पूर्ण राज्य में एवं विदेशी शराब को ग्रामीण क्षेत्र में 1 अप्रैल, 2016 से प्रतिबंधित करना तय किया गया।
शराबबंदी एवं शराब से होने वाली बुराईयों के बारे में जागरूकता लाने के उद्देश्य से तीन माह का एक सशक्त सामाजिक अभियान चलाया गया। मद्य निषेध अभियान के तहत नुक्कड़ नाटक, नारे और पोस्टर के माध्यम से प्रचार-प्रसार किया गया। सरकारी विद्यालयों में नामांकित बच्चों ने अपने अभिभावकों से शराब सेवन नहीं करने एवं दूसरों को भी शराब से दूर रहने के लिए प्रेरित करने का संकल्प पत्र भरवाया। कुल 1 करोड़ 19 लाख संकल्प पत्र भरे गये। 48 हजार से अधिक टोलों में ग्राम संवाद कार्यक्रम सम्पन्न हुआ जिसमें 4 लाख 70 हजार जीविका समूह और 20 हजार ग्राम संगठन जुड़ें। पंचायतों में कार्यरत प्रेरक, शिक्षा सेवक, विकास मित्र एवं विभिन्न समूहों द्वारा लगभग 9 लाख स्थानों पर मद्य निषेध के नारे लिखे गये। कला जत्था के कलाकारों द्वारा 25 हजार से अधिक स्थानों पर गीत, नाटक एवं सामूहिक चर्चा के माध्यम से मद्य निषेध के संदेश को लोगों तक पहुँचाया गया। इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में शराबबंदी के लिए वातावरण निर्माण किया गया।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि इस प्रयोजनार्थ 30 मार्च, 2016 को करीब 100 साल पुराने बिहार उत्पाद अधिनियम, 1915 में संशोधन को बिहार विधान मंडल के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पारित किया गया तथा 1 अप्रैल, 2016 से पूरे राज्य में देशी शराब और गाँवों में देशी एवं विदेशी शराब की बिक्री, खपत, उपभोग और भंडारण पर रोक लगा दी गयी। एक तरफ शराब पीने-पिलाने और इसके धंधे से जुड़े लोगों में हड़कंप मच गया तो दूसरी ओर महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ गयी। खुशी में महिलाओं ने होली मनायी, संगीत के साथ बधाई गीत भी गाये गये। महिलाओं, बच्चों एवं युवाओं के द्वारा सरकार के इस पहल की सराहना की गई तथा इसे व्यापक जनसमर्थन मिला।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि शराब बंदी अभियान का व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया तथा लोगों के द्वारा भी इसे पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ। लोग बड़ी संख्या में अवैध शराब के निर्माण, भंडारण अथवा बिक्री की सूचना स्वतः स्फूर्त रूप से भी देने लगे। सूचना/शिकायत दर्ज कराने हेतु उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग एवं पुलिस मुख्यालय द्वारा नियंत्रण कक्ष स्थापित किया गया, जिसमें प्राप्त शिकायत/सूचना पर तुरंत कार्रवाई की गई। लोगों द्वारा दी गई सूचना के आधार पर प्रशासन द्वारा छापेमारी कर बड़ी मात्रा में अवैध देशी एवं विदेशी शराब की बरामदगी की गई। शराबबंदी के इस मुहिम को कारगर रूप से लागू करने के उद्देश्य से सभी पड़ोसी राज्यों के माननीय मुख्यमंत्रियों से अनुरोध किया कि वे अपने स्तर से अपने राज्य के सभी सीमावत्र्ती जिलों, जिनकी सीमाएं बिहार राज्य से लगती हैं, को निदेशित करे कि वह बिहार में लागू शराबबंदी के संबंध में सजग रहें और अपनी सीमा से लगने वाले बिहार के जिलों से सतत् समन्वय बनाये रखे ताकि असामाजिक तत्व उनके राज्यों से अवैध रूप से शराब बिहार न भेज पाये। राँची में आयोजित अन्तर्राज्यीय परिषद् की बैठक में भी इस मुद्दे को मुख्यमंत्री महोदय द्वारा उठाया गया एवं झारखंड एवं अन्य सीमावर्ती जिलों के प्रतिनिधियों से इस मुहिम में सकारात्मक सहयोग का अनुरोध किया गया।
बता दें कि राज्य में शराबबंदी के सफल क्रियान्वयन हेतु न सिर्फ शराब पर पाबंदी लगाई, बल्कि लोगों की नशे की लत को छुड़ाने का इंतजाम किया जाय। नशे के आदी लोगों के स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए सभी जिलों में नशामुक्ति केन्द्र खोले गए। इन केन्द्रों में प्रशिक्षित चिकित्सक, नर्स एवं सलाहकार भी पदस्थापित किए। नशामुक्ति केन्द्र के चिकित्सकों को निम्हांस द्वारा प्रशिक्षित किया गया। शराब का उपभोग करने वाले एवं इसके आदी लोगों को इन केन्द्रों के द्वारा मुफ्त चिकित्सा सेवा, दवाएँ एवं परामर्श मुहैया कराया जा रहा है। पुलिस महानिदेशक से लेकर सभी पुलिस पदाधिकारी एवं सिपाहियों तथा मुख्य सचिव से लेकर सभी अधिकारी एवं कर्मचारी वर्ग ने सरकार की नीति का समर्थन करते हुए शराब नहीं पीने और जो पीते हैं उन्हें नहीं पीने के लिए प्रेरित करने का संकल्प लिया। 9 अप्रैल, 2016 को एक सर्वदलीय बैठक में हमने निर्णय लिया कि 2017 में मनाया जाने वाला चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह शराबबंदी और दलित उत्थान को समर्पित होगा।