कोरोना का डर
अलोक कुमार
डर का मनोविज्ञान है। हम क्यों डरते हैं ? इस पर कई शोध हैं। कई वैज्ञानिक उपाय। डर भगाने के हैं। इन उपायों पर डर का बाजार सजा है। बाजार उपायों के सौदे करता है। आज यह डर सबके सिर चढकर बोल रहा है।
मृतप्राय इकॉनमी के इससे ही फलने फूलने की गुंजाईश है। कोरोना के डर से दुनिया में कोई बचा नहीं। 82 साल के मशहूर उद्योगपति रतन टाटा कहते हैं कि यह पहली आपदा है, जिससे दुनिया के किसी भी कोने में छिपकर बचा नहीं जा सकता।
इसकी भयावहता का प्रचार चरम पर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर तमाम संस्थाएं हर रोज एक से बढकर एक डरावने आंकड़े पेश कर रही हैं। दुनिया को नित नए तरीके से बचाने को आगाह कर रही है। मानव सभ्यता पर अबतक का यह सबसे बड़ा संकट है। विज्ञान विवश है। मौत के आंकड़े बढते जा रहे हैं। डर की एक से एक कहानियां हैं। तो क्या डरा जाय? क्या डरने से बात बन जाएगी?
मनोविज्ञान कहता है। बहुत डर जाने से कई बार बात बन जाती है, जोर की चीख से हम हिल जाते हैं, हिल्कोर से आंतरिक इम्युन सिस्टम मजबूती से जाग जाता है। ऐसा करके इम्युन सिस्टम की दृढनिश्चितता से डर पर जीत हासिल कर ली जाती है। इम्यून सिस्टम माने मनोबल, इसके बूते मौत का डर जिंदगी से हार जाता है। इसे थर्ड पार्टी इम्युन डेवलपमेंट का नुस्खा कहते हैं।
यूरोप के कई देशों ने थर्ड पार्टी इम्युन डेवलप करने का रा्स्ता अपनाया। कोई लॉकडाउन नहीं किया। सच है या गलत पता नहीं। सुना है कि मौत का आंकड़ा हजार पार होते होते वहां की आबादी में कोरोना वायरस को लेकर इम्युन डेवलप हो गया। यह वैसा ही कि बच्चे को पानी में फेंक दो, वह तैरना सीख जाएगा।
भयावह कोरोना से लड़ने में जीर्णशीर्ण स्वास्थ्य सुविधा वाले भारत की कौन कहे, उन्नत देशों तक की व्यवस्थाओं का कचूमर निकल गया। अमेरिका, यूरोप सब इसके डर के आगे पानी भर रहे हैं। बंद दीवार में फंसे फंतासी चीन पर दुनिया को फंसा देने का आरोप है। बुहान व अन्य इलाकों की अनगिनत मौतों पर वह अंदर ही अंदर सिसक रहा है। दुनिया की करोड़ों आबादी संक्रमित है, लाखों इंसान की जान जा रही है।
वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति ऐलोपैथ अबतक सटीक इलाज निकालने में विफल है। आठ माह बाद वैज्ञानिक आज कल आज कल में उलझे हैं। कोरोना वैक्सीन का इंतजार है। अल्टर्नेटिव मेडिसीन के कई पुरोधाओं की मान्यता है कि इसका वैक्सीन आ ही नहीं सकता। हमें कोरोना के साथ भी जीना सीखना पड़ेगा। जैसा की कैंसर आदि लाखों लाइलाज बिमारियों से मरते हुए भी हम जी ही रहे हैं।
इस महत्वपूर्ण लड़ाई के बीच भी इंसान का दानवी फितूर जारी है। लोग हेराफेरी से बाज नहीं आ रहे। सभ्यता का विकट हाल है। कोरोना के डर की दुकान सजने लगी है। लॉकडाउन से निष्प्राण हुआ विशाल होटल उद्योग मौके को भुनाने की लालसा में कसमसा रहा है।
होटल बाजार ने एडवटाइजर्स को पकड़ा है। निशाने पर कोरोना से संक्रमित धन्नासेठ हैं। उनके लिए होटल में आइसोलेशन या कोरोन्टाईन वार्ड की उन्नत सुविधा उपलब्ध कराने के दावे हैं।
कोरोना के डर पर जीत को लेकर जितनी मुंह उतनी बातें हैं। गले का खराश मिटाने से लेकर कई तरह के काढे औऱ व्यायाम की बातें हैं। पूर्वांचल में कोरोना के आगे लोग नतमस्तक हैं। रहम की भीख मांगी जा रही है। कोरोना माई का अवतरण हो गया है। उनकी पूजा की जा रही है। इसे अवैज्ञानिक बताया जा रहा है।
बहरहाल बाजार के ताल तिकडम के बजाय डर पर जीत के कई वैज्ञानिक नुस्खें हैं। उन नुस्खों पर बात की जाय।.. जो डर गया, वह मर गया।… डर डरकर जीना भी कोई जीना है लल्लू।..डर के आगे जीत है। ..ऐसे कई चिर परिचित डायलॉग्स हैं। इसके सहारे मुर्दा भी उठ खड़ा होता है। इसलिए इन डायलॉग्स का महत्व है।
डर को जीतने की कई तरकीबें हैं। डर को भगाने के लिए कई बार रिवर्स गियर का इस्तेमाल होता है। नकारात्मकता पर जीत के लिए सकारात्मकता के बोलबाले का सहारा लिया जाता है। सुपर डुपर हिट फिल्म “थ्री इडियट्स” में विधु विनोद चोपड़ा ने डर भगाने के लिए नए मंत्र का जिक्र किया। उन्होंने …आल इज वेल, आल इज वेल, आल इज वेल की जाप के सहारे सिल्वर स्क्रीन पर तमाम डर को मात दी थी।
ऐसे कई मंत्र हैं, जो हौसला बढने के काम आते हैं। इनसे मनोबल को ताकत मिलती है। मनोबल के बूते डर को जीता जाता है। डर से जीत का सीधा संबध है। कई बार हताश होते हैं। लगता है कि डर को जीतना आसान नहीं। फिर भी जीत के भरोसे को जिंदा रखने वाला जीतता ही है।
जीतने के लिए हो सके तो 103 साल की जांबाज माता मान कौर की जिंदगी को देखिए। सौ उम्र से बड़े धावकों की कैटोगरी में उन्होंने कई स्वर्ण पदक हासिल किए है। उन्होंने उस उम्र में दौड़ने की शुरुआत की जब लोगों में कैल्सियम की कमी, हड़्डी चटखने और बिस्तर पर लेट जाने का फैसला लेना पड़ता है। वह बताती हैं कि डर को जीतने में मनोबल ही एकमात्र साथी है। मनोबल का इम्यून पॉवर बढाने में बड़ा योगदान है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार है, चिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)