‘पढ़ेगा’ तभी तो आगे बढ़ेगा देश
निशिकांत ठाकुर
पिछले दिनों एक साक्षात्कार में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अशिक्षित वर्ग के लोगों को देश पर एक बोझ बताया। गृह मंत्री ने कहा, एक अनपढ़ व्यक्ति अच्छा नागरिक कभी नहीं बन सकता, क्योंकि उसे अपने मौलिक अधिकारों तक की जानकारी नहीं होती। गृह मंत्री ने बिना लाग—लपेट के यह बात कहकर देश की राजनीति में हलचल मचा दी है। राजनीतिक स्तर पर विपक्षी दल इसकी कटु आलोचना कर रहे हैं। सच तो यह है उन्होंने यह सच ही कहा है, लेकिन यहां प्रश्न यह है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? राज्य सरकार, केंद्र सरकार या वह अशिक्षित व्यक्ति, जो सरकार द्वारा प्रदत्त समस्त सुविधाएं छोड़कर अशिक्षित रहकर अपमानित जीवन जीना स्वीकार कर लिया जिसे अपने मौलिक अधिकारों तथा संविधान तक का ज्ञान नहीं है? हमारे देश में लोकतंत्र है, जहां प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि सरकार उसकी मदद करे। वह इसलिए क्योंकि हम विकसित नहीं हो सके, क्योंकि विकास का पैमाना ही शिक्षा है।
सच में हमारी शिक्षा व्यवस्था उस तरह की बनाई ही नहीं की गई जिस तरह की जरूरत भारतीय समाज को थी। हम जात—पात की राजनीति में उलझे रहे, हम उलझे रहे हिंदू-मुसलमान में, हम उलझे रहे तथाकथित गरीबी हटाने में, लेकिन हमने शिक्षा के गिरते स्तर पर कभी ध्यान ही नहीं दिया। लेकिन, क्या हम इस बात का ही रोना रोते रहें कि आजादी के बाद से ही इसपर ध्यान नहीं दिया गया? क्या हम लकीर पीटते रहें कि पूर्ववर्ती सरकारों के कारण ही शिक्षा का स्तर गिरता रहा? प्रश्न यह है कि हमने या यूं कहिए कि हमारी सरकार ने उसमें सुधार के लिए क्या किया। देश की शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए, शिक्षा के लिए पलायन करने वाले छात्रों को रोकने के लिए क्या किया? प्रश्न बहुत हैं, लेकिन इन प्रश्नों से समस्या का समाधान नहीं होने वाला है। इसी प्रक्रिया में अपने देश के विभिन्न राज्यों के शिक्षा स्तर के समझने के लिए प्रयास किया और जो जानकारी मिली सच में वह चौंकाने वाली है।
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के सर्वेक्षण के अनुसार भारत में साक्षरता के मामले में केरल एक बार फिर पहले पायदान पर रहा है, जबकि आंध्र प्रदेश सबसे निचले स्थान पर है। सर्वेक्षण के अनुसार केरल में साक्षरता दर 96.2 प्रतिशत, जबकि आंध्र प्रदेश 66.4 प्रतिशत है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 75वें दौर के तहत जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच ‘परिवारिक सामाजिक उपभोग : भारत में शिक्षा’ पर आधारित इस रिपोर्ट में सात साल या उससे अधिक आयु के लोगों के बीच साक्षरता दर की राज्यवार जानकारी दी गई है। सर्वेक्षण के अनुसार केरल के बाद दिल्ली 88.7 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ दूसरे स्थान पर है। उत्तराखंड 87.6 प्रतिशत के साथ तीसरे, हिमाचल प्रदेश 86.6 फीसदी के साथ चौथे और असम 85.9 प्रतिशत के साथ पांचवे स्थान पर है। दूसरी ओर राजस्थान 69.7 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ सबसे पिछड़े राज्यों में दूसरे स्थान पर है। इसके ऊपर बिहार 70.9, तेलंगाना 72.8 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश 73 प्रतिशत और मध्य प्रदेश 73.7 प्रतिशत है। सर्वेक्षण के अनुसार देश की साक्षरता दर 77.7 प्रतिशत है। देश के ग्रामीण इलाकों की साक्षरता दर जहां 73.5 प्रतिशत है, वहीं शहरी इलाकों में यह दर 87.7 प्रतिशत है। राष्ट्रीय स्तर पर पुरुषों की साक्षरता दर 84.7 प्रतिशत, जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 70.3 प्रतिशत है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि सभी राज्यों में पुरुषों की साक्षरता दर महिलाओं से अधिक है। केरल में पुरुषों की साक्षरता दर 97.4 प्रतिशत, जबकि महिलाओं की साक्षरता दर 95.2 प्रतिशत है। इसी प्रकार, दिल्ली में पुरुषों की साक्षरता दर 93.7 प्रतिशत, जबकि महिलाओं की यह दर 82.4 प्रतिशत है। साक्षरता दर के मामले में पिछड़े राज्यों में भी पुरुषों और महिलाओं की साक्षरता दर में अच्छा-खासा अंतर है। आंध्र प्रदेश में पुरुषों की साक्षरता दर 73.4 प्रतिशत है जबकि महिलाओं (सात साल या उससे अधिक आयु)की साक्षरता दर 59.5 प्रतिशत है। राजस्थान में पुरुषों की साक्षरता दर जहां 80.8 प्रतिशत है, वहीं महिलाओं की साक्षरता दर 57.6 प्रतिशत है।
बिहार में भी पुरुषों की साक्षरता दर महिलाओं से अधिक है। बिहार में जहां 79.7 प्रतिशत पुरुष साक्षर हैं, वहीं 60 प्रतिशत महिलाएं पढ़ी-लिखी हैं। सर्वे के दौरान देशभर से 8,097 गांवों से 64,519 ग्रामीण परिवारों और 6,188 ब्लॉक से 49,238 शहरी परिवारों के सैंपल लिए गए थे। सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चार प्रतिशत ग्रामीण परिवारों और 23 प्रतिशत शहरी परिवारों के पास कंप्यूटर है। रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण इलाकों में 15 से 29 साल तक की उम्र के लगभग 24 प्रतिशत, जबकि शहरी इलाकों में 56 प्रतिशत लोग कंप्यूटर चला सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि सर्वे से 30 दिन पहले 15 से 29 साल के बीच के लगभग 35 प्रतिशत लोग इंटरनेट चला रहे थे। ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की दर 25 प्रतिशत, जबकि शहरी इलाकों में 58 प्रतिशत है ।
किसी भी देश का भविष्य उस देश के युवाओं पर निर्भर करता है। ऐसे में अगर आज की पीढ़ी शिक्षा से वंचित रहती है तो इसका नुकसान भविष्य में भारत को ही उठाना होगा। रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत की वयस्क साक्षरता दर 74-75 प्रतिशत है, जो दुनिया भर में औसत 86 प्रतिशत से नीचे है। यह इस सवाल का संकेत देता है कि केंद्र सरकार के ‘बेटी पढाओ, बेटी बचाओ’ अभियान सहित सभी योजनाओं का क्या हुआ? वहीं, साल 2015 में भारत की कुल साक्षरता दर 71.96 प्रतिशत थी। एक रिपोर्ट के मुताबिक , देश में शहरी जगहों पर अभी भी 35 मिलियन (करीब 3.5 करोड़) बच्चे हैं जो अभी भी स्कूल नहीं जाते हैं, हालांकि शिक्षा का अधिकार कानून 14 साल की उम्र तक के बच्चों को स्कूल जाने के लिए अनिवार्य बनाता है। बच्चों का स्कूल न जाने वजह स्कूल की अतिरिक्त फीस माना गया है। अच्छी शिक्षा के लिए कई छात्रों को काफी फीस देनी पड़ती है जो ज्यादातर परिवार के बजट से बाहर होती है।
आंकड़े बताते हैं कि 80 से 90 मिलियन बच्चे स्कूल की फीस का भुगतान करने के लिए बाहरी वित्तीय सहायता जैसे लोन और स्कॉलरशिप पर निर्भर हैं। बच्चों को कम उम्र में ही शिक्षा प्राप्त करने के लिए कई जतन करने पड़ते हैं। ऐसे में सरकार को सोचना चाहिए कि हर घर में कितनी सुलभ तरीके से शिक्षा को पहुंचाया जा सकता है। सरकार को इस प्रश्न पर गौर करना ही चाहिए कि हम शिक्षा को कैसे सर्वसुलभ बना सकते हैं, ताकि देश का शत—प्रतिशत आमजन उसका लाभ उठा सके, क्योंकि यदि अब भी समाज का हर व्यक्ति शिक्षित नहीं होगा तो सच में वह अपने मौलिक अधिकार को कैसे समझ सकेगा और जब तक वह अपने मौलिक अधिकार को समझ नहीं सकेगा, हिंदुस्तान ‘विश्वगुरु’ की उपाधि से कैसे विभूषित हो सकेगा। इस महान उद्देश्य के लिए चुनती तो सरकार को ही स्वीकार करनी होगी, चाहे वह केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)