सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: जेलों में “निचली जाति” के कैदियों को सफाई और मैनुअल स्कैवेंजिंग कार्य में लगाना असंवैधानिक
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में जेलों में “निचली जाति” के कैदियों को सफाई और मैनुअल स्कैवेंजिंग कार्य में लगाने को असंवैधानिक करार दिया। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्देश दिया कि जेलों के रजिस्टर में “जाति” कॉलम और जाति से संबंधित सभी संदर्भों को हटा दिया जाए।
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आदेश दिया कि वे जेलों में जाति आधारित श्रम विभाजन के नियमों को तीन महीने के भीतर संशोधित करें। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को मॉडल जेल मैनुअल 2016 और मॉडल जेल और सुधार सेवाएं अधिनियम 2023 में भी बदलाव करने के लिए तीन महीने का समय दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने जाति, लिंग या विकलांगता के आधार पर जेलों में होने वाले भेदभाव का संज्ञान लेते हुए “भारत में जेलों में भेदभाव के संबंध में” एक मामले की सुनवाई तीन महीने बाद करने का आदेश दिया।
कोर्ट ने कहा, “इस मामले की पहली सुनवाई पर सभी राज्यों और केंद्र सरकार को इस फैसले के अनुपालन की रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।” इसके अलावा, DLSA और मॉडल जेल मैनुअल 2016 के तहत गठित विजिटर्स बोर्ड को संयुक्त रूप से नियमित निरीक्षण करने का निर्देश दिया गया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जाति आधारित भेदभाव या ऐसे अन्य भेदभावपूर्ण प्रथाएं अब भी जेलों में नहीं हो रही हैं।
याचिकाकर्ता सुकेतना शांता ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा था कि “निचली जाति” के कैदियों को सफाई कार्य में लगाने की मजबूरी राज्य-संवैधानिक अस्पृश्यता के समान है और इस तरह की प्रथाएं समाज से पूरी तरह समाप्त की जानी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि जेलों में “निचली जाति” के कैदियों को सफाई कार्य में मजबूर करना ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013’ का सीधा उल्लंघन है, जो किसी भी व्यक्ति या एजेंसी को मैनुअल स्कैवेंजिंग में लगे व्यक्ति को कार्य पर रखने से रोकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय संविधान के तहत कैदियों को मिलने वाले अधिकारों की पुष्टि करता है और समाज में समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।