कांग्रेस में गांधी परिवार के आभामंडल से बाहर आने की इच्छा शक्ति नहीं
कृष्णमोहन झा
कांग्रेस के 5 पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित 23 वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक सामूहिक चिट्ठी लिखकर पार्टी का नया पूर्ण कालिक अध्यक्ष चुनने की जो मांग की थी उसका कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में जो हश्र हुआ वह पहले से ही तय माना जा रहा था । इस चिट्ठी पर मंथन हेतु आयोजित कांग्रेस कार्य समिति की सात घंटे तक चली मैराथन बैठक में उक्त मांग को न केवल सिरे से खारिज कर दिया गया बल्कि चिट्ठी लिखने वालों को यह चेतावनी भी दी गई किइस तरह की चिट्ठी लिखना पार्टी को कमज़ोर करने का प्रयास है जिसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जावेगा। कार्य समिति की बैठक में न केवल अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी बल्कि पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में भी पूर्ण विश्वास व्यक्त किया गया। गौरतलब है कि इस चिट्ठी के पूर्व भी पार्टी के अनेक नेताओं ने पिछले दिनों इस आशय के बयान दिए थे कि चूंकि पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी काएक साल का कार्यकाल पूर्ण हो चुका है अतएव पार्टी कोअब एक पूर्ण कालिक अध्यक्ष चुनने में कोई विलंब नहीं करना चाहिए।
इस तरह के बयानों पर गांधी परिवार की ओर से तो कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की गई परंतु जब पार्टी के 23 प्रमुख नेताओं ने सोनिया गांधी को ही एक सामूहिक चिट्ठी लिखकर पूर्ण कालिक अध्यक्ष चुनने की मांग कर डाली तो उस चिट्ठी ने चिट्ठी बम का रूप ले लिया और थोड़ी देर के लिए ऐसा प्रतीत होने लगा कि इस चिट्ठी बम का धमाका पार्टी में भूचाल की स्थिति पैदा कर सकता है परंतु कार्य समिति की सात घंटे चली बैठक में गांधी परिवार के प्रति वफादार नेताओं ने चिट्ठी बम को फुस्सी बम बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । शायद गांधी परिवार को इस तरह की सामूहिक चिट्ठी की उम्मीद कभी नहीं रही होगी । इसीलिए इस चिट्ठी ने राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी को इतना खफा कर दिया कि चिट्ठी लिखने वाले नेताओं के विरुद्ध अपनी सख्त नाराजगी का इजहार करने में भी उन्होंने कोई संकोच नहीं किया ।
बात तो यहां तक पहुंच गई कि कार्य समिति ने उक्त चिट्ठी को कथित रूप से भाजपा की परोक्ष मदद करने का प्रयास निरूपित करने में भी कोई संकोच नहीं किया । राहुल गांधी ने इस बात पर ऐतराज़ जताया कि यह चिट्ठी लिखने वाले नेताओं ने इसके लिए जो समय चुना वह कतई उपयुक्त नहीं था ।पार्टी इस समय राजस्थान में सरकार बचाने की मशक्कत में लगी हुई है और मध्यप्रदेश में निकट भविष्य में ही 24 विधान सभा सीटें के लिए उपचुनाव संपन्न होने जा रहे हैं । राहुलगांधी चिट्ठी लिखने वाले नेताओं से इसलिए भी नाराज दिखाई दिए कि उन्होंने पार्टी की यह चिट्ठी लिखते वक्त सोनिया गांधी की अस्वस्थता को भी नजरअंदाज करने में कोई संकोच नहीं किया ।
कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में दिन भर चली चर्चा के बाद शाम को सर्व सम्मति से एक प्रस्ताव के माध्यम सेसोनिया गांधी से यह अनुरोध किया गया कि वे पूर्ण कालिक अध्यक्ष का चुनाव होने तक कार्यकारी अध्यक्ष पद पर बनी रहें जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया । इस तरह अब एक बात तो तय हो गई है कि सोनिया गांधी अभी और 6माहों तक पार्टी की कार्यकारी
अध्यक्ष बनी रहेंगी ।बैठक में जिस तरह सोनिया गांधी के साथ ही राहुल गांधी के नेतृत्व में भी विश्वास व्यक्त किया गया उससे यह संकेत भी मिलता है कि पार्टी राहुल गांधी के अलावा किसी और नेता को पूर्ण कालिक अध्यक्ष के रूप में स्वीकार करने केलिए तैयार नहीं है । दरअसल जिस चिट्ठी बम के धमाके से पार्टी में भूचाल आने की संभावना व्यक्त की जा रही थी उसने पार्टी के ऊपर गांधी परिवार की पकड और मजबूत कर दी है । एक ओर तो सोनिया गांधी का कार्यकारी अध्यक्ष पद पर कार्यकाल 6 माह के लिए बढ़ा दिया गया और दूसरी ओर राहुल गांधी को पुन: पू्र्ण कालिक अध्यक्ष बनाने की पृष्ठभूमि भी तैयार हो गई ।जो राहुल गांधी कल तक यह कहते नहीं कहते थे कि गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को पार्टी अध्यक्ष पर की जिम्मेदारी संभालना चाहिए वही अब अपने हावभाव से यह जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार होने के संकेत देने लगे हैं । दरअसल राहुल गांधी ने गत वर्ष संपन्न लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की करारी हार के बाद अध्यक्ष पद से त्यागपत्र तो जरूर दे दिया था परंतु पार्टी पर अपनी पकड को कभी कमजोर नहीं होने दिया ।उनकी राय को पार्टी में हमेशा एक अध्यक्ष की राय के रूप में तरजीह दी गई । यही स्थिति आज भी बरकरार है । सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की कांग्रेस पार्टी के अंदर जो हैसियत है उसे चुनौती देने के प्रयासों का क्या हश्र होगा यह कांग्रेस कार्यसमिति की कल संपन्न बैठक के नतीजों से साबित हो गया है ।
कांग्रेस पार्टी की सबसे विडंबना यह है कि पार्टी के अंदर हर बड़े विवाद को सुलझाने में गांधी परिवार की भूमिका ही अहम साबित होती रही है फिर चाहे वह मध्यप्रदेश और राजस्थान में मुख्यमंत्री चयन का मामला हो या फिर राजस्थान में कांग्रेसी सरकार के विरुद बगावत हुई हो, हर मौके पर गांधी परिवार ने ही किसी भी विवाद का निपटारा करने में अहम भूमिका निभाई है इसलिए यह तो सोचना भी मुश्किल है कि कांग्रेस पार्टी कभी गांधी परिवार के आभामंडल से बाहर निकलने का साहस जुटा पाएगी ।
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 23 प्रमुख नेताओं की चिट्ठी पर दुख व्यक्त करते भले ही यह कहा हो कि उन नेताओं के प्रति उनके मन में कोई दुर्भावना नहीं है परंतु सवाल यह उठता है कि अगर राहुल गांधी कांग्रेस के पूर्णकालिक अध्यक्ष बन जाते हैं तब क्या वे इस चिट्ठी को भुला पाएंगे अथवा भूलने की कोशिश करेंगे। इसकी संभावना कम ही नजर आती है । दरअसल इस चिट्ठी को गांधी परिवार ने अपने ऊपर हमला माना है । सोनिया गांधी की अस्वस्थता की जानकारी होने के बावजूद 23 नेताओं द्वारा एक सामूहिक चिट्ठी के माध्यम से पार्टी में पूर्ण कालिक अध्यक्ष केचुनाव की मांग करना गांधी परिवार को कतई रास नहीं आया है । उधर जिन नेताओं ने इस चिट्ठी पर हस्ताक्षर किए थे उन्होंने पार्टी में गांधी परिवार के वफादार नेताओं के इस आरोप पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करने में कोई देर नहीं की कि इस चिट्ठी से भा ज पा को लाभ पहुंचा है ।जब किन्हीं सूत्रों से कपिल सब्बल और गुलाम नबी आजाद को यह पता चला कि राहुल गांधी ने उन पर कथित रूप से भाजपा के साथ मिली भगत का आरोप लगाया है तो सिब्बल ने तुरंत विरोध में एक ट्वीट किया और गुलाम नबी आजाद ने यह धमकी दे डाली कि अगर यह आरोप सही साबित हुआ तो वे पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं ।
बाद में दोनों नेताओं ने यह मान लिया कि राहुल गांधी ने ऐसा कुछ नहीं कहा है । कुल मिलाकर शाम तक ऐसे संकेत मिलने लगे कि सारा विवाद शांत हो गया है परंतु अभी यह मान लेना जल्द बाजी होगा कि पार्टी के अंदर यह मामला हमेशा के लिए शांत हो गया है और भविष्य में पार्टी के पूर्णकालिक अध्यक्ष के चुनाव का मुद्दा फिर नहीं गरमाएगा । सवाल यह उठता है कि कांग्रेस के जिन वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी में भूचाल लाने वाली चिट्ठी सोनिया गांधी को लिखी वे नेता क्या चिट्ठी लिखने के लिए कोई अफसोस जाहिर करेंगे । इसकी कोई संभावना नहीं है। सीधी सी बात यह है कि उक्त नेताओं ने पूर्ण कालिक अध्यक्ष के चुनाव की मांग करके कोई पार्टी विरोधी कार्य नहीं किया । दरअसल उनकी यह मांग पार्टी के हित में ही थी । दरअसल देश में जब कांग्रेस से सशक्त विपक्षी दल की भूमिका निभाने की अपेक्षा की जा रही हो तब कांग्रेस के पास एक पूर्ण कालिक अध्यक्ष का अभाव उसकी बहुत बडी कमजोरी साबित हो रहा है । जो पार्टी एक साल से अंतरिम अध्यक्ष से काम चला रही हो उस पार्टी से आक्रामक विपक्षी दल की भूमिका निभाने की उम्मीद कैसे की जा सकती है । दरअसल कांग्रेस पार्टी के लिए यह दुर्भाग्य का विषय है कि इस समय उसका सामना उस भारतीय जनता पार्टी से है जिसकी सबसे बड़ी पूंजी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की करिश्माई लोकप्रियता और अमित शाह का रणनीतिक कौशल है । कांग्रेस के पास इस समय करिश्माई लोकप्रियता और रणनीतिक
कौशल के धनी नेताओं का जो अभाव है उसने पार्टी के अस्तित्व के लिए ही संकट उपस्थित कर दिया है । कांग्रेस को अपने उन बुजुर्ग नेताओं को मार्ग दर्शक मंडल में स्थान देना होगा जो पार्टी पर अपना अधिकार नहीं छोडना चाहते । पार्टी को अब अपनी युवाशक्ति को अग्रिम मोर्चे पर लाना होगा । राहुल गांधी और
प्रियंका गांधी वाड्रा अगर पार्टी की बागडोर अपने ही हाथों में रखना चाहते हैं तो उन्हें पार्टी का खोया हुआ गौरव और वैभव वापस लाने के जी तोड़ मेहनत करनी होगी तभी कार्यकर्ताओं का खोया हुआ मनोबल लौट सकता है । करिश्माई नेता, कुशल रणनीति और उत्साही कार्यकर्ताओं की फौज के बल पर ही कोई किसी लोकतांत्रिक देश में अपनी अलग पहचान बना सकती है । कांग्रेस इस सत्य को जितनी जल्दी आत्मसात कर ले उतनी ही वह अपने अस्तित्व से उबरने में सफल हो सकती है ।
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)