वैश्विक शांति एवं समृद्धि की संवाहक है भारतीय ज्ञान परम्परा: शंकरानंद
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: भारतीय शिक्षण मण्डल के दिल्ली प्रान्त द्वारा 4 नवम्बर, 2023 को आयोजित ‘वर्तमान परिदृश्य में भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता’ विषयक कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता बोलते हुए भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री बी. आर. शंकरानंद ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा हमें वर्तमान वैश्विक चुनौतियों से लड़ने की राह दिखाने के साथ ही वैश्विक शांति का मार्ग भी प्रशस्त करती है।
उन्होंने कहा कि भारतीय शास्त्रों में जीवन की सभी चुनौतियों से लड़ने का ज्ञान समाहित है, हमें शास्त्रों में निहित ज्ञान परम्परा को वर्तमान शिक्षण सामग्री का अंग बनाने की आवश्यकता है। वैश्विक पटल पर वर्तमान भारत एक सशक्त एवं समृद्ध राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है।
“दुनिया आज भारतीय वैचारिक शक्ति के महत्त्व को समझ रही है। हमारे परिवार की परिकल्पना एवं गुरु की अवधारणा आज दुनिया को सहज आकर्षित कर रहे हैं। भारतीय ज्ञान को हमें दैनिक जीवन में आत्मसात करने की आवश्यकता है, इसके बिना सही मायने में देश की प्रगति नहीं हो सकती है। शक्तिशाली भारत ‘अयोद्धा’ है जो वैश्विक शांति का मार्ग प्रशस्त करने की क्षमता रखता है। दुनिया में भारत अपने शास्त्र के आधार पर विशिष्ट पहचान रखता है न कि शस्त्र के आधार पर दुनिया पर विजय की आकांक्षा रखता है,” शंकरानंद ने कहा।
उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा के केंद्रीय बिन्दू के रूप में उपस्थित एकात्मता, संवेदनशीलता, न्यूनतम आवश्यकता, एवं परिपूर्णता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें भारतीय ज्ञान परंपरा को पाठ्यक्रम एवं शोध का अनिवार्य अंग बनाना होगा जिससे भावी पीढ़ी को सकारात्मक दिशा प्रदान किया जा सके। आज भारतीय समाज में अनेक दूषित कारक मिश्रित हो गये हैं जिनकी शुद्धि भारतीय ज्ञान परम्परा द्वारा की जा सकती है। समाज में मौजूद विघटनकारी शक्तियों के प्रहार को रोकने में ‘एकात्मता’ महत्वपूर्ण है। हमें अपने समाज के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है। अपनी आवश्यकताओं में कटौती करके हम प्राकृतिक संशाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित कर सकते हैं। हमें अपने कार्यों में सदैव उत्कृष्टता का प्रयास करना चाहिए।“
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो० नागेश्वर राव ने कहा कि भारतीय शिक्षण मंडल का राष्ट्रीय शिक्षा नीति में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
“शिक्षा के उत्थान में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, एक आदर्श शैक्षिक वातावरण के निर्माण के साथ ही शिक्षक राष्ट्रनिर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। हमें अपने प्राचीन ज्ञान एवं साहित्य को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए सम्बंधित विषयों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाना होगा,” प्रो० नागेश्वर राव ने कहा।
उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा से सम्बंधित पाठ्यक्रम को लागू करने की दिशा में किये गये कार्य को एक सकारात्मक कदम बताया, साथ ही इग्नू द्वारा संचालित भारतीय ज्ञान एवं परम्परा केंद्रित पाठ्यक्रम के बारे में बताया, एवं जल्द ही ‘गीता’ केंद्रित पाठ्यक्रम शुरू करने की बात कही।
कार्यक्रम की अध्यक्षता दिल्ली प्रान्त अध्यक्ष प्रो० अजय सिंह ने किया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो० सिंह ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता के लिए अनेकों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने प्राणों की आहुति दी। राजनैतिक स्वतंत्रता के साथ ही वैचारिक स्वतंत्रता भी महत्वपूर्ण है, परन्तु वैचारिक स्वतंत्रता के केंद्र में भारतीयता का भाव अति आवश्यक है।
इस अवसर पर अखिल भारतीय प्रकाशन प्रमुख प्रो० रवि प्रकाश टेकचन्दानी द्वारा भारतीय शिक्षण मंडल के सदस्यता अभियान की घोषणा की गयी। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के कन्वेंशन सेंटर में शनिवार को आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान 300 से अधिक लोगों की उपस्थिति में दिल्ली प्रान्त के जिला कार्यकारिणी का संघोष भी हुआ। अतिथियों का परिचय प्रो० संजय भारद्वाज ने प्रस्तुत किया जबकि डॉ० संजीव ने शालेय प्रकल्प का वृत्त रखा । कार्यक्रम का संचालन प्रान्त प्रचार प्रमुख अंशू जोशी ने किया। कार्यक्रम का समापन कल्याण मन्त्र के साथ किया गया।