समय पर सहायता करने के लिए प्रेरणा देती है टाइटैनिक जहाज की घटना
अंकित कुमार
नई दिल्ली: कोरोना संक्रमण के कारण जब दुनिया के अधिकतर देशों ने लॉकडाउन की घोषणा की तो सामान्य जन जीवन अस्तव्यस्त हो गया। लोगों के पास घरों में बैठे रहने के अलावा और कोई उपाय नहीं था। जिन्दगी सभी की थम सी गयी थी। कुछ दिनों तक तो लगा कि ये समय आसानी से चला जाएगा, लेकिन नहीं। जितना आसान लोगों ने समझा, ये लॉक डाउन उस से कहीं ज्यादा परेशानी देने वाला था।
कई सारे लोग अवसाद में जीने लगे, तो कई इस लॉकडाउन की वजह से अपना सामान्य शिष्टाचार तक भूल गए। लॉकडाउन की वजह से लोगों के व्यवहार में फर्क आने लगा है। एक तरह से लोगों की मुस्कान गायब हो गयी है। जिधर देखो उधर ही कोरोना का कहर जारी है। ऐसे में लोगों ने समय बिताने के लिए विभिन्न तरीकों को अपनाया। कई लोगों ने अवसाद से दूर रहने के लिए प्रेरणादायी किताबों की तरफ रुख किया, तो कई ने सोशल मीडिया पर समय दिया।
वैसे तो सोशल मीडिया पर अच्छे मेसेज का अभाव रहता है, लेकिन आजकल एक मेसेज टाइटेनिक जहाज से सम्बंधित कभी न कभी सभी के फ़ोन में आया होगा, जिसमें समुद्र में डूब रहे जहाज के मुसाफिरों को बचाने के सम्बन्ध में कई सारी बातें कही गयी है।
एक दौर था जब टाइटैनिक जहाज की कहानी काफी लंबे समय तक चर्चा में रही थी। टाइटैनिक जब समुन्द्र में डूब रहा था तो उसके आस पास तीन ऐसे जहाज़ मौजूद थे जो टाईटेनिक के मुसाफिरों को बचा सकते थे।
सबसे करीब जो जहाज़ मौजूद था उसका नाम सैमसन था और वो हादसे के वक्त टाईटेनिक से सिर्फ सात मील की दुरी पर था। उस जहाज के कैप्टन ने न सिर्फ टाईटेनिक कि ओर से फायर किए गए सफेद शोले (जोकि बहुत ज्यादा खतरे की हालत में हवा में फायर किया जाता है) देखे थे, बल्कि टाईटेनिक के मुसाफिरों के चिल्लाने के आवाज़ को भी सुना भी था। लेकिन सैमसन जहाज के लोग गैर कानूनी तौर पर बहुत कीमती समुन्द्री जीव का शिकार कर रहे थे और वे नहीं चाहते थे कि वो पकड़े जाए लिहाजा वो टाईटेनिक की हालात को देखते हुए भी मदद न करके अपनी जहाज़ को दूसरी तरफ़ मोड़ कर चले गए।
ये जहाज़ हम मे से उन लोगो कि तरह है जो अपनी गुनाहों भरी जिन्दगी मे इतने मग़न हो जाते हैं कि उनके अंदर से इन्सानियत का एहसास खत्म हो जाता है और फिर वो सारी जिन्दगी अपने गुनाहों को छिपाते गुजार देते हैं।
दूसरा जहाज़ कैलिफोर्निया जो हादसे के वक्त टाईटेनिक से चौदह मील दूर था, उस जहाज़ के कैप्टन ने भी टाईटेनिक की तरफ़ से मदद की पुकार को सुना था। उसने बाहर निकल कर सफेद शोले अपनी आंखों से देखा लेकिन टाईटेनिक उस वक्त बर्फ़ की चट्टानो से घिरा हुआ था, और उसे उस चट्टानों के चक्कर काट कर जाना पड़ता इसलिए वो कैप्टन मदद को ना जा कर अपने बिस्तर में चला गया और सुबह होने का इन्तजार करने लगा। जब सुबह वो टाईटेनिक के लोकेशन पर पहुंचा तो टाईटेनिक को समुन्द्र की तह में पहुंचे हुए चार घंटे गुज़र चुके थे और टाईटेनिक के कैप्टन एडवर्ड स्मिथ समेत 1569 मुसाफिर डूब चुके थे।
ये जहाज़ हमलोगों में से उनकी तरह है जो किसी की मदद करने में अपनी सहूलियत और असानी देखते हैं और अगर हालात सही ना हो तो किसी की मदद करने का फ़र्ज़ भूल जाते हैं।
तीसरा जहाज़ कर्फाटिया जो टाईटेनिक से 68 मील दूर था। उस जहाज़ के कैप्टन ने रेडियो पर टाईटेनिक के मुसाफारो की चीख पुकार सुनी। जबकि उसका जहाज़ दूसरी तरफ़ जा रहा था उसने फौरन अपने जहाज़ का रुख मोड़ा और बर्फ़ की चट्टानों और खतरनाक मौसम की परवाह किए बगैर मदद के लिए रवाना हो गया। लेकिन काफी दूरी होने की वजह से टाईटेनिक के डूबने के दो घंटे बाद लोकेशन पर पहुंच सका।
लेकिन यही वो जहाज़ था जिसने लाईफ बोट्स की मदद से टाईटेनिक के बाकी 710 मुसाफिरों को जिन्दा बचाया था और उन सब को हिफाज़त के साथ न्यूयार्क पहुंचा दिया था। कर्फाटिया जहाज़ के कैप्टन अर्थो रोस्थन का नाम ब्रिटेन के चंद बहादुर कैप्टनों में शुमार किया जाता है और उनको कई समाजिक और सरकारी आवार्ड से भी नवाजा गया था।
इसी तरह हमारी जिन्दगी में हमेशा मुश्किल हालात और चैलेंज बने रहते हैं लेकिन जो इन मुश्किल हालात और चैलेंज का सामना करते हुए भी इन्सानियत की भलाई के लिए कुछ कर जाए उन्हें ही इन्सान और इंसानियत सदैव याद रखती है।
मौजूदा कोरोना महामारी के माहौल में हमारे चारों तरफ बड़े पैमाने पर लोगों को मदद की ज़रूरत है। यदि हम अपनी सामर्थ्य व सुविधानुसार मदद करके विश्व रूपी टाइटैनिक डूबने से पहले जितनी जिंदगियां हम बचा लेंगे वहीं हमारा पुण्य होगा।
इसलिए जियें और दूसरों को भी जीने में मदद करें।
सोशल दूरी बनाए रखें, #साफ रहें #सेफ रहें #सुरक्षित रहें।