स्कूली खेलों के गुनहगारों को कड़ी सज़ा मिले; देश और खेलों से धोखा: सुशील कुमार
राजेंद्र सजवान
“दूध का दूध’ और ‘पानी का पानी’ हो गया है और स्कूली खेलों के गुनहगार एक्सपोज़ हो चुके हैं, जिन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए”, आम तौर पर शांत रहने वाले दोहरे ओलंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार खेल मंत्रालय के उस फ़ैसले से खुश हैं जिसमें स्कूल गेम्स फ़ेडेरेशन (SGFI) के चुनाव फिर से कराने का फरमान जारी किया गया है।
युवा और खेल मामलों के मंत्रालय ने अपने पत्र संख्या F No.80-3/2020-sp.lll के द्वारा एसजीएफआई को आगाह किया है की 29 दिसंबर 2020 को नागापतनम, तमिलनाडु में हुए चुनाव अवैध घोषित किए जाते हैं, जिनमें बिना अध्यक्ष की अनुमति और सलाह के रिटर्निंग अधिकारी नियुक्त किया गया।
मंत्रालय ने पत्र में चुनाव प्रक्रिया को देश के खेल कोड के विरुद्ध बताया और फिर से चुनाव कराए जाने का निर्देश दिया है। पत्र में बाक़ायदा अध्यक्ष सुशील कुमार और महासचिव राजेश मिश्रा को राष्ट्रीय खेल कोड 2011 के दिशानिर्देशों के अनुसार फिर से चुनाव कराने का निर्देश जारी किया गया है।
तारीफ़ की बात यह है कि चुनाव के बारे में अध्यक्ष सुशील कुमार को भनक तक नहीं लगने दी गई और सभी पदाधिकारी निर्विरोध चुन लिए गए। अंडमान के रंजीथ कुमार अध्यक्ष, मध्य प्रदेश के आलोक खरे सचिव और विद्या भारती के मुख़्तेज सिंह कोषाध्यक्ष बनाए गए।
हालाँकि अध्यक्ष सुशील कुमार को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल बाहर किया गया लेकिन सालों साल देश के स्कूली खेलों को अपने इशारे पर नचाने वाले राजेश मिश्रा खुद ब खुद सीईओ कैसे बन बैठे थे, किसी को कानों कान खबर तक नहीं थी।
मंत्रालय द्वारा चुनाव रद्द करार दिए जाने के बाद जब क्लीन बोल्ड ने सुशील से प्रतिक्रिया ली तो उन्होने तपाक से कहा कि सारे फ़साद की जड़ राजेश मिश्रा है जिसने देश के स्कूली खेलों को लूट खाया है। एसजीएफआई को मिश्रा ने घर की खेती बना लिया था।
उसके परिवारवाद के चलते देश के स्कूली खेलों को लकुवा मार गया है। सुशील के अनुसार वह पिछले कई महीनों से मिश्रा के फर्जीवाड़े के बारे में आवाज़ उठाते रहे हैं लेकिन तब किसी ने ध्यान नहीं दिया। इस आदमी ने देश विदेश में भारतीय खेलों और खिलाड़ियों को बदनाम किया है और खिलाड़ियों का हिस्सा चट्ट करता रहा। ऐसे आदमी को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए।
सुशील को इस बात का दुख है कि मिश्रा ने उसकी शराफ़त और सीधेपन के साथ विश्वासघात किया। वह जहाँ चाहा, जिस कागज पर चाहा साइन कराता रहा। मुझे क्या मालूम था कि यह महाशय एक खिलाड़ी के भोलेपन का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं।
सुशील ने खेल मंत्रालय के फ़ैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह फ़ैसला बताता है कि किस प्रकार एसजीएफआई पर से सरकार, अभिभावकों और खिलाड़ियों का विश्वास उठ गया है। उसके अनुसार स्कूली खेलों को भ्रष्ट और अवसरवादियों से नहीं बचाया गया तो देश का खेल भविष्य ख़तरे में पड़ जाएगा। स्कूली खेल देश के खेलों का आधार हैं और मिश्रा जैसे लोगों ने खेलों की बुनियाद खोद डाली है।
सुशील चाहते हैं कि सरकार ना सिर्फ़ फिर से साफ सुथरे चुनाव कराए अपितु सभी गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सज़ा भी दे। जिस किसी ने ग़लत लोगों का साथ दिया है वे भी बराबर दोषी हैं उन्हें भी माफ़ नहीं किया जाना चाहिए। यदि भी सख़्त कदम नहीं उठाए गए तो देश का खेल भविष्य संकट में पड़ जाएगा।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं. लेख में व्यक्त किये गए विचारों से चिरौरी न्यूज़ का सहमत होना अनिवार्य नहीं है. )