भला हो ज्योति का जिसने साइकिलिंग संघ को पहचान दिलाई
उपासना सिंह
नई दिल्ली: ज्योति कुमारी इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा मे है। वही ज्योति जो अपने लाचार पिता को साइकिल पर बैठाकर करीब गुरुग्राम से दरभंगा पहुंच गई। 16 साल की बच्ची का 1200 किमी का यह सफर सच में अकल्पनीय है लेकिन उससे भी ज्यादा अक्लपनीय अब ज्योति के घर का नजारा है। पलायन की त्रासदी के कई दर्दनाक किस्सों में से एक इस किस्से का इतना भव्य जश्न मनाया जाएगा, किसी ने भी कल्पना नहीं की होगी।
ज्योति का हाल पिपली लाइव के नत्था सा हो गया है। जो आ रहा है उसे साइकिल थमा जा रहा है। हर कोई उसे पढ़ा-लिखा कर कलेक्टर बनाने की सौगंध खा रहा है। लेकिन निर्लजता के सिलसिले की शुरुआत किसने की? इसकी शुरुआत की भारतीय साइकिलिंग महासंघ ने।
देश में साइकिल के खेल से जुड़ा कोई संघ भी है, इसके बारे में शायद आधी से ज्यादा जनता अंजान ही रही होगी।
अंजान होना वाजिब भी है। इस संघ ने कोई ऐसा काम भी तो नहीं किया था। मेडल की बात छोड़िए पिछले 50 से ज्यादा सालों में साइकिलिंग में भारत का कोई भी खिलाड़ी ओलिंपिक्स खेलने भी नहीं जा सका है। थोड़ी शर्मसार करने वाली बात है, लेकिन अब उन बातों को भूल जाइये। आज इस संघ ने देशवासियों के बीच अपनी पहचान बना ली है। देश में दूर-दूर तक लोग जान गए हैं कि भारतीय साइकिलिंग महासंघ नाम का कोई खेल संघ भी है भारत में।
लोग जान गए हैं कि इस संघ से जुड़े अधिकारी बहुत ही कर्मठ, खेल के प्रति समर्पित, हर वक्त खेल और खिलाड़ी के बारे में सोचते रहते हैं। ये फिलहाल ऐसा कोहिनूर तलाश रहे हैं जो ओलिंपिक्स में भारत को पदक दिला सके। राह-चलते टैलेंट तलाशने का यह हुनर भी हर किसी के पास नहीं होता।
लेकिन जिस देश का खेल मंत्री वायरल पोस्ट के हिसाब से अपना नजरिया तय कर सरकारी मशीनरियों को बिना वक्त गंवाए छुपे टैलेंट को दुनिया के सामने लाने की कवायद में लगा देता है, तो यह स्वाभाविक है कि उस खेल मंत्री का यह गुण उसके आसपास वक्त-बेवक्त दुआ-सलाम करने के लिए फटकने वाले अधिकारियों में भी चिपक ही जाएगा।
हमारे खेल मंत्री वाट्सअप मैसेज या किसी वायरल वीडियो में किए गए दावों पर तुरंत संज्ञान लेकर ‘भविष्य के उस महान ऐथलीट’ के भविष्य को संवारने का जिम्मा उठाने में माहिर हैं। यूपी के उसैन बोल्ट या फिर भैसे के साथ दौड़ लगाने वाले
श्रीनिवास गौड़ा इसके ताजा उदाहरण हैं। ज्योति के मामले में भी वह पीछे नहीं रहे। हर जरूरी काम छोड़कर ट्वीट पर जाकर उन्होंने दुनिया को यह बता दिया कि सभी बेफिक्र हो जाएं क्योंकि उन्होंने जिम्मा उठा लिया है। अब ज्योति को वो वर्ल्ड क्लास साइकिलिस्ट बनाकर ही रहेंगे। बहुत ही ज्यादा पारदर्शी इंसान हैं हमारे खेल मंत्री। कुछ भी करते हैं तो जनता को जरूर बताते हैं। अपने घर के लॉन में सफाई के नाम पर चार पत्ते भी उठाते हैं तो वो भी बताते हैं।
आश्चर्य होता है कि जो मजदूर कई किलो का सामान अपनी पीठ पर लादकर पैदल ही दो-दो हजार से ज्यादा किमी की दूरी तय कर घर पहुंच गए, वो हमारे खेल मंत्री की पारखी नजरों से कैसे बच गए। ज्योति का उदाहरण गुमनामी में रह रहे अन्य खेल संघो के लिए भी एक सबक है। उन संघों को जानना चाहिए कि कैसे किसी गरीब-लाचार को पकड़कर ‘टैलेंट सर्च’ के अपने कॉलम को भरा जाता है और पीने के लिए घी के साथ-साथ ओढ़ने के लिए कंबल का भी पुख्ता इंतजाम किया जाता है।