स्कूली खेल: भारतीय खेलों का अभिशाप
राजेंद्र सजवान
यह कटु सत्य है कि भारतीय खेलों के दुर्भाग्य की कहानी स्कूल स्तर से शुरू होती है।यह भी कम दुर्भाग्यपूर्ण नहीं कि अपने देश में स्कूली खेलों को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया जाता। इसलिए चूँकि देश में स्कूली खेलों का कारोबार ऐसी संस्था के हाथों में है जोकि सालों से शक के घेरे में रही है और आरोप साबित हो जाने के बाद भी स्कूल गेम्स फ़ेडेरेशन आफ इंडिया नाम की इस संस्था पर कार्यवाही नहीं हो पाती। हैरानी वाली बात यह है कि खेल मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त, सुविधा प्राप्त और फरजीवाड़े का प्रमाणपत्र प्राप्त यह संस्था आरोप लगाने वालों को ठेंगा दिखाती आ रही है। हालाँकि फिलहाल कोर्ट द्वारा अमान्य करार दी गई खेल फ़ेडेरेशनों में इसका नाम शामिल है।
कदम कदम पर धोखा:
स्कूली खेलों की बदहाली के लिए सिर्फ़ एसजीएफआई को दोषी करार देना न्यायसंगत नहीं होगा। देश के खेलों की जड़ों में मट्ठा डालने में मान-बाप, स्कूल प्रशासन, खिलाड़ी, कोच और खेल मंत्रालय भी बराबर के गुनहगार है। वर्षों से स्कूली खेलों में क्या चल रहा है, इसके बार में हर कोई जानता है पर अनजान बना हुआ है। उम्र का धोखा, बाहरी खिलाड़ियों की घुसपैठ, ले दे कर चयन और कई गोरखधंधे सरेआम चल रहे हैं। अफ़सोस इस बात का है कि सब कुछ जानते हुए भी ज़िम्मेदारलोगों ने आँखें मूंद रखी हैं।
हर खेल और राज्य में फर्जीवाडा:
पिछले कई सालों से स्कूली खेलों को लेकर अनियमितता और अव्यवस्था के आरोप लगते आए हैं। हैरानी वाली बात यह है कि आरोप लगाए जाते रहे, शिकायतें दर्ज की गईं लेकिन खेलों की पितृ संस्था और खेल मंत्रालय ने कभी कोई ठोस कायवही नहीं की। हाल ही में हरियाणा सरकार ने धोखाधड़ी करनेवालों को सज़ा देने का फ़ैसला लिया है, जोकि सराहनीय कदम है| हरियाणा ने टेनिस के अंडर 16 खिलाड़ियों में से कई एक को उम्र छिपाने और फ़र्ज़ी आयु प्रमाणपत्र दाखिल करने का दोषी पाया है। पता चला है कि इनमें से ज़्यादा तर खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेलते हैं और कुछ एक की उम्र तीन-चार साल कम की गई है। लेकिन यह समस्या सिर्फ़ हरियाणा की नहीं है| यह कुप्रथा पूरे देश के खेलों को बर्बाद कर रही है। दिल्ली, पंजाब, यूपी, हरियाणा, बिहार, उड़ीसा, झारखंड, मणिपुर, मिज़ोरम, सिक्किम, बंगाल, असम, महाराष्ट्र और तमाम राज्यों में अंडर 14, अंडर 17 और अंडर 19 आयु वर्गों में दो से चार पाँच साल बड़े खिलाड़ियों को मैदान में उतारा जाता है। यह टेनिस या हरियाणा तक ही सीमित नहीं है। फुटबाल, हॉकी, कुश्ती, मुक्केबाज़ी, बैडमिंटन, क्रिकेट, बास्केटबाल, एथलेटिक, जूडो, कराटे और सभी खेल धोखेबाजों के हाथों खेल रहे हैं| सैकड़ों खिलाड़ी पकड़ में आए लेकिन सुधार फिर भी नहीं हो पाया।
प्रतिभाओं से खिलवाड़:
बेशक, ट्राफ़ी और नाम सम्मान पाने के लिए ऐसा किया जाता है। लेकिन सज़ा भुगतनी पड़ती है वास्तविक आयुवर्ग के खिलाड़ियों को जो मैदान में उतरने से पहले ही मैदान छोड़ देते हैं। ऐसे हज़ारों लाखों खिलाड़ियों का हमेशा से शोषण होता आ रहा है। एसजीएफआई सब कुछ जानते हुए भी मौन है| खिलाड़ियों के माँ बाप खुद इस धोखाधड़ी का हिस्सा बने हुए हैं। नतीजन कई प्रतिभावान खिलाड़ी शुरू करने से पहले ही मैदान छोड़ देते हैं। जो लोग भारतीय खेलों के पिछड़े होने का कारण खोजने का नाटक करते फिरते हैं, उनको चाहिए कि एसजीएफआई और खेल मंत्रालय से सवाल जवाब करें और पूछें कि स्कूली खेलों में सुधार के लिए पिछले कई सालों में क्या कुछ किया गया है और दोषियों पर एक्शन क्यों नहीं लिया गया? उनसे पूछा जा सकता है कि क्यों हमारे खिलाड़ी शारीरिक और मानसिक तौर पर अन्य देशों की तरह फिट नहीं हैं? जानेमाने डाक्टर, वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक बस इतना कहते हैं कि भारतीय खेलों की रीढ़ कमजोर है; उन्हें पढ़ाने- सिखाने वाले खानापूरी कर रहे हैं और सरकारी मशीनरी भी गंभीर नहीं है। ये तमाम खामियाँ स्कूल स्तर से शुरू होती हैं और स्कूलों में ही कई खेल और खिलाड़ी गुमनामी में खो जाते हैं।
स्कूल में कब खेलेगा इंडिया?
खेलों में बड़ी ताक़त माने जाने वाले अमेरिका, चीन, जर्मनी, रूस, फ्रांस, जापान, कोरिया, इटली जैसे देशों में स्कूली खेलों का विशेष महत्व दिया जाता है और भारत में सबसे बड़ी धोखाधड़ी इसी स्तर पर होती है।खेल मंत्रालय भी खेलो इंडिया का चश्मा पहनाकर खेल सुधार की बात कर रहा है लेकिन खिलाड़ी बनाने या किसी खेल में प्रवेश की असली उम्र तो आठ से दस बारह साल तक होती है। ज़ाहिर है 18 से 25 साल की उम्र के खिलाड़ियों को चैम्पियन बनाने का ख्वाब देखने वाला खेलो इंडिया सिर्फ़ एक प्रयोग कर रहा है, जिसकी सफलता की कोई गारंटी नहीं है। बेहतर होगा छोटी उम्र के स्कूली खिलाड़ियों को खेलो इंडिया के बैनर तले बढ़ावा दिया जाए।
खेलों में सबसे फिसड्डी:
देश के जाने माने अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों, गुरुओं और खेल जानकारों का मानना है कि जब तक स्कूली बच्चों को खेलों से नहीं जोड़ा जाएगा और उनकी देखरेख के लिए ईमानदार लोग नियुक्त नहीं किए जाते खेलों में ताकत बनने का सपना साकार नहीं हो सकता। यदि एसजीएफआई खेल मंत्रालय की मज़बूरी बन चुकी है तो उसे गले लगाए रखें लेकिन ऐसी व्यवस्था बनाएँ ताकि प्रतिभाओं का गला कटने से बच जाए| यदि सरकार और खेल मंत्रालय सचमुच गंभीर हैं और देश में खेलों के लिए माहौल बनाना चाहते हैं तो आज और अभी से चिंतन-मनन शुरू कर दें। यह ना भूलें कि जनसंख्या को देखते हुए खेलों में हम दुनिया के सबसे फिसड्डी देश हैं। अर्थात शुरुआत ज़ीरो से ही करनी पड़ेगी।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार है, चिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को www.sajwansports.com पर पढ़ सकते हैं।)