धार्मिक मामलों के लिए अलग न्यायाधिकरण: न्याय और शांति की नई राह

Separate tribunal for religious matters: A new path to justice and peaceरीना एन सिंह

अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया 

धर्म की रक्षा में न्याय का आधार ही समाज को एकता और शांति प्रदान करता है। सरकार को धार्मिक स्थलों से संबंधित विवादों के समाधान के लिए एक अलग ट्रिब्यूनल की स्थापना करनी चाहिए। यह ट्रिब्यूनल सामान्य अदालतों से अलग होगा और विशेष रूप से धार्मिक विवादों का निपटारा करेगा। इसके लिए एक अलग धार्मिक ट्रिब्यूनल का गठन एक प्रभावी कदम हो सकता है। इससे न केवल इन विवादों का त्वरित समाधान सुनिश्चित होगा, बल्कि राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।

भारत जैसे बहुधर्मी और बहुसांस्कृतिक देश में धार्मिक विवाद अक्सर समाज में तनाव और अस्थिरता का कारण बनते हैं। इन विवादों का त्वरित और न्यायपूर्ण समाधान आवश्यक है ताकि देश में धार्मिक सौहार्द और कानून व्यवस्था बनी रहे। धार्मिक विवाद अक्सर संवेदनशील होते हैं और इनके कारण समाज में तनाव और अशांति का माहौल बन सकता है। एक विशेष ट्रिब्यूनल के माध्यम से इन विवादों को सुलझाने से विवादित पक्षों को निष्पक्ष और विशेषज्ञ समाधान मिलेगा। इसके अलावा, यह पहल सामान्य अदालतों के बोझ को भी कम करेगी और अन्य मामलों के निपटारे में तेजी लाएगी।

भारत का संविधान धार्मिक स्वतंत्रता और न्याय की गारंटी देता है। अनुच्छेद 25-28: हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन, प्रचार और अभ्यास करने की स्वतंत्रता देता है। अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण सुनिश्चित करता है, अनुच्छेद 226: उच्च न्यायालय को विशेष शक्तियां प्रदान करता है कि वह न्यायिक या अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों द्वारा लिए गए निर्णयों की समीक्षा कर सके। हालांकि, संविधान धार्मिक विवादों के लिए अलग ट्रिब्यूनल का स्पष्ट उल्लेख नहीं करता, लेकिन संसद को विशेष कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है।

अनुच्छेद 323बी के तहत, संसद और राज्य विधानसभाओं को विशेष ट्रिब्यूनल स्थापित करने का अधिकार है, धार्मिक मुद्दों पर शीघ्र और प्रभावी न्याय के लिए धार्मिक विवादों को सिविल कोर्ट में सुलझाने में वर्षों लग सकते हैं।

ट्रिब्यूनल में धार्मिक और कानूनी विशेषज्ञों की नियुक्ति की जानी चाहिए ताकि निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके, साथ ही, इन ट्रिब्यूनल के निर्णयों पर उच्च न्यायालय में अपील का प्रावधान होना चाहिए ताकि संवैधानिक प्रक्रिया का पालन हो।धार्मिक विशेषज्ञता के कारण ट्रिब्यूनल में धार्मिक और कानूनी विशेषज्ञ शामिल होंगे, जो जटिल धार्मिक मामलों को बेहतर तरीके से समझ कर उसे सुलझा सकते हैं।समाज में शांति बनाए रखने के साथ-साथ ट्रिब्यूनल विवादों को निपटाने के लिए एक केंद्रीय मंच प्रदान करेगा, जिससे जगह-जगह विवाद और हिंसा से बचा जा सकेगा।

क्षेत्राधिकार की बात करें तो ट्रिब्यूनल को केवल धार्मिक विवादों, धार्मिक स्थलों और संबंधित मामलों तक सीमित रखा जाए। धार्मिक विवादों का समाधान हिंसा से नहीं, संवाद और कानून के माध्यम से ही संभव है, ट्रिब्यूनल का गठन इस दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है, यह सुनिश्चित करेगा कि हर धर्म को न्याय मिले और कोई भी निर्णय तटस्थता और संविधान के दायरे में रहे, भारत में धार्मिक विवादों के समाधान के लिए अलग ट्रिब्यूनल का गठन संविधान सम्मत और समय की आवश्यकता है, इससे न केवल न्यायिक प्रक्रिया तेज होगी, बल्कि समाज में शांति और सौहार्द भी कायम रहेगा।

राज्य सरकारों को इस दिशा में पहल करनी चाहिए ताकि भविष्य में धार्मिक विवाद राष्ट्रीय एकता और कानून व्यवस्था को बाधित न करें। धर्म, समाज और न्याय: एक समर्पित न्यायाधिकरण की आवश्यकता है।

“जहां धर्म की बात हो, वहां न्याय और संतुलन का होना अनिवार्य है।”

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