आज भी प्रासंगिक है महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथो की सीख

आकांक्षा सिंह

नई दिल्ली: कोरोना के कारण सारी दुनियां मे लॉकडाउन है, भारत में भी यह महामारी अपने पाँव पसार रही है, कई सारे लोग जिंदगी और मौत के बीच छिड़ी इस जंग को महसूस कर रहे है, ऐसे में एक आम इन्सान जिसे हमेशा घर के बाहर रहना अच्चा लगता था, काम पर जाना अच्चा लगता था, वो इस स्थिति में क्या करे.

ज़िन्दगी और मौत के बीच में चल रही इस जंग में एक आम इंसान बंद कमरे में कैद हो कर रह गया है। हमारे देश की युवा पीढ़ी जिन्हें खुले आसमान की उड़ान की आदत है वह इस लॉकडाउन के पिंजड़े में घुटन महसूस करने लगे हैं, अपने आप को तरह तरह की वेब सीरीज एवं मूवीज़ में व्यस्त कर लिया है परंतु यह उपाय उनके मानसिक स्थिति पर भी काफी भारी पड़ रहा है।

इसी बीच डी डी नेशनल पर रामायण एवं महाभारत का प्रसारण किया जा रहा जो कि घर के बुज़ुर्गो के लिए मनोरंजन का कारण भी बन गया है, यहां तक कि हमारी युवा पीढ़ी का भी झुकाव इनके प्रति काफ़ी नज़र आ रहा है।

अगर हम बात करे महाभारत की तो हमारे देश की युवा पीढ़ी काफी कुछ सिख सकती है इस धार्मिक ग्रंथ महाभारत से। अकसर लोग महाभरत देखने के लिए मना करते है बल्कि रामायण को ज़्यादा महत्व देते है परंतु बात यहाँ ज़्यादा कम की नहीं है.

रामायण हो या महाभारत दोनों से ही हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है जिसका पालन मनुष्य अपने रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कर सकता है। यह धार्मिक ग्रंथ सफलता की सीढ़ी है जो इसे देखने एवं पढ़ने के बाद में ही समझ आता है।

‌महाभारत में जिस प्रकार कर्ण की दोस्ती दुर्योधन के प्रति थी, उसकी वजह से धर्म का ज्ञान होते हुए भी कर्ण अधर्म एवं अन्याय के रास्ते चलते जा रहा था, क्योंकि वह अपने दोस्ती में किए हुए वचन से बंधा हुआ था। दोस्ती का महत्व हर पीढ़ी में काफी ज़्यादा होता है पर महाभारत से हमें यह सीखने को मिलता है कि दोस्ती अगर सही इंसान हो तो वह तरक्की की  और ले जाता है और गलत इंसान से हो तो बर्बादी का मार्ग बन जाता है।

‌शकुनी ने कौरवों को हमेशा ग़लत मार्ग दिखा के उनके जीवन को नर्क बना दिया था, बदले की भावना मन में लिए उसने आजीवन अधर्म एवं छल का रास्ता चुना जिसका परिणाम खौफनाक होगया महाभारत के युद्ध में। इससे हमें यह सीखने को मिलता है यदि बदले की भावना को जीवन का मकसद बना ले तो हम अपने साथ साथ अपने से जुड़े लोगों का भी जीवन नर्क बना देते है।

‌अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण की दोस्ती से यह सीख मिलती है कि अगर दोस्ती में कोई स्वार्थ ना हो तो वह पाक होती है और आजीवन आपके बुरे वक्त में सही मार्ग दिखती है अर्थात आपको कभी किसी ग़लत राह पर चलने नहीं देती। भगवान श्री कृष्ण ने हर मोड़ ओर अर्जुन को धर्म – अधर्म , न्याय-अन्याय का ज्ञान दिया।

‌अर्जुन की धनुर्विद्या सभी को ज्ञात है कि किस प्रकार तीर मारते हुए अर्जुन की नज़र पक्षी के आंखों पर थी उसके अलावा उसे कुछ और दिख ही नहीं रहा था। यह वाक्या हमें यह सिखाता है कि अगर जीवन में लक्ष्य पता हो तो सफलता पाने से हमें कोई नहीं रोक सकता।

‌वचन की महत्वपूर्णता महाभारत में काफ़ी गहरी पाई गई है। भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण जिस प्रकार अपने अपने वचन पर अटल रहे और अपने माने हुए धर्म और वचन की वजह से अपने आँखों के सामने द्रौपदी के साथ होते हुए अन्याय को वह देखते रह गए जिसका अंतिम परिणाम सबको पता है अर्थात इस बात से हमें यह सीखने को मिलता है कि अगर आपका धर्म एवं वचन किसी स्त्री के साथ अन्याय होते हुए देखने को मजबूर कर रहा है तो उस वचन एवं धर्म को तोड़ देना ही सही है अर्थात जो वचन किसी मनुष्य के साथ अन्याय होने दे वह वचन अधर्म ही होता है।

‌अभिमन्यु अपने ज्ञान के लिए आज भी जाना जाता है। अपनी माँ की कोख से ही उसने चक्रव्यूह का ज्ञान प्राप्त कर लिया था परंतु उसे चक्रव्यूह को तोड़ कर अंदर जाना तो आता था परंतु उससे बाहर निकलने का ज्ञान उसे नहीं पता था जिसके कारण उसकी मौत होगई अर्थात अधूरा ज्ञान हमेशा घातक होता है।

‌गुरु और शिष्य के बीच का सम्पूर्ण प्रेम महाभारत में एकलव्य में दिखा जिस प्रकार उसने गुरुदक्षिणा में अपना हाथ का अंगूठा काट कर गुरु द्रोण के कदमों रख दिया यह जानते हुए की इसके बाद उसकी धनुर्विद्या व्यर्थ हो जाएगी परंतु उसके हाथ नहीं काँपे। शिष्य का अपने गुरु के प्रति यह समर्पण आज भी किस्सों में सुनाया जाता है।

महाभारत एक ऐसा धार्मिक ग्रंथ है जो मनुष्य को जीवन के हर पल से कुछ न कुछ सीखने की ताकत रखता है।

 

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