न्यायाधीश की विवादास्पद टिप्पणी: क्या उत्तर प्रदेश में संवैधानिक अधिकार लागू नहीं होते?”
चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति समीर जैन की एक टिप्पणी ने विधिक और राजनीतिक हलकों में तूफान खड़ा कर दिया है। एक जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति जैन ने कहा कि “मैग्ना कार्टा ऑफ कॉन्स्टीट्यूशनल राइट्स उत्तर प्रदेश में लागू नहीं होता।” यह टिप्पणी संविधान के मूलभूत अधिकारों और विधि शासन (Rule of Law) के सिद्धांतों के विरुद्ध मानी जा रही है।
एक जागरूक नागरिक और विधि क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति सौरभ सिंह ने इस मामले को लेकर मुख्य न्यायाधीश, इलाहाबाद उच्च न्यायालय को शिकायत भेजी है। उन्होंने कहा कि यह टिप्पणी न्यायपालिका की निष्पक्षता और संवैधानिक मूल्यों पर सवाल खड़ा करती है। उन्होंने आगे कहा कि यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश सरकार, विशेष रूप से योगी आदित्यनाथ सरकार को निशाना बनाने का प्रयास लगती है, जिससे न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
सौरभ सिंह ने अपनी शिकायत में कहा कि मैग्ना कार्टा लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की नींव माना जाता है और इसके सिद्धांत भारतीय संविधान में भी परिलक्षित होते हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय संविधान के भाग 3 (अनुच्छेद 12 से 35) को “भारत का मैग्ना कार्टा” कहा जाता है, क्योंकि इसमें मौलिक अधिकारों का विस्तृत वर्णन है। यह अधिकार नागरिकों को गारंटीकृत और संरक्षित अधिकार प्रदान करते हैं।
न्यायमूर्ति जैन की टिप्पणी से यह संदेश जाता है कि उत्तर प्रदेश के नागरिकों को संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का संरक्षण नहीं मिलेगा। यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का प्रत्यक्ष उल्लंघन है। सौरभ सिंह ने मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया है कि वे इस मामले पर संज्ञान लें और 17 मार्च 2025 को कोर्ट नंबर 66 की कोर्ट प्रोसीडिंग्स की रिकॉर्डिंग की जांच करवाएं। उन्होंने न्यायमूर्ति जैन की इस अनुचित टिप्पणी की जांच कर उचित कार्रवाई करने की मांग की है, ताकि न्यायपालिका की निष्पक्षता और गरिमा बनी रहे।
यह मामला न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। अब यह देखना होगा कि मुख्य न्यायाधीश इस मामले में क्या कदम उठाते हैं और क्या न्यायपालिका की गरिमा और विश्वसनीयता बरकरार रह पाएगी।