लॉकडाउन… मौत की राह में पलायन की अंतहीन पीड़ा
निशिकांत ठाकुर
बिहार साधन संपन्न होते हुए भी आज देश का सबसे पिछड़ा राज्य है , क्योंकि राज्य के विकास की जिस पर जिम्मदरी होती है ऐसा किसी राजनीतिज्ञ ने चाहा ही नहीं की इस राज्य का विकास हो। एक पूर्व मुख्यमंत्री कहते थे यदि विकास होगा तो तुम्हारी जमा संपत्ति को डाकू उठा ले जाएंगे । एक मुख्य मंत्री से बात करे तो वह सदैव रोना शुरु कर देते हैं कि हमारा राज्य तो गरीब है जब की स्वयं वह पंद्रह वर्षों से राज्य की कुर्सी पर किसी और को फटकने नहीं दे रहे हैं । पंद्रह वर्षों में राज्य का विकास तो हुआ नहीं , लेकिन हां, अपने विरोधियों को साफ करते हुए अपना सिक्का जमा कुर्सी पर काबिज बने हुए हैं । आख़िर क्यों नहीं हुआ बिहार का विकास और वहां के नागरिक देश के हर कोने में जाकर अपनी रोजी रोटी के लिए जलील और अपमानित होकर जीवन यापन के लिए कार्य कर रहे हैं । देश का सबसे बुद्धिमान और मानसिक रूप से उर्वरक व्यक्ति वहीं होते हैं , लेकिन आज सरकारी उपेक्षा के कारण देश के सर्वाधिक अपमानित वहीं के लोग माने जाते है। धिक्कार है ऐसे राजनेताओं को जो सत्ता को यैन कैन प्रकरेन्न हथिया तो लेते हैं और फिर अपने सारे खानदान का उद्धार करके राज्य की जनता को अपमानित और जलील होने के लिए भगवान भरोसे छोड़ देते हैं ।
दूरदर्शिता की कमी के कारण जो अचानक लॉक डाउन देश को करना पड़ा है उसके कारण आज देश के अंदर क्या स्थिति हो गई है यह कहने की आवश्यकता नहीं है । हां, लेकिन यदि अभी राजनीतिज्ञों से बात करें तो वह यही कहेंगे कि देश को अभी इसकी जरूरत थी और बहुत ही उपयुक्त समय पर लॉक डाउन करने का फैसला लिया गया । क्या इस बारे में दिहाड़ी मजदूरों की बात सोची नहीं गई जिनका गुजरा ही तब चलता था जब वह दिन भर कमाई करके लौटते थे और शाम में राशन खरीदकर अपने परिवार का भरण पोषण करते थे । आज उनकी क्या स्थिति है यह भी सभी जानते है । प्रधान मंत्री कहते है की दो दिन पहले आपसे कहा था कि हमें कुछ सप्ताह चाहिए, लेकिन तीन दिन बाद ही रेल , रोड और हवाई यात्रा को भी लॉक डाउन करना पड़ा । आज जो परिवार अपने सर पर गट्ठर उठाए और अपने बच्चों को गोद में लेकर हजारों मील की यात्रा पर निकल गए है क्या वह अपना सफर जीवित होते पूरा कर पाएंगे ? कोई यह कहता है कि ऐसा सोचा ही नहीं गया तो इससे बड़ी अदूदर्शिता सरकार के लिए हो है नहीं सकती । आज जहां भी नजर जाती है ऐसे लोगों की लंबी लाइन जा रही होती है जो उत्तर प्रदेश अथवा बिहार की अंतहीन यात्रा पर भूखे प्यासे निकल पड़े हैं ।
अब भी समय है वह इन भूखे प्यासे यात्रियों को जहां तक हो सके उन्हें उनके गंतव्य तक पहुंचाए । उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग ही इनमें अधिक है जो दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद ,गाज़ियाबाद , गुरुग्राम में अपने रोज़गार की तलाश में आए थे और दिहाड़ी मजदूर के रूप में रोज़ अपना घर परिवार का भरण पोषण करते थे । दिल्ली एन सी आर में उद्योग के बंद होने के बाद अब वे लोग कहां रहते लिहाज़ा उन्हें लौटना पड़ा और अब जान जोखिम में डालकर भूखे प्यासे अपने गाव वापस लौट रहे हैं । अब ऐसे यात्रियों के साथ जो और परेशानी आने वाली है वह यह कि यह जब अपने घर पहुंचेंगे तो उन्हें गाव के बाहर ही रोक दिया जा रहा है । अब ऐसे लोग कहां जाएंगे ना उन्हें आगे अपने घर जाने दिया जा रहा है और ना ऐसे लोगों के पीछे कोई खड़ा है जो उन्हें सहारा दे सके । सरकार को निश्चित रूप से इस समस्या पर भी पहले विचार करना चाहिए , लेकिन ऐसा नहीं किया और आज हजारों नहीं लाखों गरीबों की जिंदगी दाव पर लग गई है । इन परेशानियों को कैसे सुलझाया जाय यह एक बड़ा गंभीर मुद्दा बनकर सामने आया है ।
करोना वायरस एक महामारी है जो किसी पीड़ित के संपर्क में आने की वजह से फैल रहा है। चीन को इस महामारी का जनक कहा जा रहा है और कहा तो यहां तक जा रहा है कि उसने किसी जैविक हथियार का परीक्षण किया है जो गलती से पूरे विश्व में फ़ैल गया है । साथ ही सच तो यह भी है कि अभी तक इसकी रोक थाम के लिए जिस दावा की आवश्यकता है उसे डॉक्टर खोज नहीं पा रहे है । देखना या है दावा की खोज जब तक होगी तब तक कितने लोग इस महामारी के ग्रास बन सके होने और हो परिवार भूखे प्यासे अपना ठिकाने को खोजने निकले हैं ऐसे कितने लोग काल के गाल में समा जाते हैं । बिहार के लोग यदि इस बार संभल गए तो शायद आगे उन्हें याद रहेगा कि वह किसे अपना नेता चुने जो अपने राज्य में कुछ उद्योग लगाकर उनके रोज़गार का ठिकाना बना दे । यदि यह अक्ल उन्हें अा गई तो एक यह कुर्बानी भी उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए ।
निशिकांत ठाकुर
(ये लेखक के निजी विचार हैं। इससे ‘चिरौरी न्यूज परिवार’ का पूर्णतः सहमत होना जरूरी नहीं है।)