जय बजरंग! जय जय बजरंग पूनिया !!
राजेंद्र सजवान
हिंदू धर्म के अनुसार नवरात्र में सप्तमी तिथि से कन्या पूजन शुरू हो जाता है और इस दौरान कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है। हिंदू धर्म में नवरात्र के चलते दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं को देवी का रूप मानकर उनका स्वागत, सत्कार और पूजा की जाती है। आपने यह भी देखा होगा कि कन्या पूजन में नौ कन्याओं के साथ एक बालक को भी आमंत्रित किया जाता है। क्या आप जानते हैं इसके पीछे का राज क्या है?
कन्याओं के साथ जो एक लड़का बैठता है उसे ‘लंगूर’, ‘लांगुरिया’ कहा जाता है। जिस तरह कन्याओं को पूजा जाता है, ठीक उसी तरह लड़के यानी ‘लंगूर’ की पूजा की जाती है, ऐसा इसलिए क्योंकि…. ‘लंगूर’ को हनुमान का रूप माना जाता है। ऐसी मान्यता है जिस तरह वैष्णों देवी के दर्शन के बाद भैरो के दर्शन करने से ही दर्शन पूरे माने जाते हैं, ठीक उसी तरह कन्या पूजन के दौरान लंगूर को कन्याओं के साथ बैठाने पर ही पूजा सफल मानी जाती है।”
नवरात्र अभी दूर हैं लेकिन एक प्रौढ़ लांगुरिया की चर्चा दुनिया जहान में है। इसे ईश्वर की कृपा कहें या इतफाक़ लेकिन इस लंगूर का नाम भी “बजरंग” है। जी हां बजरंग पूनिया, जोकि देश की पीड़ित महिला पहलवानों के साथ कंधे से कंधा मिला कर डटा हुआ है। जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन के पहले ही दिन से बजरंग, साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, पत्नी संगीता फोगाट और अन्य आंदोलनकारियों का नेतृत्व कर रहा है। भले ही साक्षी और विनेश के पति भी उन्हें सहयोग कर रहे हैं लेकिन पहले ही दिन से पहली कतार में खड़े बजरंग के दम पर महिला पहलवानों का आंदोलन दम दिखा पाया है।
पता नहीं भारतीय महिला पहलवानों का आंदोलन किस हद तक सफल रहेगा लेकिन जब जब भारतीय कुश्ती के सबसे अप्रिय और शर्मनाक अध्याय की चर्चा होगी बजरंग को एक बड़े क्रांतिकारी के रूप में याद किया जाएगा और उसका नाम बड़े आदर के साथ लिया जाएगा।
भले ही वह किसी की लंका जलाने के लिए पैदा नहीं हुआ लेकिन उसने वयस्क और विवाहित महिला पहलवानों की लड़ाई को न सिर्फ बल दिया, बल्कि ब्रज भूषण जैसे मंजे हुए खिलाड़ी से टकराने का भी साहस दिखाया है। बजरंग ने सिर्फ न्याय युद्ध में भाग नहीं लिया उसने देश के लिए ढेरों पदक भी जीते हैं। वह उन चार महान खिलाड़ियों में शामिल है जिसने एशियाड, कामनवेल्थ, विश्व चैंपियनशिप और ओलंपिक में पदक जीतने का कारनामा किया है। ऐसी उपलब्धि सुशील और नीरज चोपड़ा के नाम भी दर्ज है। भारतीय कुश्ती के जानकार और कोच मानते हैं कि बजरंग में अभी कई पदक जीतने की भूख बाकी है। वह कम से कम दो ओलंपिक और खेल सकता है। फिलहाल उसने महिला पहलवानों के आंदोलन का फ्रंट से नेतृत्व कर एक मिसाल कायम की है।
(राजेन्द्र सजवान वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं। लेख में दिए गए विचारों से चिरौरी न्यूज का सहमत होना अनिवार्य नहीं है।)