पर्यावरण और वैश्विक महामारी कोविड-19
डॉ एम डी सिंह
सभ्यता की तेज रफ्तार विकास ने पर्यावरण को बैकफुट पर छोड़ दिया है। पाताल से आकाश तक पर्यावरण प्रदूषण की मार झेल रहा है तो मनुष्य पर्यावरण परिवर्तन का खामियाजा भुगत रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पूरी दुनिया में प्रदूषण के कारण प्रत्येक वर्ष तकरीबन 3000000 मनुष्यों की मृत्यु हो रही है। जल थल आकाश में रहने विचरने वाले अनेकानेक जीव अपना अस्तित्व खो चुके हैं। वनस्पति जगत ने भी पर्यावरण परिवर्तनों के चलते अपने बहुत सदस्यों को गंवा दिया है।
दूषित वायु दूषित जल दूषित भोजन से पोषित जीव जगत पर्यावरण के साथ स्वयं भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था। मनुष्य जल तो खरीदकर पीने ही लगा था अब कंपनियां वायु भी बेचने की तैयारी में जुट गई थीं। नदिया मर रही थीं, तालाब सूख गए थे,कुओं ने दम तोड़ दिया था। प्रदूषण पाताल छेद कर पानी को परास्त कर रहा था। पृथ्वी के नीचे 70 -80 फिट तक जल, प्रदूषण की गिरफ्त में आ चुका था। ओजोन परत की छेद ने आकाश को लावा उगलने के लिए प्रेरित किया ।सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणें पृथ्वी पर सब कुछ जला डालने को तत्पर दिखीं।
ग्लोबल वार्मिंग के चलते विश्व मौसम के उथल-पुथल से घमासान करता दिखने लगा। चेरापूंजी से बारिश गायब राजस्थान के रेगिस्तान ने जलप्लावन देखा। दावानल वनों को निकलने लगा। पर्वतों के गिरने ग्लेशियरों के गलने के समाचार दिन प्रतिदिन मन विचलित करने लगे। धूल धुआं और विषैली गैसों से वायु में सांस लेना मुश्किल हो गया था। औषधियां भी दम तोड़ रही थीं। आईसीयू में जीवन रक्षक औषधियों के मरने का दंड मरीज स्वयं सह रहा था। आदमी दूसरे ग्रहों पर घर बनाने की बात करने लगा।
अभी पर्यावरणीय परिवर्तन के स्वरचित जाल में फंसा आदमी जीवन मरण की लड़ाई लड़ ही रहा था कि एक और भयावह सूचना ने उसके जीवन को झकझोर कर रख दिया। यह थी वैश्विक महामारी कोविद-19। कोरोना वायरस अपने नए रूप के साथ वोहान चीन से निकलकर सारे विश्व पर धावा बोल चुका था। किसी को नहीं छोडूंगा कहूं कार भरता यह वायरस मनुष्यों पर टूट पड़ा। पर्यावरण का मारा औषधि विहीन मनुष्य घरों में जा छुपा कामछोड़ दरवाजे बंद कर। लाख डाउन ही जीवन रक्षा का एकमात्र सहारा दिखा। वाहनों के पहिए रुक गए, कारखानों की चिमनिया बंद हो गईं, रात दिन जगे रहने वाले शहरोंमें सन्नाटा पसर गया।
दुनिया भर के गांव स्तब्ध हो जैसा देश कहे करने को तैयार। देश- देश एडवाइजरी जारी होने लगी घरों से ना निकलें, आपस में दूरी बनाएं, मुह नाक ढक कर रखें। गले मिलें ना हाथ मिलाएं- नमस्कार से काम चलाएं। व्यायाम करें – रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ाएं। घरेलू दवा दारू अपनाएं बच्चे बूढ़े घर से एकदम बाहर न जाएं। डर ने सबको धर लिया, जैसा कहा गया सबने किया। धूल- धुआं शोर-शराबो आपाधापी से मुक्ति मिली । आदमी मशीन छोड़ पांवों पर खड़ा हो गया।
कोरोना ने अभी तक 3:30 लाख से कुछ ज्यादा लोगों को मारा है, पर्यावरण अब तक 10 लाख लोगों को मार चुका होता है सड़कें दुनिया भर में 20 लाख लोगों को निगल चुकी होतीं।कोरोना के चलते वे सब के सब अभी जिंदा है।
यमुना काली से दुर्गंध रहित नीली हो गई है। गंगा भी बेहद साफ-सुथरी दिख रही हैं। बूंढों को 60 साल पहले का आकाश नजर आ रहा। 200 किलोमीटर दूर से पर्वत कैलाश दिख रहा। चिड़ियों की चहचहाहट से भोर जग रही , उपवन में खिलखिला रहे फूलों पर भ्रमर तितलियों की होड़ दिख रही। आकाश में ओजोन परत की होल है गायब, सूरज ढूंढ- ढूंढ थक आंख मल रहा।
जंगली जानवर पिकनिक करने शहर आ रहे, मछलियां समुद्र तटों पर मौज कर रहीं। मीठे जल की डालफिनें नदियों में फिर दिख रहीं घूमते। जगत का सबसे खूंखार जानवर मनुष्य घरों में जो बैठा है।
स्कूलों से नन्हे बच्चों की जान बची है। अस्पतालों में मरीज कम हुए, शमशानो पर लाशों की आमद घटी है अपवाद छोड़ दें यदि कोरोना का। खेतों में किसान फिर कमरकस खड़ा होने को तैयार दिख रहा। उसके नालायक बेटे शहर छोड़ घर लौट आए हैं। सरकारें फिर कृषि को बढ़ावा देने की बात कर रहीं। प्रकृति रीफार्म कर रही।कोरोना गांवों में जाकर दम तोड़ देगा यह तय है।
बदल रहे प्रकृति और पर्यावरण को फिर से वापस बिगड़ने न देने के बारे में पूरे संसार को मिलकर सोचना चाहिए। यदि पर्यावरण में बदलाव न आया होता तो कोरोना ने करोणों जाने ली होतीं । सच पूछें तो लाकडाउन ने कोरोना को नहीं रोका बल्कि प्रकृति और पर्यावरण कोमा से बाहर आ गए। वे जो संजीवनी अपने साथ लेकर आए हैं वह मनुष्य सहित विश्व के सारे जीव जंतुओं और पेड़-पौधों, नदी -नालों ,पर्वत खेत खलिहानों सबके लिए जीवनदायिनी साबित होगी।
जीवन के लिए प्रकृति की महत्ता को समझा रहा है कोरोना। फिजूलखर्ची पर रोक लगी है। स्वस्थ शरीर और सात्विक भोजन पर जोर बढ़ा है ,पैसे का मोल घटा है। पैसे से जो कुछ पा नहीं सकता था मनुष्य कोरोना और लाकडाउन ने वह सब उपलब्ध करा दिया है। लाकडाउन टूटने लगा है ,कोरोना भी चला जाएगा।
प्राकृतिक तत्वों से निर्मित आयुर्वेदिक, होमियोपैथिक यूनानी और अन्य देसी चिकित्सा पद्धतियां एवं साथ में योग और व्यायाम अपनी ताकत को सिद्ध किया और निरंतर कर रहे है। चिकित्सा जगत को भी यह बात ध्यान में रखकर आगे कदम उठाना चाहिए।
अपवादों को छोड़ दिया जाए तो मनुष्यों में सहयोगात्मक प्रवृत्ति बढ़ी है। अन्न जल वस्त्र और आवास के साथ सर्वसुलभ सस्ती प्राकृतिक औषधियों की उपलब्धता सुनिश्चित करा के कोई भी राष्ट्र दुनिया के उच्चस्थ शिखर पर विराजमान हो सकता है। यह सोच इस कोरोना काल की उपलब्धि मानी जाएगी।
(लेखक डॉ एम डी सिंह, महाराज गंज गाजीपुर, उत्तर प्रदेश में पिछले पचास सालों से होमियोपैथी के चिकित्स्क के रूप में लोगों की सेवा कर रहे हैं. ये उनका निजी विचार है, चिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)