फसाद की जड़ बना खो खो
राजेंद्र सजवान
भारत में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। कुछ इसी रफ़्तार से भारतीय ओलंपिक संघ(आईओए) का घमासान भी ज़ोर पकड़ रहा है। हैरानी वाली बात यह है कि आईओए अध्यक्ष डाक्टर नरेंद्र बत्रा और उपाध्यक्ष सुधांशु मित्तल के बीच की खटास को मिटाने की बजाय उनके करीबी आग भड़काने का काम कर रहे हैं, जोकि भारतीय खेलों के लिए बेहद अशुभ संकेत कहा जा सकता है।लेकिन इस उठा पटक के चलते शुद्ध भारतीय खेल खोखो की लोकप्रियता ख़ासी बढ़ गई है। कारण, फिलहाल खो खो आईओए की गुटबाजी का केंद्र बन गया है।
यूँ तो कोरोना काल के चलते शुरू हुए विवाद में एक दूसरे पर ख़ासा कीचड़ उछाला जा चुका है लेकिन अब सुधांशु मित्तल की अध्यक्षता वाली खो खो फ़ेडेरेशन को लपेटे में लेकर टाँग खिंचाई क नया खेल खेला जा रहा है।
खो खो फ़ेडेरेशन पर सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया है कि अध्यक्ष मित्तल और सचिव एमएस त्यागी ने आईओए महासचिव राजीव मेहता के साथ मिली भगत कर खो खो फ़ेडरेशन को नॉर्थ ज़ोन की जेबी संस्था बना कर रख दिया है जिसके अध्यक्ष, सचिव, चेयरमैन, कोषाध्यक्ष, तीन उपाध्यक्ष, पाँच एग्जीक्यूटिव और एक संयुक्त सचिव नॉर्थ से हैं इतना ही नहीं एशियन खो-खो फ़ेडरेशन, वर्ल्ड फ़ेडरेशन और घोषित अल्टीमेट खो खो लीग के तमाम सदस्य नॉर्थ से हैं, जोकि यह दर्शाता है कि भारतीय खो खो चाँद लोगों की बपौती बन कर रह गई है।
बेशक, आरोप गंभीर है और यदि कुछ एक लोग मिल कर देश और दुनियाँ में खो खो को अपने इशारे पर नचाने का षड्यंत्र रच रहे हैं तो यह खेल के हित में कदापि नहीं है। इस बारे में सचिव एम एस त्यागी का कहना है कि यह स्नयोग है कि ज़्यादातर पदाधिकारी नार्थ से हैं लेकिन सभी को 36 सदस्य इकाइयों ने चुना है। कोषाध्यक्ष श्री निवासन आंड्रा प्रदेश से थे और सरकारी नौकरी के चलते उन्हें एनओसी जमा कराने के लिए कहा गया था। क्योंकि वह नियत समय पर एसा नहीं कर पाए, इसलिए अध्यक्ष ने नियमानुसार अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए भूपेंद्र को यह पद सौंप दिया। त्यागी के अनुसार फेडरेशन के चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से हुए और स्पोर्ट्स कोड का पालन किया जा रहा है तो फिर किसी प्रकार की धोखाधड़ी का सवाल ही पैदा नहीं होता। उनके अनुसार फ़ेडेरेशन द्वारा एक एक पैसे का हिसाब रखा जा रहा है। सभी लेन देन चेक से या ऑन लाइन किया जाता है। उनके अनुसार खो खो को देश विदेश में लोकप्रिय बनाने के लिए फ़ेडेरेशन अध्यक्ष गंभीर हैं और दिन पर दिन की प्रगति की रिपोर्ट चेक करते हैं।
केकेएफआई पर यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि 2017 में क्रमश: अध्यक्ष और सचिव पद ग्रहण करने के बाद दोनों महाशयों ने भारतीय टीम को इंग्लैंड दौरे के लिए कैंपों में झोंक दिया। अंततः टीम 2019 में इंग्लैंड गई लेकिन किसलिए? वहाँ कौन सा टूर्नामेंट खेल गया और कौन कौन से देशों ने भाग लिया और खर्चा किसने किया, जैसे सवाल भी पूछे जा रहे हैं। जवाब में त्यागी कहते हैं कि भारतीय टीम सरकारी खर्च पर इंग्लैंड गई थी और इंग्लैंड, भारत, स्काटलैंड के बीच तीन देशों की सीरीज़ खेली गई।
फिलहाल आरोप प्रत्यारोपों का सिलसिला थमने वाला नहीं है। प्रतिद्वंदी धड़े के अनुसार सुधांशु मित्तल भी महत्वाकांक्षी हैं और खो खो का दामन थाम कर आईओए अध्यक्ष पद का ख्वाब देखने लगे है, हालाँकि वह इस प्रकार की किसी रणनीति से इनकार करते रहे हैं लेकिन आईओए के अनुभवी अधिकारियों के अनुसार मित्तल ने डाक्टर बत्रा और राजीव मेहता में फूट डाल कर आधा सफ़र तय कर लिया है।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार है, चिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को www.sajwansports.com पर पढ़ सकते हैं।)