‘‘कोराना महामारी के दौरान बच्चों का मोटापा और पैकेज्ड फूड‘‘ विषय पर हुआ वेबिनार का आयोजन
चिरौरी न्यूज़
नई दिल्ली: कोविड 19 के तीसरी लहर मे विषेशज्ञों द्वारा बच्चो पर खतरे की ज्यादा आशका जताई गई है। कोराना के दुसरी लहर मे भी मोटापा से ग्रसित बच्चे कोराना से ज्यादा प्रभावित हुए। इसी की गंभिरता को देखते हुए ‘‘कोराना महामारी के दौरान बच्चों का मोटापा और पैकेज्ड फूड‘‘ विषय पर एक वेबिनार का आयोजन हुआ। वेबिनार में इंटरनेशनल पैडिएट्रिक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट एलेक्ट (अध्यक्ष पद के अगले कार्यकाल के लिए निर्वाचित) और मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. नवीन ठक्कर एवं मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ और प्राइम मिनिस्टर न्यूट्रीशन काउंसिल के पूर्व सदस्य डॉ. अरुण गुप्ता सहित कई विषेशज्ञो ने हिस्सा लिया।
वेबिनार मे हिस्सा लेते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञों और डॉक्टरों ने चेताया कि अगर पैक्ड फूड यानी खाने-पीने की पैकेटबंद चीजों में नमक, शुगर और फैट की मात्रा सीमित कर पैकेट पर उनकी मात्रा की चेतावनी की व्यवस्था नहीं की गई तो आने वाले समय में बड़ी संख्या में बच्चों को उम्र भर परेशान करने वाली बीमारियों का शिकार होना पड़ेगा।
कोराना काल में घरों से बाहर नहीं निकलने की मजबूरी बड़ों के साथ-साथ बच्चों के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर डाल रही है। उनके खानपान में जंक फूड और पैकेज्ड फूड की बढ़ती मात्रा उन्हें मोटापे की ओर धकेल रही है। बच्चों का बढ़ता मोटापा भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। भारत दुनिया का दूसरा ऐसा देश बन गया है जो बच्चों के मोटापे से ग्रसित है। भारत के 1.44 करोड़ बच्चे मोटापे के शिकार हैं जिनके वर्ष 2025 तक 1.70 करोड़ हो जाने का अनुमान है।
इंटरनेशनल पैडिएट्रिक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट एलेक्ट (अध्यक्ष पद के अगले कार्यकाल के लिए निर्वाचित) और मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. नवीन ठक्कर ने बच्चों के स्वास्थय पर चिंता जताते हुए कहा, “भारत मोटापे और डायबिटीज का ग्लोबल हब बनता जा रहा है जो निश्चित रूप से गंभीर चिंता का विषय है। खासकर बच्चों में मोटापे की समस्या बढ़ती जा रही है।” यह बात उन्होंने “कोराना महामारी के दौरान बच्चों का मोटापा और पैकेज्ड फूड” विषय पर आयोजित वेबिनार में कही।
उन्होंने कहा, “कोरोना काल में यह समस्या और भी बढ़ती जा रही है। समय आ गया है कि सरकार को पैक्ड फूड पर फ्रंट ऑफ पैक लेबलिंग यानी पैकेट के ऊपर की तरफ चेतावनी की व्यवस्था जल्द से जल्द शुरू कर देनी चाहिए।”
मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ और प्राइम मिनिस्टर न्यूट्रीशन काउंसिल के पूर्व सदस्य डॉ. अरुण गुप्ता ने वेबिनार में कहा, ” विभिन्न अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड के इस्तेमाल में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी से मोटापा, डायबिटीज, हृदय संबंधी बीमारी और कुछ तरह के कैंसर के होने की संभावना 10 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसलिए बहुत जरूरी है कि नमक, चीनी या वसा की अधिकता वाले ऐसे सामान पर पैकेट के ऊपर ही तरफ ही स्पष्ट चेतावनी होनी चाहिए।”
वरिष्ठ पत्रकार विजय झा ने कहा कि खाने-पीने की पैकेटबंद चीजों पर ना सिर्फ स्पष्ट चेतावनी प्रकाशित होनी चाहिए, बल्कि इसे इस तरह से प्रकाशित किया जाए कि लोगों को आसानी से समझ में आ सके। वैश्विक शोधों ने साबित कर दिया है कि अपर्याप्त और बिना चेतावनी वाले लेबल पैकेज्ड फूड खतरनाक हैं और नमक, शुगर और फैट की मात्रा शरीर में बढ़ाते हैं।
गैर संक्रामक बीमारियां (एनसीडी) पूरी दुनिया के लिए प्रमुख चिंता का कारण बनती जा रही हैं। एनसीडी में मोटापा, डायबिटीज और हृदय संबंधी बीमारी और कुछ कैंसर आते हैं। हर साल विश्व में 4 करोड़ लोगों की मौत एनसीडी से होती है जो विश्व की कुल मौतों का 70 फीसदी है।
हाल ही में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली (डब्ल्यूएचए) ग्लोबल स्तर पर इस तरह का फ्रेमवर्क बनाने पर सहमत हुआ है जिसमें पैकेज्ड फूड में एंटी न्यूट्रिएंट्स जैसे शुगर, नमक और फैट की मात्रा की सीमा निर्धारित की जाए।
डॉ. नवीन ठक्कर ने सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट) के एक सर्वे का हवाला देते कहा, “करीब 93 फीसदी बच्चे हफ्ते में एक बार पैकेज्ड फूड जरूर खाते हैं। जबकि 68 फीसदी बच्चे पैकेज्ड एसएसबी (शुगर-स्वीटेंड बेवरेजेज) का सेवन करते हैं तथा 25 फीसदी बच्चे हफ्ते में एक बार पिज्जा, बर्गर जैसे अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड का इस्तेमाल करते हैं।”