अकादमिक और कार्यकारिणी परिषद सदस्यों ने लिखा कुलपति को पत्र, दिल्ली सरकार के कॉलेजों के गवर्नमेंट बॉडी हेतु पैनल विस्तार का किया आग्रह
चिरौरी न्यूज़
नई दिल्ली: अकादमिक परिषद और कार्यकारिणी परिषद सदस्यों ने दिल्ली विश्वविद्यालय कुलपति के समक्ष, दिल्ली सरकार के कॉलेजों के गवर्नमेंट बॉडी हेतु विश्वविद्यालय पैनल के विस्तार से किए गए एकतरफा इंकार पर गंभीर चिंता जताई। इस संबंध में अकादमिक और कार्यकरिणी परिषद् सदस्यों ने कुलपति को पत्र लिखा है।
कुलपति को पत्र लिखने वालों में सीमा दास और राजपाल सिंह पवार और अकादमिक सदस्य, आशा जस्सल, कपिला मल्लाह, आलोक रंजन पाण्डेय, सुनील कुमार व सीएम नेगी शामिल हैं।
“आपको नए साल की शुभकामनाएं, लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले दिल्ली सरकार के (100% वित्तपोषित) बारह कॉलेजों के, हमारे हजारों फैकल्टी और कर्मचारी गंभीर वित्तीय संकट से जूझते हुए नए साल का आरंभ कर रहे हैं। कहना न होगा कि यह वित्तीय संकट विश्वविद्यालय प्रशासन की ही देन है। ऐसे समय में जब, विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा संवाद और सुलह के लिए पहल होनी चाहिए थी, वहां ऐसी कोई पहल तो दूर, दिल्ली सरकार के वैध (विश्वविद्यालय के कानूनों द्वारा प्रदान) अधिकारों को भी सम्मान नहीं दिया गया है,” पत्र में कहा गया।
उदाहरण के लिए, विश्वविद्यालय प्रशासन ने अध्यादेश XVIII के खंड 3(1) के तहत गवर्नमेंट बॉडी से संबंधित इस तरह के प्रावधान होने के बावजूद तीन महीने का विस्तार नहीं दिया है। पूर्व में भी, केंद्र और राज्य सरकारों की अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा होने के बावजूद, इस तरह के विस्तार की अपनी एक औपचारिक परंपरा रही है। दूसरे, विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कालिंदी कॉलेज के तत्कालीन अध्यक्ष का नाम वापस लेने के लिए दिल्ली सरकार को सूचित किया गया था, जबकि कार्यकारिणी परिषद संकल्प 51 (2012) के खंड 3 (सी) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कार्यकरिणी परिषद् की मंजूरी के बाद दिल्ली सरकार भी अपने किसी नामांकित व्यक्ति को नहीं हटा सकती है।
यहां तक कि दिल्ली सरकार को भेजे गए 178 नामों वाले विश्वविद्यालय पैनल को भी प्रशासन द्वारा अकादमिक परिषद और कार्यकारिणी परिषद के सदस्यों से परामर्श किए बिना ही भेजा गया है, जो कि लंबे समय से चली आ रही परंपरा के सर्वथा विपरित है और साथ ही कार्यकारिणी परिषद के खंड ए -1 के अनुरूप भी नहीं है। संकल्प 51, 2012 जो कहता है कि ‘नामों का पैनल विश्वविद्यालय द्वारा दिल्ली सरकार को भेजा जाना है’ और डीयू अधिनियम 1922 का खंड 17 स्पष्ट रूप से एसी और ईसी जैसे वैधानिक निकायों में विश्वविद्यालय के अधिकार को निहित करता है। इसलिए, ईसी संकल्प द्वारा गवर्नमेंट बॉडी गठन के लिए एक शीर्ष समिति के अनिवार्यता कि बात की गई है, जिसे इस पैनल को भेजने से पहले गठित नहीं किया गया है।
इस गैर-परामर्श के कारण, पैनल को न केवल घोर राजनीतिक पक्षपात बल्कि कुछ विसंगतियों का भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। इसमें एक कॉलेज के कर्मचारियों और कार्यकरिणी परिषद् के एक मौजूदा सदस्य के नाम हैं जो क्रमशः ईसी संकल्प 51, 2012 के खंड 3-1 (बी) और (सी) के कारण गवर्नमेंट बॉडी सदस्य नहीं बन सकते हैं।
इसलिए, हम आपसे इस पैनल को वापस लेने और वैधानिक प्रावधानों के अनुसार इसे संशोधित करने के बाद भेजने का अनुरोध करते हैं।”