महामारी और अदूरदर्शी नेतृत्व
निशिकांत ठाकुर
आइए इस बार वैश्विक महामारी कोरोना से बचाने के भारत सरकार की ‘दूरदर्शिता’ पर चर्चा करते हैं। पिछले दिनों एक कोरोनारोधी टीकाकरण के लिए रिकॉर्डतोड़ अभियान चलाया गया। दावा किया गया कि अभियान के तहत पहले ही दिन देशभर में 81 लाख से ज्यादा लोगों को टीका लगाया गया। निश्चित रूप से यह सरकार की बड़ी उपलब्धि है और इसकी जानकारी आम लोगों को होनी चाहिए, ताकि उनमें भी जागरूकता आए और जो लोग इस उधेड़बुन में थे कि अब क्या होगा, उनमें विश्वास जग सके कि सरकार को उनकी भी चिंता है। अब तक लाखों लोगों को अपने मुंह में समा लेने वाली इस महामारी ने कितने परिवारों को उजाड़ दिया, कितनी महिलाओं का सुहाग छीन लिया, कितने बच्चों के सिर से माता—पिता का साया छीन लिया, कितनी मांओं की कोख सूनी कर दी, पिताओं के बुढ़ापे की लाठी छीन ली, इसका आंकड़ा आज देश के किसी राज्य सरकार के पास अथवा केंद्र सरकार के पास उपलब्ध ही नहीं है।
यह तो सच है कि कोविड—19 का जो पहला आक्रमण भारत या विश्व के किसी देश पर हुआ, वह अप्रत्याशित था। महामारी कहां से पैदा हुई, कहां से आई, कैसे आई, इसका पता सबूत सहित आज तक कोई नहीं दे पाया है । यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अब तक यह तक बता नहीं पाया है कि इस महामारी का मुख्य कारण क्या था और इसका जनक विश्व का कौन देश रहा है। पहले झटके, यानी लहर के बाद विश्व के कुछ विकसित देश ही संभल पाए, जिसके कारण दूसरे झटके, यानी लहर से कोई अधिक नुकसान उन्हें नहीं उठाना पड़ा। लेकिन, दूसरी लहर में भारत में दूरदर्शिता के अभाव में लाखों लोगों की मौत हुई जिन्हें चिता या फिर अंतिम—संस्कार तक का भी सौभाग्य नहीं मिला। ऐसे शवों को जहां—तहां कचरे की तरह फेंक दिया गया, मिट्टी में दबा दिया गया या गंगा सहित पवित्र नदियों में बहा दिया गया। मरने के बाद शवों के साथ इस प्रकार अपमानजनक व्यवहार तो किसी ने न तो देखा था, न सुना था।
मैंने पिछले लेख में लिखा था कि हमारे भारतवर्ष की धरती पर तमाम युद्ध लड़े गए। यहां तक कि महाभारत का भी युद्ध हुआ, लेकिन धर्मयुद्ध के किसी योद्धा के शव के साथ भी इस प्रकार का अपमानजनक व्यवहार नहीं किया गया। कई ऐसे युद्ध हुए जिनमें हजारों योद्धा हताहत हुए, फिर भी अंत इतना दुखद किसी का नहीं हुआ। अब इसकी जांच की जा रही है।सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर करके मृतकों के आश्रितों को चार लाख रुपये देने की बात कही गई थी । जिसपर कोरोना से मरने वालों के परिजनों को मुआवजा या अनुग्रह राशि दिए जाने के बारे में पिछले सप्ताह अहम फैसला सुनाया गया ।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है की न्यूनतम राशि के गाइड लाइन तय करना आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का बिधायी अधिकार है इसमें कोरोना से मौत पर अनुग्रह राशि देना शामिल है । कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि गाइडलाइन नही जारी करना एन डी एम ए की अपने बिधायी कर्तव्य निर्वहन में नाकामी है । कोर्ट ने आदेश दिया की वह छह सप्ताह के भीतर अनुग्रह राशि देने के बारे में न्यूनतम राहत की गाइडलाइन जारी करे । सर्वोच्च न्यायालय सरकार की कई कमियों पर अपनी टिप्पणी में कह चुका है कि कोरोना से मृत्यु प्रमाणपत्र जटिल है। माननीय न्यायाधीश ने यह भी कहा कि प्रमाणपत्र जारी होने के बावजूद यह नहीं दिखाया गया है कि मौत का कारण क्या है? उसके साथ ही यह भी कहा कि जब मानवता खत्म हो गई है और दवाओं की कालाबाजारी जैसी चीजें हो रही हैं तो फिर कहने को कुछ बचता ही क्या है। लेकिन, हमारी प्राथमिकता देश की आम जनता है।
ऐसा नहीं है कि ऐसी महामारी देश—दुनिया में पहली बार आई हो। जब हमारा देश विकसित नहीं था तब भी महामारी आती थी जिनमें शहर के शहर और गांव के गांव खत्म हो जाते थे, लेकिन तब भी शवों का अंतिम—संस्कार सामूहिक रूप से ही सही, निश्चित रूप से किया जाता था। हैजा, प्लेग जैसी कई महामारियां किस्तवार रूप में दस्तक देती रहती थीं, पर चूंकि उस समय हमारा देश विकसित नहीं था तो हम इलाज के लिए पारंपरिक पद्धतियों, यानी जड़ी—बूटी तथा घरेलू उपचारों पर ही निर्भर रहते थे। लेकिन, आज वह स्थिति नहीं है। अब हमारे पास सब कुछ है, लेकिन इसके बावजूद हम किस लापरवाही, कूपमंडूकता और अनुमान पर आश्रित रहे, जिसके कारण देश के सामान्य नागरिकों को भयंकर हानि उठानी पड़ी? दुर्भाग्य तो यह है कि हम इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि हां, हमारी दूरदर्शिता में कुछ कमी रही, जिसके कारण देश को इतनी मौतों का नुकसान उठाना पड़ा। हम आज भी आत्ममुग्ध हैं, अपनी पीठ थपथपा रहे हैं कि हमने जंग जीत लिया है। कितनी हास्यास्पद बात है कि हमारी कमी को विदेशी मीडिया चटखारे ले—लेकर दिखा—सुना—पढ़ा रहा है और यहां अपने देश में उस पर टीका—टिप्पणी करने वालों को जेल में डालकर, तरह—तरह के आरोप लगाकर उनका जीना हराम कर देते हैं, महज इसलिए ताकि कोई हमारी असली छवि को बेनकाब न कर दे… हमारे श्वेत वस्त्र पर दाग न लगा दे। हमारी छवि और हमारे वस्त्र बेदाग रहें, इसके बावजूद यदि कोई सच लिखने और समाज को जगाने का काम करता है, उसके पीछे उसे अपमानित और जलील करने वाले एक कटखैये फौज को लगा दिया जाता है। नीति यही है— समाज के एक वर्ग को खुश करो, शेष तो पिछलग्गू ही हैं। पता नहीं, ऐसा कब तक चलेगा!
अभी कोरोना का कहर खत्म नहीं हुआ है। अभी उसके कई फेज आने की आशंका जताई जा रही है, लेकिन तीसरे फेज के बारे में चर्चा यहां तक है कि वह सबसे घातक होगा।
आईआईटी कानपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. राजेश रंजन और प्रो. महेंद्र वर्मा ने कोरोना की तीसरी लहर के बारे में कहा है कि उसमें हालत बिगड़ने पर देश में रोज पांच लाख तक केस आ सकते हैं। यह लहर सितंबर में अपने पीक पर होगा। कोरोना में हुई चूक पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक श्वेतपत्र जारी किया है। उसमें कांग्रेस ने कहा है कि महामारी रोकने की दिशा में उठाए गए कदमों को लेकर हम सरकार की नाकामी की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि तीसरी संभावित लहर जो आने वाली है, उसके लिए कांग्रेस पार्टी सरकार को सचेत कर रही है। श्वेतपत्र में यह भी कहा गया है कि यही बात पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने उस समय कही थी जब कोरोना का पहला फेज शुरू हुआ था, लेकिन उसके लिए उनकी हंसी उड़ाई गई। राहुल गांधी ने कहा कि यही बात मैंने भी कही थी, लेकिन उसका भी मजाक उड़ाया गया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने कोरोना नियंत्रण से जुड़े कदमों की समीक्षा के लिए सर्वदलीय समिति बनाने की बात कही है, गरीबों को आर्थिक मदद करने तथा कोरोना परिवारों को चार—चार लाख रुपये की मदद देने और राज्यों को न्याय संगत और उचित मात्रा में टीके उपलब्ध कराने की सलाह दी गई है। अब तक यदि सरकारी आंकड़ा सही है तो ऐसा लगता है कि शायद कोरोना की तीसरी लहर आने तक टीकाकारण का अभियान देश में पूरा हो जाए। लेकिन, यदि ऐसा नहीं हुआ तो फिर देश को इसका कितना बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ेगा, यह तो जो जीवित रहेंगे वही बता पाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)