न्यायपालिका पर टिप्पणी विवाद के बीच हिमंत बिस्वा सरमा का कांग्रेस पर पलटवार, “न्यायपालिका की आलोचना कांग्रेस की पुरानी आदत”

चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट को लेकर भाजपा सांसदों की विवादित टिप्पणियों पर मचे राजनीतिक तूफान के बीच असम के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता हिमंत बिस्वा सरमा ने कांग्रेस पार्टी पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कांग्रेस पर न्यायपालिका की गरिमा को बार-बार ठेस पहुँचाने का आरोप लगाया और अतीत के कई ऐसे उदाहरण साझा किए जिनमें विपक्षी दल ने न्यायाधीशों की खुलेआम आलोचना की थी।
सरमा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में लिखा, “भाजपा हमेशा भारत के लोकतंत्र की आधारशिला – न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा – का सम्मान करती रही है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा पहले ही साफ कर चुके हैं कि भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा की टिप्पणियां पार्टी की अधिकृत राय नहीं हैं।
जेपी नड्डा की सफाई और भाजपा का स्टैंड
हिमंत सरमा ने कहा, “नड्डा जी ने स्पष्ट किया कि ये व्यक्तिगत विचार थे, पार्टी की आधिकारिक नीति नहीं। भाजपा न्यायपालिका का गहरा सम्मान करती है।” इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब भी कोर्ट के फैसले कांग्रेस के अनुकूल नहीं होते, तब पार्टी न्यायपालिका की आलोचना करने लगती है।
कांग्रेस के ‘न्यायालय विरोधी’ रवैये की सूची
सरमा ने कांग्रेस द्वारा की गई न्यायिक आलोचनाओं की एक सूची पेश की:
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पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर कांग्रेस ने बिना ठोस सबूत के महाभियोग प्रस्ताव लाया था।
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न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, जिन्होंने अयोध्या फैसले जैसे अहम मामलों में फैसला सुनाया, उन्हें भी कांग्रेस ने निशाने पर लिया।
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न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की कार्यशैली और सरकार के प्रति कथित झुकाव को लेकर आलोचना की गई।
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न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ को उनके कई फैसलों पर राजनीतिक दृष्टिकोण से घेरा गया।
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न्यायमूर्ति अब्दुल नज़ीर की सेवानिवृत्ति के बाद राज्यपाल नियुक्ति को लेकर भी कांग्रेस ने सवाल उठाए।
सरमा ने कहा, “यह एक पैटर्न दर्शाता है कि कांग्रेस सिर्फ उन फैसलों को स्वीकार करती है जो उसकी राजनीतिक सोच से मेल खाते हैं, अन्यथा वह न्यायालय की विश्वसनीयता पर ही सवाल उठाती है।”
निशिकांत दुबे की शायरी भरी प्रतिक्रिया
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे, जिनकी टिप्पणी को लेकर यह विवाद शुरू हुआ, ने सरमा की पोस्ट को साझा करते हुए उर्दू शायर फ़ानी बदायूनी का शेर लिखा: “ज़िंदगी ज़बर है ज़बर के आसार नहीं, है इस क़ैद को ज़ंजीर भी दरकार नहीं।”
इसका संकेत भाजपा नेतृत्व द्वारा उनकी आलोचना से उपजे राजनीतिक ‘मजबूरी’ की ओर माना जा रहा है।
तमिलनाडु के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विधायिका द्वारा दोबारा पारित बिलों को मंज़ूरी देने के लिए राज्यपाल और राष्ट्रपति पर समयसीमा तय कर दी, जिससे ‘न्यायिक अतिक्रमण’ (Judicial Overreach) का आरोप लगा। इसी को लेकर निशिकांत दुबे ने कहा था, “अगर हर चीज़ के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना है तो संसद और विधानसभाएं बंद कर दी जाएं।”
सरमा ने निष्कर्ष में कहा, “राजनीतिक दलों को न्यायिक निर्णयों के प्रति सुसंगत और ईमानदार दृष्टिकोण रखना चाहिए। फैसले पसंद आएं या नहीं, न्यायपालिका का सम्मान हर हाल में होना चाहिए।”