कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण बढ़ाने की सिफारिश, जाति जनगणना रिपोर्ट से उठा नया राजनीतिक भूचाल

Recommendation to increase Muslim reservation in Karnataka, new political storm arose due to caste census report
(File Photo/Congress Twitter)

चिरौरी न्यूज

बेंगलुरु: कर्नाटक में जातिगत जनगणना की रिपोर्ट ने राज्य की सियासत में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा कांग्रेस सरकार को सौंपी गई इस रिपोर्ट में राज्य की मुस्लिम आबादी को 18.08 प्रतिशत बताया गया है और उनके लिए आरक्षण को मौजूदा 4 प्रतिशत से बढ़ाकर 8 प्रतिशत करने की सिफारिश की गई है।

सूत्रों के अनुसार, यह रिपोर्ट 10 अप्रैल को मंत्रिमंडल के समक्ष प्रस्तुत की गई थी और 17 अप्रैल को इसकी सिफारिशों पर विचार करने के लिए विशेष कैबिनेट बैठक बुलाई गई है।

मुस्लिम समुदाय को 8% आरक्षण की सिफारिश

रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम समुदाय को श्रेणी 2बी (Category 2B) में रखा गया है और उनकी कुल आबादी 75.25 लाख बताई गई है, जो राज्य की कुल जनसंख्या का 18.08 प्रतिशत है। इसके आधार पर उनके आरक्षण को दोगुना कर 8 प्रतिशत करने की सिफारिश की गई है। वर्तमान में मुस्लिम समुदाय को 4 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है।

यह आंकड़ा राज्य की दो प्रभावशाली जातियों—वोक्कालिगा (10.31%) और लिंगायत (11.09%)—से भी अधिक है।

वोक्कालिगा की जनसंख्या 61.68 लाख है, जिनके लिए 7 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई है।

लिंगायत समुदाय की जनसंख्या 66.35 लाख है और उनके लिए 8 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई है।

आरक्षण की कुल सीमा 75% से अधिक करने की तैयारी

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि राज्य में आरक्षण की सीमा को मौजूदा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत से भी अधिक किया जाए।

ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग): 70% आबादी (4.18 करोड़), आरक्षण 31% से बढ़ाकर 51% करने की सिफारिश।

अनुसूचित जातियाँ (SC): 1.09 करोड़ जनसंख्या, आरक्षण 24.1% रखने की सिफारिश।

अनुसूचित जनजातियाँ (ST): 42.81 लाख जनसंख्या, आरक्षण 9.95%।

नई श्रेणी 1A (गोल्ला, उप्पारा, मोगवीरा, कोली आदि): 73.92 लाख जनसंख्या, सिफारिश – 12% आरक्षण।

श्रेणी 2A (मडिवाला, एदिगा आदि): 77.78 लाख जनसंख्या, सिफारिश – 10% आरक्षण।

सियासी प्रतिक्रियाएं और विवाद

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा है कि रिपोर्ट वैज्ञानिक तरीके से तैयार की गई है और इसे निश्चित रूप से लागू किया जाएगा।

विपक्ष के नेता आर. अशोक (BJP) ने रिपोर्ट को “राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित” और “अवैज्ञानिक” बताया।

लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों ने रिपोर्ट में अपनी जनसंख्या के “कम आकलन” का आरोप लगाते हुए विरोध जताया है।

कांग्रेस नेता बी.के. हरिप्रसाद ने कहा कि केंद्र सरकार ने EWS आरक्षण लागू कर पहले ही 50% की सीमा तोड़ दी है, इसलिए राज्य भी बढ़ा सकता है।

गृह मंत्री जी. परमेश्वर और मंत्री ज़मीर अहमद खान ने पहले ही कहा था कि मुस्लिम आबादी 16 से 18 प्रतिशत के बीच है, इसलिए आरक्षण की पुनर्समीक्षा जरूरी है।

रिपोर्ट की पृष्ठभूमि और लागत

इस जातिगत सर्वेक्षण की शुरुआत 2014 में सिद्धारमैया सरकार के पहले कार्यकाल में हुई थी।

रिपोर्ट की लागत लगभग ₹169 करोड़ रही और इसे 46 वॉल्यूम और दो CDs में तैयार किया गया।

हालांकि रिपोर्ट 2016 में तैयार हो गई थी, लेकिन कांग्रेस-जेडीएस और बीजेपी सरकारों ने इसे जारी नहीं किया।

फरवरी 2024 में, इसे फिर से वर्तमान कांग्रेस सरकार को सौंपा गया।

जातिगत जनगणना की यह रिपोर्ट न केवल सामाजिक न्याय के संदर्भ में एक बड़ा कदम मानी जा रही है, बल्कि इससे राज्य की राजनीति में जातिगत समीकरणों को लेकर नई हलचल भी पैदा हो गई है। आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में यह रिपोर्ट एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकती है.

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