आरक्षण पर संघ का साफ सुथरा नजरिया
कृष्णमोहन झा
हमारे देश में आरक्षण हमेशा ही राजनीतिक दलों के लिए एक ज्वलंत मुद्दा रहा है और हर राजनीतिक दल यह साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता कि दलितों और पिछड़ी जातियों के हितों की चिंता उसे दूसरे दलों से अधिक है। बात केवल यहीं तक सीमित नहीं है । अनेक राजनीतिक दल तो आरक्षण के मुद्दे पर जब तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी निशाना साधने से भी नहीं चूकते जबकि आरक्षण के मुद्दे पर संघ का जो दृष्टिकोण कल था वही आज भी है। संघ ने कभी भी आरक्षण को चुनावी मुद्दा नहीं माना।
किसी चुनाव में भाजपा की जीत की संभावनाओं को बलवती बनाने के लिए आरक्षण के मुद्दे पर का उसके निश्चित दृष्टिकोण से भटकाव भी देखने को नहीं मिला। यह बात अलग है कि अनेक राजनीतिक दलों ने आरक्षण को लेकर संघ के दृष्टिकोण में बदलाव के आरोप लगाने में कभी संकोच नहीं किया। यह आश्चर्य का विषय है कि हमेशा ही संविधान सम्मत आरक्षण का समर्थक होने के बावजूद संघ को कठघरे में खड़ा करने की कोशिशें आज भी जारी हैं । विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि संघ प्रमुख और सरकार्यवाह की कभी भी पलटवार करने की रणनीति अपनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। हर मंच से संघ प्रमुख और सरकार्यवाह ने आरक्षण को लेकर संघ का स्पष्ट दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है।
मोहन भागवत ने आज से दो वर्ष पूर्व न ई दिल्ली में आयोजित भविष्य का भारत कार्यक्रम में आरक्षण को लेकर संघ के दृष्टिकोण की भली भांति व्याख्या करते हुए कहा था कि सामाजिक विषमता को हटाकर सबके लिए समान अवसर सुनिश्चित करने वाले संविधान सम्मत आरक्षण का संघ का पूरा समर्थन करता है। सामाजिक कारणों से समाज के एक हिस्से को हमने पिछले एक हजार साल में निर्बल बना दिया है। उनको ऊपर उठाने के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया है। एक हजार की बीमारी को दूर करने के लिए अगर सौ डेढ़ सौ साल लगते हैं तो यह त्याग हमें करना ही पड़ेगा। यह हमारा कर्तव्य है। संघ प्रमुख ने भविष्य का भारत कार्यक्रम में स्पष्ट कहा था कि आरक्षण समस्या नहीं है।
आरक्षण को लेकर होने वाली राजनीति असली समस्या है। आरक्षण कब तक जारी रहना चाहिए इस बारे में संघ प्रमुख ने सदैव एक ही बात कही है कि यह तय करने की जिम्मेदारी उन लोगों पर छोड़ दी जानी चाहिए जिनके उत्थान के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने लगभग दो वर्ष पूर्व भविष्य का भारत कार्यक्रम में आरक्षण को लेकर जो विचार व्यक्त किए थे उनकी प्रासंगिकता आज भी उसी रूप में महसूस की जा सकती है। संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने हाल में ही न ई दिल्ली में आयोजित एक पुस्तक के विमोचन समारोह में इसी मुद्दे पर फिर एक बार संघ के दृष्टिकोण की विस्तार से चर्चा करते हुए आरक्षण को एक ऐतिहासिक आवश्यकता निरूपित किया है। दत्तात्रेय होसबोले ने अपने संबोधन मे संघ प्रमुख के इस कथन को दोहराया कि आरक्षण तब तक जारी रखा जाना चाहिए जब तक कि आरक्षण से लाभान्वित होने वाले लोग स्वयं ही इसे लेने से इंकार न कर दें। सरकार्यवाह ने कहा कि आरक्षण की सुविधा लेने से इंकार करना उन लोगों का विशेषाधिकार है जिनके सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया है। जब तक समाज का एक वर्ग गैर बराबरी का अनुभव करता है तब तक आरक्षण को जारी रखना होगा। सरकार्यवाह ने बिना किसी लाग-लपेट के दो टूक लहजे में कहा कि दलितों के इतिहास के बिना भारत का इतिहास अधूरा है।
सरकार्यवाह जब आरक्षण को ऐतिहासिक आवश्यकता बताते हैं तब उनका आशय यही होता है कि इतिहास की गलतियों को सुधारने के लिए आरक्षण जरूरी है। गौरतलब है कि यही बात सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी भविष्य का भारत कार्यक्रम में आरक्षण के मुद्दे पर संघ का दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए कही थी।
इसे भी एक संयोग ही माना जाना चाहिए कि जिस दिन सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले राजधानी में “मेकर्स आफ मार्डर्न दलित हिस्ट्री” नामक पुस्तक का विमोचन किया उसी दिन लोकसभा में ओबीसी आरक्षण संशोधन विधेयक पारित किया गया और दूसरे दिन राज्य सभा ने भी इस विधेयक का अनुमोदन कर दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 127वां संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के बाद कहा कि यह ऐतिहासिक क्षण है।यह विधेयक समाज के वंचित वर्गों की गरिमा और उनके लिए अवसर और न्याय सुनिश्चित करने की सरकार की प्रतिबद्धता का परिचायक है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि आरक्षण को लेकर अनेक राजनीतिक दलों ने संघ पर निशाना साधकर अपना राजनीतिक हित साधने का प्रयास किया है जबकि संघ ने हमेशा समाज के दलित शोषित और वंचित वर्ग के सामाजिक आर्थिक सशक्तिकरण के लिए आरक्षण की वकालत की है । संघ प्रमुख पहले ही कह चुके हैं कि आरक्षण समस्या नहीं है बल्कि आरक्षण को लेकर होने वाली राजनीति समस्या है। संघ ने आरक्षण को कभी भी चुनावों को ध्यान में रखकर आरक्षण के पक्ष में विचार व्यक्त नहीं किए। संघ के इस विचार से किसी राजनीतिक दल के असहमत नहीं होना चाहिए कि संविधान में आरक्षण का प्रावधान समाज के जिन कमजोर वर्गों के लिए किया गया है उन्हें ही यह तय करने का अधिकार दिया जाए कि आरक्षण कब तक जारी रहना चाहिए। आरक्षण को लेकर संघ का दृष्टिकोण अपरिवर्तनीय है और विचारणीय भी ।
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के सलाहकार है)