देश में तेंदुओं की संख्या 60 फीसदी बढ़कर 12,852 हुए
चिरौरी न्यूज़
नई दिल्ली: केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर ने आज नई दिल्ली में भारत में तेंदुओं की स्थिति पर रिपोर्ट जारी की। इस मौके पर उन्होंने कहा कि भारत में पिछले कुछ वर्षों में बाघ, शेर, तेंदुए की संख्या में हुई बढ़ोतरी इस बात का प्रमाण है कि देश में वन्य जीवों के संरक्षण के प्रयास अच्छे परिणाम दे रहे हैं और वन्य जीवों की संख्या और जैव विविधता में सुधार हो रहा है।
ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत में तेंदुओं की संख्या 12,852 तक पहुंच गई है। जबकि इसके पहले 2014 में हुई गणना के अनुसार देश में 7,910 तेंदुए थे। इस अवधि में तेंदुओं की संख्या में 60 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। गणना के अनुसार मध्य प्रदेश में 3,421 तेंदुए, कर्नाटक में 1,783 तेंदुए और महाराष्ट्र में 1,690 तेंदुए, दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा पाए गए हैं।
इस मौके पर श्री जावडेकर ने कहा कि जिस तरह से भारत में टाइगर की निगरानी की गई है, उसका फायदा पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को हुआ है और उसी वजह से तेंदुए जैसी प्रजातियों की संख्या में बढ़ोतरी करना आसान हुआ है। भारत ने टाइगर सर्वेक्षण में भी विश्व रिकॉर्ड बनाया है। जिसने तेंदुए की संख्या और टाइगर रेंज में कुल 12,852 (12,172-13,535) तेंदुए की मौजूदगी का भी आकलन किया है। तेंदुए शिकार से संरक्षित क्षेत्रों के साथ-साथ बहु उपयोग वाले जंगलों में भी पाए जाते हैं। गणना के दौरान कुल 51,337 तस्वीरें ली गई जिसमें से 5240 वयस्क तेंदुओं की पहचान की गई है। जिसके लिए गणना करने वाले खास सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया गया। सांख्यिकी विश्लेषणों के अधार पर टाइगर क्षेत्र में कुल 12,800 तेंदुओं की गणना की गई है।
तेंदुओं की संख्या की गणना न केवल टाइगर रेंज में की गई बल्कि गैर वन वाले क्षेत्र जैसे कॉफी, चाय के बागान और दूसरे भौगोलिक क्षेत्र में भी की गई है, जहां पर तेंदुए पाए जाने की संभावना होती है। गणना में हिमालय के ऊंचाई क्षेत्र, शुष्क क्षेत्र से लेकर पूर्वोत्तर भारत के क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया है। इन क्षेत्रों को शामिल नहीं करने की प्रमुख वजह यह है कि इन क्षेत्रों में तेंदुओं की संख्या बेहद कम होने के आसार हैं।
एक अहम बात और यह है कि बाघ की निगरानी से तेंदुए जैसी प्रजातियों का आकलन करने में भी मदद मिली है। द नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी और वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एनटीसीए-डब्ल्यूआईआई) जल्द ही दूसरी प्रजातियों के बारे में जानकारी साझा करेगा।