नए विकसित सेंसर से अब 15 मिनट में ही पता चल जाएगा कि पानी में कितना आर्सेनिक है

चिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली: इंस्पायर फैकल्टी फेलो डॉ. वनीश कुमार ने 15 मिनट में ही पानी और खाद्य नमूनों में आर्सेनिक संदूषण का पता लगाने के लिए एक अति-संवेदनशील तथा उपयोग में आसान सेंसर विकसित किया है। यह सेंसर अत्यंत संवेदनशील, चयनात्मक तथा एक ही चरण की प्रक्रिया वाला है और यह विभिन्न तरह के पानी और खाद्य नमूनों के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। अपनी तरह के इस विशेष सेंसर को केवल स्टैन्डर्ड लेबल के साथ रंग परिवर्तन (सेंसर की सतह पर) को परस्पर संबंधित करके एक आम आदमी द्वारा भी आसानी से संचालित किया जा सकता है।

भारत सरकार में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के इंस्पायर फैकल्टी फेलोशिप प्राप्तकर्ता तथा वर्तमान में राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (एनएबीआई) मोहाली में तैनात डॉ कुमार द्वारा विकसित सेंसर का परीक्षण तीन तरीकों से किया जा सकता है- स्पेक्ट्रोस्कोपिक मापन, कलरमीटर या मोबाइल एप्लिकेशन की सहायता से रंग तीव्रता मापन और खुली आंखों से।

मिश्रित धातु (कोबाल्ट/मोलिब्डेनम) आधारित धातु-जैविक ढांचे पर विकसित यह सेंसर आर्सेनिक की एक विस्तृत श्रृंखला – 0.05 पीपीबी से 1000 पीपीएम तक का पता लगा सकता है। कागज और कलरमीट्रिक सेंसर के मामले में आर्सेनिक के संपर्क में आने के बाद मेटल-ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (एमओएफ) का रंग बैंगनी से नीले रंग में बदल जाता है। इसमें नीले रंग की तीव्रता आर्सेनिक की सांद्रता में वृद्धि होने के साथ बढ़ती है।

भूजल, चावल के अर्क और आलू बुखारा के रस में आर्सेनिक के परीक्षण के लिए स्पेक्ट्रोस्कोपिक के साथ-साथ कागज आधारित उपकरणों के निर्माण के लिए इसका सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है। इस शोध को ‘केमिकल इंजीनियरिंग जर्नल’ में प्रकाशन के लिए स्वीकृत भी किया गया है।

आम आदमी को आर्सेनिक से जुड़े संभावित स्वास्थ्य मुद्दों से बचाने के लिए पानी और भोजन में सेवन से पहले ही आर्सेनिक की पहचान करना जरूरी है। हालांकि, हानिकारक तत्वों का पता लगाने के मौजूदा तरीकों में से कोई भी आम आदमी द्वारा आसानी से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

मोलिब्डेनम-ब्लू टेस्ट के उन्नत संस्करण की तुलना में यह नई विकसित परीक्षण किट 500 गुना अधिक संवेदनशील है, जो आर्सेनिक आयनों के संवेदन के लिए उपयोग में लाए जाने वाले सबसे आम (और पारंपरिक) परीक्षणों में से एक है। यह एटामिक अब्सॉर्प्शन स्पेक्ट्रोस्कोपी (एएएस) और इंडक्टिवली-कपल्ड प्लाज़्मा मास स्पेक्ट्रोमेट्री (आईसीपीएमएस) जैसी अन्य आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली उन विश्लेषणात्मक तकनीकों की तुलना में किफायती व सरल है, जिसके लिए महंगे सेट-अप, लंबी और जटिल कार्यप्रणाली, कुशल ऑपरेटरों, जटिल मशीनरी तथा क्लिष्ट नमूने तैयार करने की आवश्यकता पड़ती थी। डॉ. वनीश कुमार की टीम एमओ-एएस अंतःक्रिया के आधार पर आर्सेनिक आयनों की संवेदन के लिए एमओएफ का पता लगाने वाली पहली टीम है।

डॉ. कुमार ने अपने शोध की व्याख्या करते हुए बताया कि, आर्सेनिक आयनों के लिए संवेदनशील एवं चयनात्मक संवेदन पद्धति की अनुपलब्धता हमारे समाज के लिए चिंताजनक है। इसे एक चुनौती मानते हुए, हमने आर्सेनिक के लिए एक त्वरित और संवेदनशील पहचान पद्धति के विकास पर काम करना शुरू किया। हमें मोलिब्डेनम और आर्सेनिक के बीच पारस्परिक प्रभाव की जानकारी थी। इसलिए, हमने मोलिब्डेनम और एक उत्प्रेरक (जैसे, सह) से युक्त सामग्री बनाई, जो मोलिब्डेनम और आर्सेनिक की परस्पर क्रिया से उत्पन्न संकेत दे सकती है। कई प्रयासों के बाद, हम आर्सेनिक आयनों की विशिष्ट, एक-चरणीय और संवेदनशील पहचान के लिए मिश्रित धातु एमओएफ विकसित करने में सक्षम हुए।

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