साजिश या भूल चूक? कब थमेगा कुश्ती का बुरा वक्त
राजेंद्र सजवान
आखिर वही हुआ जिसका डर था। टोक्यो ओलंपिक से चंद सप्ताह पहले भारतीय पहलवान सुमित मलिक का डोप पॉजिटिव पाया जाना ना सिर्फ भारत के लिए एक कोटा गंवाना है अपितु देश के मान सम्मान को एक और बड़ी चोट पहुंची है। यह संयोग है कि सुमित उसी अखाड़े से है जोकि पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है।
कॉमनवेल्थ खेलों के स्वर्ण विजेता 125 किलो वर्ग के पहलवान का दुर्भाग्य यह है कि उसे ओलंपिक आयोजन से ठीक पहले डोप टेस्ट में विफल घोषित किया गया है।
हालांकि अभी उसे 10 जून को अपना ‘बी’ सैम्पल देना है, जिसका रिजल्ट आने के बाद ही उसके बारे में अंतिम फैसला लिया जाएगा। भारतीय कुश्ती फेडरेशन को उम्मीद है कि वह अपने दूसरे टेस्ट में खरा साबित होगा। दुर्भाग्य यह है कि ओलंपिक से ठीक पहले सुमित पकड़ में आया है।
सवाल यह पैदा होता है कि भारतीय कुश्ती फेडरेशन और टीम प्रबंधन क्या कर रहे हैं? यह जानते हुए भी कि पिछले कुछ सालों से कुश्ती पर ग्रहण लगा हुआ हैगंभीरता क्यों नहीं दिखाई जा रही? महामारी के वक्त में खिलाड़ियों की सेहत, उनकी तैयारी और खुराक पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है।
कौन खिलाड़ी किस बीमारी की कौनसी दावा ले रहा है, दावा के साइड इफेक्ट क्या हो सकते हैं और खिलाड़ी ने टीम डॉक्टर से पर्याप्त सलाह मशविरे के बाद ही कोई दवा ली है या नहीं इसबारे में डॉक्टर, कोच और फेडरेशन को खबर होनी चाहिए। यदि उन्हें नहीं पता तो बेहद गलत है। यह न भूलें की सालों की मेहनत और लाखों करोड़ों के खर्च के बाद ही कोई ओलंपियन पैदा होता है।
खेल मंत्रालय और तमाम जिम्मेदार इकाइयां जानती हैं कि कोरोना काल में खिलाड़ी भी महामारी के शिकार हो रहे हैं। ऐसे में ओलंपिक के टिकट पा चुके खिलाड़ियों पर कड़ी नजर की जरूरत थी, जोकि नहीं रखी गई।
नतीजन कुश्ती जगत में एक और सुगबुगाहट चल निकली है। एक बार फिर से साजिश की बू आ रही है। फिलहाल कोई कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं है। शायद सुमित के बी सैम्पल की रिपोर्ट का इंतजार है। हो सकता है दोषारोपण का एक और खेल खेला जाए।
साफ है कि भारतीय कुश्ती ने नरसिंह यादव प्रकरण से कोई सबक नहीं सीखा। तब एक ओलंपिक पदक के प्रबल दावेदार पहलवान को डोप केचलते बाहर का रास्ता देखना पड़ा था। पता नहीं उसके साथ क्या हुआ और असली गुनहगार कौन था लेकिन भारत और भारतीय कुश्ती का नाम जरूर खराब हुआ।
नरसिंह की तरह सुमित के मामले को भी शक की नजर से देखा जा रहा है। ऐसा एसलिए क्योंकि वह उस अखाड़े से है जिसने देश को अनेक अन्तरराष्ट्रीय पहलवान तो दिए, साथ ही कुश्ती के सबसे बड़े ,विवादास्पद और शर्मनाक कांड की कर्मस्थली भी है।
पहलवान सागर की हत्या चाहे किसी ने भी की हो लेकिन जो कुछ हुआ छत्रसाल अखाडे से जोड़ कर देखा जा रहा है। नरसिंह मामले में भी इसी अखाड़े के तार जोड़े गए। हालांकि आज तक असलियत सामने नहीं आई पर शक की सुई इसी अखाड़े के इर्द गिर्द घूमती रही।
सुमित खुद को बेकुसूर कह रहा है, ऐसा स्वाभविक भी है। हर खिलाड़ी को सफाई देने का हक है लेकिन जाने अनजाने हुई चूक का उसे खामियाजा भरना ही पड़ेगा। लेकिन हर फसाद की जड़ में सिर्फ कुश्ती ही क्यों फंस रही है? क्यों चैंपियन पैदा करने वाला खेल देश को शर्मसार करने लगा है?
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)