मिट्टी की कुश्ती ओलंपिक कुश्ती की मां कैसे हुई?
राजेंद्र सजवान
मिट्टी की कुश्ती को खेल मंत्रालय ने राष्ट्रीय खेल महासंघ के रूप में मान्यता प्रदान दे दी है। यह घोषणा करते हुए आज यहां गुरु मुन्नी व्यायामशाला में भारतीय शैली की मिट्टी की कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष नफे सिंह राठी ने बताया कि मंत्रालय के फैसले के साथ ही अब देश मे मिट्टी और गद्दे की कुश्ती के बीच का विवाद समाप्त हो गया है। इस अवसर पर भारतीय शैली कुश्ती महासंघ के महासचिव गौरव सचदेव और पूर्व महासंघ अध्यक्ष राम आसरे पहलवान भी मौजूद थे।
अध्यक्ष राठी ने खेल मंत्रालय का धन्यवाद किया और कहा कि मिट्टी की कुश्ती के लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाले द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित रोशन लाल सचदेव की आत्मा को आज शांति जरूर मिल गई होगी। उनके सुपुत्र गौरव सचदेव फिहाल महासचिव का दायित्व निभा रहे हैं।
चूंकि अब मिट्टी की कुश्ती को अलग से मान्यता मिल चुकी है इसलिए एक खेलके रूप में भारतीय शैली की कुश्ती को ओलम्पिक में शामिल करने की मांग भी तेज हो गई है। एक सवाल के जवाब में अध्यक्ष नेकहा कि गद्दे की कुश्ती के चलते उनकी शैली को लंबे समय तक लड़ाई लड़नी पड़ी।
दोनों शैलियों के बीच भारत केसरी, हिन्द केसरी, रुशतमें हिन्द और भारत भीम जैसे खिताबों की दावेदारी को लेकर कई बार टकराव हुए। दोनों ने अलग अलग आयोजन भी किए लेकिन अब खेल मंत्रालय ने मान्यता देकर मिट्टीकी कुश्ती को उसका गौरव लौट दिया है। महासंघ के सभी पदाधिकारियों ने एक सुर में कहा कि उनका अगला कदम भारतीय शैली की मिट्टी की कुश्ती को ओलंपिक खेल का दर्जा दिलाने का है। फिलहाल 75 देशों ने भारतीय शैली को अपना लिया है और बहुत शीघ्र अन्य देश भारत के दावे को मजबूती प्रदान कर सकते हैं।
एशियन चैंपियन राम आसरे के अनुसार रोशन लाल वर्षों से उनके साथ मिल कर मिट्टी की कुश्ती को उसका हक दिलाने की लड़ाई लड़ते रहे। आज उन्हें जो सफ़फलता मिली है श्री लाल का योगदान बड़ा रहा है। लेकिन 2017 में उनका देहांत हो गया था। राम आसरे के अनुसार गद्दे की कुश्ती को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके तमाम पहलवान मिट्टी से निकल कर आते हैं।
ऐसे में तो हमारी कुश्ती गद्दे की कुश्ती की मां हुई। हमें उम्मीद है कि भारत और दुनिया भर में गद्दे की कुश्ती अपने दायित्व का पालन कर मिट्टी में कुश्ती को पनपने का समुचित सहयोग देगी। यदि मिट्टी के अखाड़ों से अच्छे पहलवान निकलेंगे तो देश की कुश्ती तरक्की करेगी।
भारतीय शैली की कुश्ती के अधिकारी चाहते हैं कि दोनों तरह की कुश्तियां अपनी अपनी सीमाओं का पालन करते हुए देश का नाम रोशन करें। एक दूसरे के लिए बाधा ना बनें अपितु सहयोग करें। साथ ही देश में अधिकाधिक मिट्टीके अखाड़े खोलने का सुझाव भी दिया गया।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)