जात ना पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान

रीना सिंह, अधिवक्ता, उच्चतम न्यायालय                                                   

जात ना पूछो साधु की पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तलवार का पड़ा रहने दो म्यान। कबीर दास का यह दोहा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तथा गौरक्षपीठ के महंत श्री योगी आदित्यनाथ जी पर सटीक बैठता है।

योगी आदित्यनाथ ने जन सेवा की ऐसी मिसाल कायम की है की देश के बाकि राज्य भी “योगी मॉडल” को अपना रहे है। देश ही नही विदेशो में भी गोरक्षपीठाधीश्वर के कार्यशैली की चर्चा हो रही है। ज्ञान के बिना ईमानदारी कमजोर है क्यूंकि सूचनाओं और तर्क के आभाव में एक अज्ञानी पुरुष चाह कर भी कार्य का निष्पादन नही कर पाता। गणित के छात्र रहे योगी आदित्यनाथ ने कोरोना काल में उत्पन हुई विभिन परिस्थितियो से प्रदेश को बहुत ही सामंजस्य के साथ उभारा, यह जन सेवा किसी भी जाति या वर्ण तक सिमित नही थी।

ऐसी परस्थितयो में जब कोसो दूर दूसरे राज्य से पैदल चला आ रहा मजदूर उत्तर प्रदेश की सीमा की तरफ इस उम्मीद के साथ चला आ रहा था की यहाँ पहुंच कर मेरा जीवन सुरक्षित होगा, किसी भी राजनेता या जनप्रतिनिधि के लिए इससे बड़ा जन विश्वास शायद कुछ नही हो सकता। यह योगी जी की संकलप शक्ति का ही परिणाम है कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य को सफलता और उन्नति के सूत्र में पिरोया है।

योगी का जनसेवा के लिए संकल्प उस दुर्ग के समान है जो भयंकर प्रलोभन तथा विपरीत परिस्थितियों में रक्षा कर सफलता तक पहुंचने में मदद कर रहा है। महान विचारक एमर्सन ने लिखा है कि इतिहास इस बात का साक्षी है कि मनुष्य की संकल्प शक्ति के सामने देव हो या दानव सभी पराजित होते रहे है। यह कथन प्रदेश के खुख्यात अपराधियों के खिलाफ सच साबित हुआ है चाहे वह विकास दुबे हो या मुख्तार अंसारी।

आज के इस प्रगतिशील आधुनिक युग में जहां सूचना प्रद्योगिकी की ताकत किसी भी देश या क्षेत्र की कानून व्यवस्था को प्रभावित करने का दम रखती हो तथा सोशल मीडिया का चंगुल जिसमे बंध कर युवा से लेकर वृद्ध अछूते नही रहे तथा वह समाज जिसका युवा आज भी नौकरी के लिए भटक रहा है, क्या ऐसी परिस्थितियों में जातपात, वर्ण, वर्ग का भेदभाव देश की प्रगति के साथ न्याय कर सकता है, अब समय आ गया है कि समाज की आर्थिक तथा धर्म संगत प्रगति के लिए हम वर्ण, वर्ग तथा जातपात की राजनीती पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा इसका सम्पूर्ण बहिष्कार करे। देश विरोधी ताकतों पर सोशल मीडिया के दुरूपयोग पर नकेल कसने का जो कदम  योगी आदित्यनाथ ने उठाया है उसका बहुत बड़ा सकरात्मक प्रभाव देश तथा समाज पर पड़ेगा। अवैध धर्म परिवर्तन को कुछ विशेष वर्ग ने व्यवसाय का रूप दे दिया है जो युवा ही नही बल्कि अनगिनत परिवारों को गुमराह कर अपने ही लोग और देश के खिलाफ खड़ा कर रहा है। अगर हम इतिहास के पन्ने टटोले तो हम पाएंगे की यह फूट डालो और शासन करो की राजनीती और नीति सिर्फ कुछ पुश्तैनी राजनेताओ द्वारा बनाई गयी थी, यह नीति कभी भी जनमत के कल्याण से नही जुड़ी।

इतिहास गवाह है कि धर्म के नाम पर भारत के सिवा किसी भी देश का बटवारा नही हुआ, यह मुदा बड़े ही कृत्रिम रूप से पैदा किया गया तथा सत्ता के लालची राजनेता समय के साथ इसे मजबूत करते गए। किसी भी देश की प्रगति उसकी आर्थिक सम्पन्ता पर आधारित होती है परन्तु जातिवाद ने हमेशा आर्थिक उन्नति के विपरीत कार्य किया है। अब समय आ गया है कि हमे उन्नति के लिए इस जातिवाद की राजनीती को तिलांजलि देनी होगी, यह भेदभाव अब राजनितिक गलियारों से आगे निकल कर प्रशासनिक सेवाओं के पदों तक भी पहुंच गया है जो समाज को दीमक की तरह खोखला कर रहा है।  हम चाहे ब्राह्मण वर्ग की बात करे या दलित समाज की, हर बड़ा नेता या उच्तम पद पर बैठा प्रदेश का ताकतवर प्रशासनिक अफसर एक जाति विशेष को प्रभावित करने का प्रयास करता है यह भावना किसी से छुपी नही है। योगी सरकार ने अपने अभी तक के कार्यकाल में कभी भी पक्षपात या भेदभाव की राजनीती नही की, प्रदेश की कल्याणकारी योजनाओ का लाभ हर वर्ग को समान रूप से मिला है।

योगी सरकार यह अच्छी तरह जानती है कि उद्योगीकरण के बिना रोजगार के अवसर उत्पन्न नही हो सकते तथा गरीबी एवं आर्थिक असमानता को खत्म नही किया जा सकता। सदियों से आय की असमानता का मुख्य कारण जातिगत भेदभाव रहा है तथा यह एक प्रगतिशील राज्य के लिए सबसे बड़ी विडम्बना है। कोई भी देश या प्रदेश तेज आर्थिक विकास के बिना बड़े पैमाने पर गरीबी के खिलाफ जंग जीतने में सफल नही रहा है।  समर्थ लोग अपनी आर्थिक शक्तियों के प्रयोग से राजनितिक शक्ति प्राप्त कर लेते है क्यूंकि इन बड़े व्यापारिक घरानो के पास बड़ी मात्रा में आर्थिक साधन उपलब्ध होते है, कही ना कही योगी सरकार के आने से पहले वर्षो से उत्तर प्रदेश में जर्जर कानून व्यवस्था का कारण यही था पिछले चार वर्षो में प्रदेश की संवरती कानून व्यवस्था किसी से छुपी नही है तथा एक सुरक्षित माहोल ही प्रगतिशील राज्य की पहली जरुरत है।

योगी सरकार ने इस बात को भली भांति समझा है कि एक समृद्ध समाज के लिए अब यह जरुरी हो गया है कि धन और आय के अवसरो को जरुरतमंदो तक पहुंचाया जा सके। प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश में 50 लाख बेरोजगार युवाओ को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करके उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार प्रदान करने का लक्ष्य रखा है। पिछली सरकारों की बात करे तो हम पाएंगे की नौकरी की भर्तियां हर वर्ष निकाल कर भी सरकार ने खूब राजस्व कमाया ओर फिर बहाली के लिए युवाओ को अदालतो में घुमाया। अगर हम प्रदेश के मध्यम वर्ग की बात करे तो हम पाएंगे की हमारी पहुंच गुणवत्ता वाले विद्यालयों तक हो गयी है लेकिन अभी भी रोजगार के मामलो में विकल्प बहुत कम है। भारत की शहरी बेरोजगारी अपने ऐतिहासिक उच्तम सत्तर पर है यह चक्रीये समस्या नही है और यह अपने आप नही बदलेगी। उम्मीद खोने वाले लोग अपराध और अराजकता की ओर बढ़ रहे है तथा वैष्विक सत्तर पर भी रुझान व्यापार और रोजगार दोनों के लिहाज से नकारात्मक है। क्या ऐसी परस्थितियो में जातपात की राजनीती देश की आर्थिक उन्नति से बढ़कर है, इसका उत्तर आपको ओर हमे ही खोजना ओर समझना होगा ताकि अपनी व्यक्तिगत पहचान तथा धर्म को सुरक्षित रखते हुए आर्थिक सुरक्षा और उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया जा सके।

(लेखिका सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता हैं.)

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