क्यों डबल डिजिट से चूक गए?
राजेंद्र सजवान
टोक्यो रवाना होने से पहले भारतीय खेलों के कर्णधार डबल डिजिट में पदक जीतने का दावा कर रहे थे। शायद उनकी सोच गलत नहीं थी। लेकिन निशानेबाज, मुक्केबाज, महिला पहलवान और तीरंदाज कसौटी पर खरे नहीं उतर पाए।
टोक्यो ओलंम्पिक में हमारे खिलाड़ियों ने छह खेलों में सात पदकों पर सटीक निशाना लगाए। चूंकि नीरज चोपड़ा ने गोल्ड जीता इसलिए उसका निशाना परफेक्ट रहा। उसकी सफलता ने भारतीय एथलेटिक की न सिर्फ लाज रखी, भारत के ओलंम्पिक अभियान को नई दिशा भी दी।
बेशक, नीरज के गोल्ड से भारतीय एथलेटिक सिर ऊंचा कर चल सकती है। एथलेटिक फेडेरेशन मूछों पर ताव दे सकती है। देर से ही सही नीरज ने भारतीय एथलेटिक के चेहरे से कालिख हटा दी है।
भले ही मिल्खा सिंह और पीटी उषा के प्रदर्शन को कोई आंच नहीं आने वाली लेकिन अब भारतीय एथलीट फक्र के साथ कह सकते हैं कि उनके पास भी एक ओलंम्पिक पदक विजेता और गोल्ड मेडलिस्ट है। नीरज हर तारीफ और सम्मान का हकदार है।
लेकिन जिस खेल ने देश को सर्वाधिक गौरव दिलाया है वह निसंदेह कुश्ती है। केडी जाधव के बाद सुशील कुमार के दो ओलंम्पिक पदक, योगेश्वर और साक्षी मलिक के पदक और अब रवि दहिया और बजरंग पुनिया के पदकों ने भारतीय कुश्ती को ओलंम्पिक में सबसे सफल खेल का दर्जा दिलाया है।
कुल सात पदकों केसाथ भारतीय कुश्ती अन्यखेलों से बहुत आगे चल रही है। लेकिन महिला पहलवानों ने इस विशुद्ध भारतीय खेल की बड़ी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सभी चार पहलवान पुरुष मुककेबाजों की तरह खाली हाथ लौटीं।
बारूद में गोबर किसने मिलाया ?:
निशाने बाजों ने देश का नाम सबसे ज्यादा खराब तो किया ही भारतीय निशानेबाजी को अर्श से फर्श पर पटक दिया है। अभिनव बिंद्रा के गोल्ड ने अमीरों के खेल की कीर्ति फैलाई तो बाद के सालों में राज्यवर्धन राठौर, विजय कुमार और गगन नारंग ने ओलंम्पिक पदक जीत कर दिखाया कि भारतीय निशानेबाजी में दम है।
लेकिन टोक्यो में भारतीय निशानों की पोल खुल गई। सबके निशाने फुस्स हो गए। अब एनआरएआई जांच पड़ताल में लगी है और जानना चाहती है कि बारूद में गोबर किसने मिलाया।
तीरंदाजी को इसलिए माफ किया जा सकता है क्योंकि भारतीय तीर करीब से चुके।
मीरा बाई चानू ने बीस साल बाद वेटलिफ्टिंग को और वजनी बना दिया है। मल्लेश्वरी के कांसे के बाद उसने बड़ी लकीर खींची है। छोटे कद की बड़ी वेटलिफ्टर यदि पेरिस में कमाल कर पाई तो भारत को स्वर्ण मिल सकता है। पीवी सिंधू के पदक का रंग हल्का जरूर पड़ा लेकिन वह अगले ओलंम्पिक में सोना जीत सकती है।
वह कल चैंपियन थी और टोक्यो में भी चैंपियन की तरह खेली। लेकिन मैरीकाम के लिए शायद ग्लब्स टांगने का वक्त आ गया है, अगर वह चाहें तो। लवलीना के उदय से महिला मुक्केबाजी को सेफ ज़ोन में कहा जा सकता है। लेकिन पुरुष मुककेबाजों पर से भरोसा उठता जा रहा है। अमित पंघाल की पिटाई जांच का विषय है।
चित हुई महिला कुश्ती:
कुश्ती में रवि दहिया ने किसी भी भारतीय पहलवान का अब तक का श्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। उसका सिल्वर अगले ओलंम्पिक में गोल्ड में बदल सकता है। लेकिन बजरंग पूनिया अपनी ख्याति से हल्का प्रदर्शन ही कर पाए। बजरंग और विनेश फोगाट से पूरे देश ने गोल्ड की उम्मीद लगाई थी पर ऊंची रैंकिंग भी उनके काम नहीं आई।
विनेश लगातार दूसरे ओलंम्पिक में नाकाम रही तो बजरंग भी भारतीय उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाए। उन्हें कांस्य की बधाई दी जा सकती है। लेकिन महिलाओं का पूरी तरह फ्लाप शो चिंताजनक है।
भारतीय कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष सांसद ब्रज भूषण शरण सिंह ने जो उम्मीदें बांधी थीं उन पर भारतीय पहलवान खरे नहीं उतर पाए। ब्रज भूषण ने चार पांच पदकों का दावा किया था, जोकि कदापि गलत नहीं था। गलती कहाँ हुई, यह जांच का विषय जरूर है।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं )