विपक्ष विहीन प्रजातंत्र

रीना. एन. सिंह, अधिवक्ता उच्चतम न्यायालय

लोकतंत्र एक लोकप्रिय संप्रभुता है – अब्राहम लिंकन के शब्दों में, ‘जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन’ और न की अमीर सभी करों का भुगतान करेंगे और गरीब सभी कानून बनाएंगे।

ऐतिहासिक रूप से, लोकतांत्रिक संघर्षों ने ‘सुधार’ और ‘क्रांति’ दोनों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रगति के जुड़वां हथियारों के रूप में इस्तेमाल किया है। लोकतांत्रिक सरकारें जनता की जरूरतों, इच्छाओं, हितों और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं कर रही हैं बल्कि चुनाव सत्ता के लिए वोट बैंक की लड़ाई मात्र बनकर रह गए हैं जहाँ चुनाव एक डाटा बेस की गणित की पहेली समान है। राज्य सरकारें वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पूंजी पति वर्गों के पीछे खड़ी हैं और उनके हितों को कायम रख रही हैं। जनता अलगाव से पीड़ित है,  यह एक वैश्विक प्रवृत्ति है और किसी विशेष क्षेत्र और जनसंख्या तक ही सीमित नहीं है। मानव जीवन के अस्तित्व, नागरिकता के अधिकार, गरिमा और दुनिया में शांति की खातिर इस वैश्विक प्रवृत्ति को आगे बढ़ने से रोकने की जरूरत है।

इसे लोगों की जरूरतों के आधार पर क्षेत्रीय आवश्यकताओं की विशिष्ट समझ को स्वीकार करने वाली आउट रीच के लिए स्थानीय कार्यों और क्षेत्रीय एक जुटता नेटवर्क के साथ एक अंतर्राष्ट्रीयवादी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। विपक्षीदल कुछ विशिष्ट सामाजिक समूहों तक सीमित प्रतिनिधित्व में अटके रह गये हैं और अपने दायरे को सीमितता से परे ले जाने में असमर्थ रहे हैं।बुरी खबर यह है कि भारत के विपक्ष के पास अभी भी कोई चेहरा नहीं है; अच्छी खबर यह है कि इसे सुलझाने के लिए कुछ महीनों का समय है। विपक्ष का समकालीन संकट मुख्य रूप से राजनीतिक दलों में भरोसे की कमी और नेतृत्व का अभाव है। पिछले कुछ वर्षों में विपक्ष की एक प्रमुख विफलता यह भी रहीहै कि यह एक राजनीतिक एजेंडा निर्धारित करने में विफल रहा है।

इतिहास सफल और असफल दोनों लोकतांत्रिक आंदोलनों के उदाहरणों से भराहै,  ध्यान भटकाने वाली रणनीति शासक वर्गों की विफलता को छिपाने और उनकी विफलता को राज्य, सरकार और लोकतंत्र की विफलता के रूप में प्रचारित करने में मदद करती है। कमजोर राज्य औरआज्ञाकारी सरकारें या निष्क्रिय लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत मजबूत राज्य और शक्तिशाली सरकारें दोनों ही पूंजी के विस्तार के लिए उपयोगी हैं। भ्रामक युक्तियों का उपयोग दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अपंग लोकतंत्र को केवल प्रतिक्रियावादी राजनीति और पूंजीवादी शोषण को छिपाने के पोस्टर के रूप में इस्तेमाल करने के लिए किया गया है। लोकतंत्र सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन का एक उपकरण है।

लोकतांत्रिक घाटा या लोकतंत्र का संकट प्रगतिशील भविष्य की दिशा में परिवर्तन में देरी करता है। अप्रभावी विपक्ष या विपक्ष की अनुपस्थिति लोकतांत्रिक व्यवहार को कमजोर करती है। जातिवाद की राजनीती किसी धर्म की राजनीती का रूप न बन जाये इसके लिए राजनितिक पार्टियों को सचेत रहना होगा, किसी भी देश की प्रगति उसके आर्थिक भविष्य पर ही निर्भर करती है और इसे सार्थक करने का मार्ग सभी प्रकार की विचारधाराओं को साथ लेकर चलने से ही हासिल होगा , लोकतंत्र कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो केवल चुनाव के समय घटित होती है, और यह कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो केवल एक घटना के साथ घटित होती है। यह एक सतत निर्माण प्रक्रिया है।

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