असली खेल रत्न से खिलवाड़
राजेंद्र सजवान
वर्ष २०२० के खेल अवार्ड कई मायनों में अभूतपूर्व और रिकार्ड तोड़ माने जा रहे हैं। पाँच खेल रत्न, 13 द्रोणाचार्य, 15 ध्यान चन्द और 29 अर्जुन अवार्ड बाँटे जाने के फ़ैसले को लेकर भारतीय खेल जगत में अलग अलग तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। ऐसी बंदर बाँट के चलते भी कुछ खिलाड़ी हैं जिनकी अनदेखी ना सिर्फ़ खल रही है अपितु खेल हलकों में बहुत बुरा भला भी सुनने को मिल रहा है। भाला फेंक में राष्ट्रीय रिकार्ड कायम करने वाले नीरज चोपड़ा का नाम खेल रत्न पाने वाले खिलाड़ियों में शामिल नहीं किए जाने पर ना सिर्फ़ नीरज के प्रशंसक हैरान हैं बल्कि अवार्ड कमेटी के कुछ सदस्य भी खुद को शर्म सार महसूस कर रहे हैं।
पहले नीरज की उपलब्धियों के बारे में बात कर ली जाए। वह मिल्खा सिंह और पीटी उषा जैसे ओलम्पियनों की श्रेणी के एथलीटों में शुमार किया जा रहा है, जिसने टोक्यो ओलंपिक का टिकट हासिल कर लिया है। खेल जानकारों को लगता है कि नीरज ओलंपिक में पदक जीत सकता है और ऐसा करिश्मा करने वाले पहले भारतीय एथलीट का सम्मान अर्जित करने की योग्यता रखता है। बस उसे बड़े प्रोत्साहन और और सपोर्ट की ज़रूरत है।
लेकिन खेल मंत्रालय, साई और खेल अवार्डों के लिए गठित कमेटी ने उसके हौंसले को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जहाँ एक तरफ रिकार्ड तोड़ खिलाड़ियों को खेल रत्न के लिए चुना गया तो सबसे काबिल और भविष्य के सबसे भरोसे वाले खिलाड़ी के सम्मान और आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाई गई है।
पूर्व राष्ट्रीय एथलेटिक कोच बहादुर सिंह को जब यह खबर मिली कि नीरज को खेल रत्न के काबिल नहीं समझा गया तो उनकी पहली प्रतिक्रिया रही, ‘फिर तो भारतीय खेलों को भगवान बचाए’। उनकी राय में खेल रत्न बनाए गए सभी खिलाड़ियों में नीरज का प्रदर्शन बेहतर रहा है। कुछ अन्य कोाचों और पूर्व एथलीटों ने अपना नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि नीरज को अवॉर्ड नहीं मिलने का मतलब है कि खेल अवार्डों की गरिमा को चोट पहुँचाई गई है और अवार्डों की बंदर बाँट हो रही है।
जिन पाँच खिलाड़ियों को सम्मान के लए चुना गया है उनमें सिर्फ़ विनेश फोगाट ही असली खेल रत्न है। उसने एशियाड और कामनवेल्थ खेलों में स्वर्ण जीते हैं और ओलंपिक का टिकट पाया है। नीरज ने जकार्ता एशियाई खेलों में 88.06 मीटर की थ्रो के साथ स्वर्ण जीता और नया राष्ट्रीय रिकार्ड बनाया। इससे पहले वह कामनवेल्थ खेलों जैसे कड़े मुक़ाबले में स्वर्ण जीत चुका था। थोड़ा और पीछे चलें तो जूनियर विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतकर उसने बड़ा नाम कमाया। हालाँकि एशियाई खेलों के बाद वह काफ़ी समय तह कोहनी की चोट के चलते परेशान रहा लेकिन चोट से उभरने के बाद दक्षिण अफ्रीका में 87.86 मीटर की थ्रो से टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने की योग्यता पाई।
29 अगस्त अभी दूर है। देश के खेल मंत्री यदि बड़ी भूल सुधार सकते हैं तो उन्हें देश हित और खेल हित में निर्णय लेने का अधिकार है। नीरज के मामले को फिर से देखा जा सकता है।
(राजेंद्र सजवान वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं. आप इनके लिखे लेख www.sajwansports.com पर भी पढ़ सकते हैं.)