चैंपियन है, कोई दूध में पड़ी मक्खी नहीं!

He is a champion, not a fly in the milk!
(File photo)

राजेंद्र सजवान

पिछले ओलंपिक का कांस्य पदक, एशियाई खेल 2018 में स्वर्ण पदक और विश्व चैंपियनशिप में चार पदक जीतने वाले बजरंग पूनिया को ग्वांगझू एशियाई खेलों में कोई पदक नहीं मिला तो उसे बुरा भला कहने वालों ने सारी हदें पार कर दी हैं। लेकिन क्यों?

इसलिए क्योंकि बजरंग पूनिया महिला पहलवानों के पक्ष में कुश्ती फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष ब्रज भूषण शरण सिंह के विरुद्ध डट कर खड़ा हो गया था। पांच छह महीनों तक दोनों पक्षों के बीच आरोप प्रत्यारोपों का दौर चलता रहा। उसे इसलिए भी कोसा जा रहा है क्योंकि वह बिना ट्रायल के ओलंपिक टीम में शामिल हुआ। यह भी कहा जा रहा है कि बजरंग उन तीन चार खिलाड़ियों में शामिल है जिन पर सरकार ने बड़ी रकम खर्च की है। विनेश फोगाट और बजरंग को ट्रायल की छूट दे कर कुश्ती दल में शामिल किया जाना कितना गलत था इस बारे में देश में कुश्ती का कारोबार करने वाले खुद भी स्पष्ट नहीं हैं। आज तक बड़े कद वाले और ढेरों उपलब्धियां अर्जित करने वाले पहलवानों को लेकर फेडरेशन कोई नीति नहीं बना पाई है। हालांकि बजरंग से पहले भी ट्रायल में छूट दी जाती रही है तो फिर उसे ही क्यों कोसा जा रहा है?

विनेश फोगाट चोट के कारण एशियाई खेलों में भाग नहीं ले पाई । ऐसे में ट्रायल में प्रथम रही अंतिम पंघाल को मौका मिला और उसने कांस्य पदक जीत कर खुद को साबित कर दिखाया। बजरंग भले ही हार गया लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि उसने जो कुछ भारतीय कुश्ती को दिया उसे भुला दिया जाए और उसे अपराधी घोषित कर दिया जाए। वह चैंपियन है कोई दूध में पड़ी मक्खी नहीं!

फेडरेशन अध्यक्ष ब्रज भूषण के विरुद्ध खड़े होने का साहस दिखाने वाले बजरंग, विनेश, साक्षी , संगीता और तमाम पहलवान बड़ी कीमत चुका चुके है। फैसला न्यायपालिका को करना है लेकिन विद्रोही कहे जाने वाले पहलवानों की निंदा काट भारतीय कुश्ती के हित में नहीं है। यह ना भूलें कि बजरंग, विनेश और साक्षी जैसे चैंपियन रातों रात पैदा नहीं होते। बेहतर होगा उन्हें कुछ और मौके दिए जाएं।

यह ना भूलें कि पिछले कुछ महीनों में भारतीय कुश्ती की बड़ी थू थू हुई है। सांसद ब्रज भूषण पर यौन शोषण के आरोप लगे , जिनकी जांच चल रही है। लेकिन भारतीय कुश्ती फेडरेशन के चुनाव आज तक नहीं हुए। यह मुद्दा बजरंग की हार तले दबाना भी गलत है। जहां तक बजरंग की वापसी की बात है तो उसे एक बार फिर शुरू से शुरू करना है। अर्थात पहले अपने भार वर्ग के भारतीय पहलवानों में खुद को श्रेष्ठ साबित करना होगा। क्या बजरंग ऐसा कर पाएगा? उसे उन आलोचकों को भी जवाब देना है , जोकि उस पर दलगत राजनीति करने के आरोप लगा रहे हैं।

He is a champion, not a fly in the milk!(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं और अपनी बेबाक राय के लिए प्रसिद्ध हैं)

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