फोर्टिस अस्पताल ने बोन मैरो ट्रांसप्लांट कर मल्टीपल मायलोमा के मरीज़ को दी नई ज़िंदगी
चिरौरी न्यूज़
नोएडा:नोएडा के फोर्टिस अस्पताल में हाल ही में 43 वर्ष का व्यक्ति इलाज के लिए आया। मरीज़ को पीठ में गंभीर दर्द की शिकायत थी। जांच से पता चला कि मरीज़ को मल्टीपल मायलोमा नाम की दुर्लभ बीमारी है। यह एक तरह का कैंसर है जो श्वेत रक्त कोशिकाओं या प्लाज्मा कोशिकाओं में पैदा होता है। इस मामले में कैंसर से ग्रस्त प्लाज्मा कोशिकाएं बोन मैरो में जमा हो जाती हैं और स्वस्थ रक्त कोशिकाओं के चारों तरफ घेरा बना लेती हैं। ये स्वस्थ कोशिकाएं एंटीबॉडी का निर्माण करके शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करती है। इससे मरीज़ के जीवन को खतरा पैदा हो जाता है। इसलिए मरीज का तुरंत बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) करने की आवश्यकता थी। नोएडा के फोर्टिस अस्पताल में हेमटोलॉजी तथा बोन मैरो ट्रांसप्लांट के डायरेक्टर और प्रमुख, डॉ राहुल भार्गव और उनकी टीम ने तुरंत बीएमटी करके मरीज़ की ज़िंदगी बचाने का निर्णय लिया।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट में क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुकी बोन मैरो को स्वस्थ बोन मैरो स्टेम सेल से बदला जाता है। बोन मैरो आपकी हड्डियों के अंदर मौजूद नरम, वसायुक्त टिश्यू होता है। बोन मैरो रक्त कोशिकाओं का निर्माण करता है। स्टेम सेल बोन मैरो में मौजूद अविकसित कोशिकाएं होती हैं जो रक्त कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। बोन मैरो ट्रांसप्लांट की तकनीक में अब क्रांतिकारी बदलाव आ चुका है। यह पेरीफेरल ब्लड स्टेम सेल ट्रांसप्लांट, यानि प्लेटलेट एफेरेसिस जैसे ब्लड ट्रांसफ्यूजन की तरह ही है जिसके लिए एनेस्थीसिया की आवश्यकता नहीं होती।
जांच से यह भी पता चला कि बीएमटी से पहले कीमोथेरेपी करने की ज़रूरत थी। कीमोथेरेपी के बाद मरीज़ के अस्पताल में भर्ती होने के 10वें दिन डॉक्टरों की टीम ने मरीज़ के शरीर में स्टेम सेल्स डाली। इससे शरीर को नई स्वस्थ कोशिकाएं निर्माण करने का नया स्रोत मिला। अस्पताल के सुरक्षित वातावरण और डॉक्टरों की विशेषज्ञता के कारण बीएमटी की प्रक्रिया बिना किसी परेशानी के पूरी हुई और 15 दिनों के भीतर मरीज़ को छुट्टी दे दी गई। आमतौर पर ऐसे मामले में मरीज को ठीक होने में 25-30 दिन लगते हैं, लेकिन यहां अस्पताल में मिली सुविधाओं के कारण मरीज़ तेज़ी से ठीक हुआ।
फोर्टिस अस्पताल, नोएडा में हेमटोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के डायरेक्टर और प्रमुख, डॉ राहुल भार्गव ने कहा, “यह मामला बहुत जटिल था क्योंकि मरीज बेहद जोखिम वाले मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित था। मल्टीपल मायलोमा दुर्लभ प्रकार का कैंसर है। हमने सभी ज़रूरी सावधानियां बरती और सबसे पहले मरीज को कीमोथेरेपी दी। मरीज ने कीमोथेरेपी के प्रति अच्छी प्रतिक्रिया दिखाई। उसके बाद सफलतापूर्वक बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) किया गया। प्रक्रिया बहुत सरलता से पूरी हुई और किसी तरह की परेशानी सामने नहीं आई। हम मरीजों से अनुरोध करते हैं कि वे बीएमटी से न डरें और आवश्यकता पड़ने पर इस इलाज को करवाएं।”
नोएडा के फोर्टिस अस्पताल के जोनल डायरेक्टर, श्री हरदीप सिंह ने फोर्टिस अस्पताल के क्लिनिकल एक्सीलेंस के बारे में कहा, “नोएडा के फोर्टिस अस्पताल की टीम मरीजों की जान बचाने की पूरी कोशिश करती है और जान बचाने का 1% मौका होने पर भी हार नहीं मानती। इस मामले में मरीज़ बहुत ज्यादा जोखिम वाले मल्टीपल मायलोमा से पीड़ित था, जिसके इलाज के लिए तुरंत बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने की ज़रूरत थी। डॉ राहुल भार्गव और उनकी टीम ने इस मामले को बहुत अच्छी तरह से संभाला। मैं क्लिनिकल विशेषज्ञता और मरीजों की देखभाल के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता के लिए डॉक्टरों की टीम की सराहना करता हूं।”